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पंजाब में कांग्रेस का संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. कुछ कुछ दिनों के अंतराल पर कैप्टन और सिद्धू के बीच किसी ना किसी बात को लेकर बात बिगड़ ही जाती है
मनोरंजन भारती। पंजाब में कांग्रेस का संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. कुछ कुछ दिनों के अंतराल पर कैप्टन और सिद्धू के बीच किसी ना किसी बात को लेकर बात बिगड़ ही जाती है. पिछले ही हफ्ते कैप्टन और सिद्धू के बीच मुलाकात हुई थी और लगा था कि बात बन गई है..कैप्टन और सिद्धु की मुलाकात में यह तय हुआ था कि 10 सदस्यों की एक पॉलिसी कोर्डिनेशन कमिटी बनेगी जिस पर कैप्टन राजी हुए साथ ही यह भी तय हुआ कि पंजाब के मंत्री एक तय समय और तय दिन पर कांग्रेस भवन में बैठेगें जिससे कि बाकी विधायक वहां आ कर अपनी बात कह सकें और अपने क्षेत्रों की समस्याओं पर मंत्री से जानकारी ले सकें और अपनी सलाह दे सकें मगर इसके कुछ दिनों बाद ही कैप्टन और सिद्धू कैंप से बयानबाजी होने लगी.
हुआ ये कि सिद्धू के दो सलाहकारों के तरफ से कुछ ऐसे बयान आए जो काफी लोगों को नागवार गुजरे. कई लोगों ने इसे कथित रूप से राष्ट्र विरोधी और पाकिस्ताना के सर्मथन वाली टिप्पणी माना. यहां तक कि कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने पूछा कि क्या ऐसे लोगों को कांग्रेस में रहना चाहिएचाहिए..आखिरकार कौन हैं सिद्धू के सलाहकार. पहले तो लोगों को मालुम ही नहीं था कि सिद्धू के कोई सलाहकार भी है. लोगों को बस इतना मालुम था कि उनके पास 4 कार्यकारी अध्यक्ष है. खैर सिद्धू के सलाहकारों का नाम है मालविंदर सिंह माली और प्यारे लाल गर्ग अब इनके बयान के बाद सिद्धू खेमा थोड़ा बैकफुट पर होना चाहिए था मगर जैसा क्रिकेट में होता है कि जब सामने वाला थोड़ा हावी होने लगे तो बल्लेबाज फ्रंट फुट पर यानि आगे आकर बल्ला भांजने लगता है. सिद्धू भी क्रिकेट ऐसे ही खेलते थे और उनके समर्थकों ने ठीक ऐसे ही किया. उनके गुटे के चार मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सुखविंदर सिंह सरकारिया, सुखजिंदर सिंह रंधावा और चरनजीत सिंह चन्नी समेत दो दर्जन विधायकों ने एक बैठक की और बयान दिया कि हम लोग सोनिया गांधी से मिलने जाऐंगे और उनके कड़ा रूख अपनाने के लिए कहेगें. यानि कैप्टन को हटाया जाए. हुआ ये है कि कैप्टन ने इन सभी विधायकों के यहां थोड़ी सख्ती बरतनी शुरू कर दी है जिससे इनके आय के स्त्रोतों पर असर पड़ा है. आखिरकार एक मुख्यमंत्री के पास तमाम तरह के पावर होते हैं.
दूसरे इन विधायकों को नई बनाई गई कमिटी में जगह नहीं दी गई है, यानि कैप्टन गुट ने इन बागी विधायकों को बता दिया है कि चुनाव में इनका क्या होगा क्योंकि सबको पता है चुनाव में कितना पैसा खर्च होता है. क्या सिद्धू के पास इतना पैसा है. प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते यही वजह है कि कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि अगले चुनाव में कैप्टन ही चेहरा होंगे और उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा. यानि कैप्टन चुनाव में भी कैप्टन बने रहेंगे. यही नहीं असली झगड़ा तो टिकट के बंटवारे के वक्त होगा. मगर इस सबसे नुकसान किसका है जाहिर है कांग्रेस का. यही वजह है कि पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले की जानकार मानते हैं कि इनके अहं की लड़ाई में कहीं पार्टी ना हा जाए. यही कहानी है कांग्रेस की उन सभी राज्यों में जहां वो सत्ता में है. यानि कांग्रेस ही कांग्रेस को हराती है और उसका सबसे बड़ा उदाहरण कहीं पंजाब में देखने को नाम मिल जाए.
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