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‘राजनीति’ के मंझे हुए शिकारी होने के बावजूद देश के सबसे मजबूत और कद्दावर कांग्रेसी नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह ‘सियासी शिकार’ बन गए
निशिकांत ठाकुर। 'राजनीति' के मंझे हुए शिकारी होने के बावजूद देश के सबसे मजबूत और कद्दावर कांग्रेसी नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह 'सियासी शिकार' बन गए। उन्हें पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और वह निवर्तमान मुख्यमंत्री बन गए। वैसे राजनीति में राजनीति नहीं होगी तो फिर कहां होगी! यदि आप भावुक हैं और सियासत में भी भावुकता दिखाएंगे तो आपका खंभा चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, आप चाहे कितने भी अच्छे बल्लेबाज क्यों न हों, विरोधी गेंदबाज या तो आपकी गिल्लियां बिखेर देगा और अगर इसमें नाकाम रहा तो फिर आपको हिट विकेट करवा देगा। कैप्टन की पारी गिल्लियां बिखरने से नहीं, बल्कि हिट विकेट के कारण खत्म हुई।
आज से ही नहीं, वर्ष 2014 से ही विरोधियों द्वारा यह कोशिश की जा रही थी कि उन्हें सत्ता के क्रीज से 'आउट' कर दिया जाए, लेकिन सात वर्ष तक ऐसा करना किसी के लिए संभव नहीं हो सका। मुझे याद है कि जब वर्ष 2014 में चहुंओर भाजपा की लहर चल रही थी, उस समय भाजपा की प्रथम पंक्ति के नेता अरुण जेटली (अब दिवंगत) लोकसभा चुनाव लड़ने अमृतसर गए थे। उनके खिलाफ कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी थे। दो दिग्गजों की भिड़ंत को लेकर सियासी बाजार पूरी तरह उद्वेलित था। कहा जा रहा था कि पंजाब में इस बार कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाएगा, लेकिन हुआ उल्टा। कैप्टन अमरिंदर सिंह लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए। यह कैप्टन अमरिंदर सिंह का कद ही था कि अन्य राज्यों की तरह पंजाब में कांग्रेस को शर्मसार नहीं होना पड़ा। वर्ष 1942 में पटियाला राजघराने में जन्मे अमरिंदर सिंह राजनीति में आने से पहले भारतीय सेना में कैप्टन रहे हैं। उन्होंने एक बार सेना की नौकरी वर्ष 1965 में छोड़ दी थी, लेकिन जब पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ तो उन्होंने फिर सेना ज्वाइन कर ली, लेकिन युद्धोपरांत फिर सेना को अलविदा कह दिया।
यह ठीक है कि शीर्ष पर बैठा कोई भी अपने आसपास कुछ ऐसा कर लेता है कि उसे सार्वजनिक सूचना से अलग जानकारी मिलती रहे, क्योंकि बिना खुफिया तंत्र के सहारे राजतंत्र या लोकतंत्र के सर्वोच्च पद पर बैठा कोई भी कुछ नहीं कर सकता। इतिहास बताता है कि चंद्रगुप्त जब सम्राट थे तो उस काल में उनके ससुर सेल्युकश उनके राज्य में आए थे। कुछ दिन रहने के बाद जब अपने देश लौट रहे थे तो सम्राट चंद्रगुप्त ने उनसे अपने आतिथ्य के बारे में जानना चाहा। सेल्युकश ने अपने आतिथ्य की प्रसंशा करते हुए संतुष्टि व्यक्त की, लेकिन उन्होंने कहा कि मेरी समझ में यह बात नहीं आई कि मेरे पीछे राज्य का खुफिया तंत्र क्यों लगा दिया गया था? सम्राट चंद्रगुप्त क्रोधित हुए और मंत्रिमंडल से पूछा। इस पर आचार्य चाणक्य ने कहा कि खुफिया तंत्र ने मेरे कहने पर ऐसा किया है, क्योंकि यह राज्य का दायित्व बनता है कि वह ऐसे लोगों की निगरानी करे जिससे उसके राज्य का हित या अहित हो सकता है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल का अभी पिछले दिनों जो विस्तार हुआ और जिसमें बड़े—बड़े तक नेता खेत रहे, यह बात उन पर भी लागू होती रही। पूर्व केंद्रीय मंत्रियों राजीव प्रताप रूडी, रविशंकर प्रसाद, डा. हर्षवर्धन इसके प्रमाण हैं। इनके जैसे और कई नेता रहे हैं जिनका दावा तो अलग ही था। उनका दिखावा तो यह था कि उनके जैसा काबिल और देशभक्त कोई और हो ही नहीं सकता। इसी सोच के कारण वह हर कार्य में विफल होते रहे। उनकी पोलपट्टी तो तब खुली जब उन्हें सत्ता से बाहर निकाल दिया गया। यदि ऐसा कोई संकेत कांग्रेस हाईकमान को मिल रहा था तो यह उनका अधिकार था कि वह मुख्यमंत्री को तलब करता, उनसे सवाल—जवाब किया जाता। फिर आलाकमान अपने अधिकारों का उपयोग करके पार्टी हित में निर्णय लेता। लेकिन, ऐसा कुछ हुआ होगा, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं हो सकी है। इसलिए किसी के खिलाफ साजिश रचकर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए, यह पार्टी हित में ठीक नहीं है। वह भी ऐसे समय में, जब राज्य में कुछ ही दिनों में चुनाव होने जा रहा हो।
पंजाब में बीते करीब दो सालों से कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले नवजोत सिंह सिद्धू उन्हें सीएम पद से हटाने में तो सफल दिखे हैं, लेकिन अपनी रणनीति में उतने कामयाब नजर नहीं आते। कहा जाता है कि बीते दिनों कैप्टन अमरिंदर सिंह से मतभेदों के बीच उन्हें डिप्टी सीएम पद का भी ऑफर दिया गया था, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया था। इससे साफ संकेत मिलता है कि उनकी महत्वाकांक्षा सीएम पद की रही है। लेकिन, कैप्टन से संघर्ष के बाद जो हालात पैदा हुए, उनमें अमरिंदर सिंह भले ही शुरुआती दौर में पिछड़ते दिख रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने सिद्धू की रणनीति को भी परवान नहीं चढ़ने दिया।
कांग्रेस लीडरशिप ने नवजोत सिंह सिद्धू, प्रताप सिंह बाजवा और सुखजिंदर सिंह समेत तमाम दिग्गज जाट सिख नेताओं के बजाय रामदसिया सिख चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बना दिया। पंजाब की राजनीति के जानकारों का कहना है कि राज्य में 30 फीसदी के करीब दलित आबादी है। ऐसे में पार्टी ने चरणजीत सिंह चन्नी को आपसी गुटबाजी से निपटने और जातीय समीकरणों को साधने के लिहाज से आगे बढ़ाया है। इस तरह से भले ही पार्टी लीडरशिप ने पंजाब में रास्ता निकाल लिया है, लेकिन अभी तो यह पूरी तरह से सिद्धू के खिलाफ ही जाता दिख रहा है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों का एक पत्र कांग्रेस हाईकमान को लिखा। उन्होंने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए लिखा कि कोराेना काल में अपने राज्य में जान—माल की कम से कम हानि होने दिया। बेअदबी मामलों और इसके बाद साल 2015 की पुलिस घटनाओं के मुद्दे पर कैप्टन ने कहा कि उनकी सरकार जो इस मुद्दे पर न्याय को यकीनी बनाने के लिए वचनबद्ध थी, ने जस्टिस (सेवामुक्त) रणजीत सिंह के नेतृत्व में जांच के लिए जुडिशियल कमीशन कायम किया। कैप्टन ने कहा कि उनकी सरकार ने 2017-21 तक बिजली संचार और वितरण ढांचे में 3709 करोड़ रुपये का निवेश किया है। खेती-किसानी को लेकर लिखा कि उनकी सरकार ने 5.64 लाख किसानों को 4,624 करोड़ और 2.68 लाख खेत मजदूरों को 526 करोड़ की कर्ज राहत दी। नशा तस्करी रोकने के लिए विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया। इसके कारण अब तक 62,744 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया, 202 ओट क्लीनिक स्थापित किए।
कैप्टन अमरिंदर ने घर-घर रोजगार योजना, जिसके लिए 22 जिला रोजगार और कारोबार ब्यूरो स्थापित किए गए, कामयाबी के विवरण साझा करते हुए कहा कि इससे 19.29 लाख लोगों को रोजगार मिला। इनमें 62748 सरकारी नौकरियां, 737963 निजी क्षेत्र की नौकरियां और 1093000 स्व रोजगार शामिल हैं। अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी का ध्यान पंजाब को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की तरफ से शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल दर्जा मिलने की तरफ दिलाते हुए इसका श्रेय पंजाब सरकार के शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर सुधार के यत्नों और निवेश को बताया।
पंजाब में अभी 'नई' सरकार ने आकार लेना शुरू ही किया है, इसलिए अभी से इसके बारे में कुछ भी भविष्यवाणी करना उचित नहीं होगा। देखना यह है कि इतनी कवायद के बाद नवजोत सिंह सिद्धू तो मुख्यमंत्री की दौड़ में खेत रहे, लेकिन बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए चरणजीत सिंह चन्नी को जो मुख्यमंत्री पद मिला है, क्या वह उस पद को कैप्टन जैसे कद तक ले जाने में सफल हो पाएंगे? अब निष्कर्ष चाहे जो भी आए, लेकिन असल सवाल यह है कि फिलहाल पंजाब का विपक्ष जो तालियां बजाकर अपनी पीठ स्वयं थपथपा रहा होगा, वह कैप्टन के खिलाफ उन्हीं की टीम द्वारा रचे गए षड्यंत्र का क्या और कितना लाभ उठा पाएगा!
क्या वाकई कैप्टन के इस्तीफे से कांग्रेस को हानि उठानी पड़ेगी या फिर कांग्रेस अपने इस 'कैप्टन' का कोई और सदुपयोग कर विपक्ष को आलआउट करने में कामयाब हो सकेगी! फिलहाल जो उथल पुथल पंजाब की राजनीति में है वह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है क्योंकि यदि कोई क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया होना नई बात नही है । चूंकि अभी तो मंत्रिमंडल का गठन होना शुरू ही हुआ है इसलिए इस पर कुछ कहना बेमानी होगी । इसलिए आने वाले विधान सभा चुनाव तक तो इंतजार करना ही होगा ।
Rani Sahu
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