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समूचे देश के साथ-साथ दिल्ली में भी कोरोना विषाणु से संक्रमण के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे थे,
समूचे देश के साथ-साथ दिल्ली में भी कोरोना विषाणु से संक्रमण के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे थे, उसमें यहां किसी सख्त कदम की आशंका पहले से जाहिर की जा रही थी। यों पिछले हफ्ते पहले रात्रिकालीन कर्फ्यू और फिर शनिवार और रविवार को पूरी तरह बंदी की घोषणा हुई, तभी ऐसे संकेत मिल गए थे कि संक्रमण के मामलों में तेज इजाफे के मद्देनजर सरकार कोई बड़ा फैसला कर सकती है। अब दिल्ली सरकार ने एक बार फिर राजधानी में कर्फ्यू की घोषणा कर दी है।
फिलहाल अगले सोमवार सुबह पांच बजे तक के लिए दिल्ली में जरूरी सेवाओं को छोड़ कर अमूमन सभी सार्वजनिक गतिविधियों पर पाबंदी रहेगी। निश्चित तौर पर ऐसी स्थिति आने की इच्छा किसी की भी नहीं रही होगी, लेकिन सच यह है कि दिल्ली में पिछले कुछ दिनों के भीतर संक्रमण की रफ्तार जिस तेजी से बढ़ी, उसने सबके माथे पर चिंता की लकीरें खींच दीं। हालत यह है कि यहां संक्रमण की दर तीस फीसद तक हो गई है और एक दिन में नए मामलों की संख्या पच्चीस हजार तक पहुंच गई।
हालांकि सरकार की ओर पिछले कुछ समय से आम लोगों से यह अनुरोध किया जा रहा था कि वे संक्रमण से बचाव को लेकर सावधानी बरतें। बहुत सारे लोगों ने ऐसा किया भी होगा। लेकिन इसके बावजूद इस पर काबू नहीं पाया जा सका। जाहिर है, एक ओर सरकार ने समय रहते एहतियाती कदम नहीं उठाए, दूसरी ओर लोगों को भी अपनी ओर से सावधानी और बचाव के उपायों पर अमल करना बहुत जरूरी नहीं लगा। नतीजतन, हालात लगातार बिगड़ते चले गए। ऐसी स्थिति में संक्रमण पर काबू पाने के लिए कर्फ्यू या बंदी का जो मौजूदा और तात्कालिक उपाय है, उस पर अमल करना वक्त की जरूरत थी।
हालांकि इससे पहले महाराष्ट्र सहित दूसरे कुछ राज्यों में जिस तरह तेजी से तस्वीर बिगड़ती जा रही थी, उसे देखते हुए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि कोरोना की इस दूसरी लहर का जोर ज्यादा घातक है और बचाव की कवायदों के बावजूद यह शायद इतनी आसानी से काबू में नहीं आए। इस महामारी के इलाज के मोर्चे पर अस्पतालों में अब तक कोई नया तरीका या संसाधनों का सहारा नहीं विकसित हुआ है। साल भर पहले की तरह ही अस्पतालों में बिस्तरों की कमी के साथ-साथ दूसरी तरह की अव्यवस्था कायम है। इसके समांतर टीकाकरण का काम भी चल रहा है।
इस सबके बीच दिल्ली में लगभग सभी सार्वजनिक गतिविधियों पर पाबंदी कोरोना के संक्रमण को काबू में लाने में शायद सहायक साबित हो, लेकिन इसके साथ-साथ आम जनजीवन और अर्थव्यवस्था से जुड़ी गतिविधियों पर इसका जो असर पड़ेगा, उसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। दिल्ली में संपूर्ण कर्फ्यू की घोषणा के साथ ही एक बार फिर यहां से बाहर जाने वाली बसों और ट्रेनों के लिए जिस तरह भीड़ उमड़ी है, वह फिर पिछले साल की त्रासद तस्वीरों की याद दिला रही है।
रोजी-रोटी और जिंदा भर रह सकने के लिए दिल्ली जैसे महानगरों में मिलने वाले काम पर निर्भर गरीब और मजदूर तबके के लोग एक बार फिर लाचार और निराश होकर अपने गांवों का रुख कर रहे हैं। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इस कर्फ्यू के छोटी अवधि का होने का आश्वासन दिया है, लेकिन साल भर पहले इसी तरह के भरोसे के बावजूद पूर्णबंदी के लंबा खिंचने की याद शायद सबके भीतर बाकी है। इसलिए इसके प्रति चिंतित होना स्वाभाविक है। अब इसकी बस उम्मीद ही की जा सकती है कि सरकार अपनी व्यवस्था दुरुस्त करे, आम लोग बचाव के लिए पूरी तरह सावधानी बरतें और संक्रमण पर नियंत्रण हो, ताकि फिर से बाजार और सार्वजनिक गतिविधियां सामान्य हो सकें।
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