सम्पादकीय

बंदी का पाठ

Gulabi
14 Oct 2020 1:56 AM GMT
बंदी का पाठ
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देश में सभी आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ने की वजह से अब तक अर्थव्यवस्था को व्यापक नुकसान हो चुका है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस साल मार्च में कोरोना के संक्रमण से बचाव के मद्देनजर पूर्णबंदी लागू होने के बाद समूचे देश में सभी आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ने की वजह से अब तक अर्थव्यवस्था को व्यापक नुकसान हो चुका है। लगभग सभी क्षेत्रों पर इसकी जैसी मार पड़ी है, उसकी भरपाई में शायद लंबा वक्त लग जाए। लेकिन बीते छह महीने से ज्यादा वक्त से देश भर में स्कूलों के बंद रहने ने न केवल आर्थिक पहलू को बुरी तरह प्रभावित किया है, बल्कि बच्चों की दक्षता को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचाया है।

गौरतलब है कि विश्व बैंक ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में यह आशंका जताई है कि कोविड-19 की वजह से लंबे समय तक स्कूल बंद रहने से भारत को चालीस अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, पढ़ाई को होने वाला नुकसान अलग है। 'पराजित या खंडित? दक्षिण एशिया में अनौपचारिकता एवं कोविड-19' नामक रिपोर्ट के मुताबिक अर्थव्यवस्था पर इस महामारी के विनाशकारी प्रभाव के चलते समूचा दक्षिण एशिया 2020 में सबसे बुरे आर्थिक शिथिलता के दौर में फंसने वाला है।

हालांकि स्कूलों के बंद रहने पर पढ़ाई-लिखाई बाधित होने की आंशका तो पहले भी जताई जा रही थी, लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसकी मार का आकलन शायद नहीं किया गया था। अब जिस तरह की आशंका जताई गई है, वह बेहद परेशान करने वाली है।

विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में यह भी दर्ज किया गया है कि बच्चों को डिजिटल माध्यमों से पढ़ाई कराना काफी मुश्किल काम है। दरअसल, स्कूलों के बंद होने की स्थिति में आनलाइन पद्धति से कक्षाएं संचालित करने का सहारा लिया गया, लेकिन इसकी अहमियत बेहद सीमित है।

अव्वल तो ज्यादातर विद्यार्थियों की कंप्यूटर, स्मार्टफोन, इंटरनेट तक पहुंच सुलभ नहीं है और पढ़ाई के लिहाज से घर का माहौल अनुकूल नहीं है, दूसरे आनलाइन कक्षा में शिक्षा और उसकी गुणवत्ता का स्तर नियमित कक्षाओं के समांतर नहीं हो सकता। इस तरह देखें तो एक ओर स्कूल बंदी का असर व्यापक तौर पर आर्थिक पहलू पर पड़ रहा है, वहीं यह विद्यार्थियों को मिलने वाले ज्ञान और उसकी गुणवत्ता भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि पचपन लाख बच्चे पढ़ाई छोड़ दे सकते हैं; इससे पढ़ाई-लिखाई को बड़ा नुकसान होगा और इसका असर एक समूची पीढ़ी की दक्षता पर आजीवन पड़ेगा। फिलहाल करीब छह महीने से बच्चे स्कूलों से दूर हैं और इससे सीधे-सीधे उनके सीखने की क्षमता प्रभावित होगी। लंबे समय तक स्कूलों से दूर रहने का मतलब है कि बच्चे न केवल पढ़ाई में रुचि लेना बंद कर देंगे, बल्कि अब तक अर्जित शिक्षा भी भूल जाएंगे।

जाहिर है, यह देश के भविष्य के लिहाज से एक बेहद चिंताजनक स्थिति है। विडंबना यह है कि इस दौर में सरकारें महामारी से लड़ाई के साथ-साथ देश के आर्थिक, शैक्षिक आदि दूसरे तमाम ढांचों को बचाने के जद्दोजहद से गुजर रही हैं। कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए पूर्णबंदी के दौरान स्कूलों को बंद करने का फैसला तो लिया गया, लेकिन अब बंदी में चरणबद्ध तरीके से दी जा रही ढील के दौर में स्कूलों को कैसे खोला जाए, इस पर कोई निर्णय नहीं हो पा रहा है।

एक तरफ संक्रमण का डर है तो दूसरी तरफ बड़े और दीर्घकालिक नुकसानों की आशंका। अब सरकार के सामने यह एक बड़ी चुनौती है कि वह भय के अतिरेक की स्थिति को खत्म कर बचाव और सुरक्षा तय करते हुए एक समूची पीढ़ी की प्रतिभा को बचाने के लिए स्कूलों का संचालन कैसे सुनिश्चित करती है और दूसरी ओर, अर्थव्यवस्था को संभाल कर देश की बुनियाद को फिर से मजबूत करने के लिए क्या कदम उठाती है!

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