सम्पादकीय

वेतनवृद्धि का कैनवास

Rani Sahu
21 Dec 2021 6:55 PM GMT
वेतनवृद्धि का कैनवास
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विशेषाधिकार प्राप्त सरकारी कर्मचारी हिमाचल सरकार के वादों और घोषणाओं के मुताबिक, वेतनवृद्धि के कैनवास पर मुस्करा सकते हैं

विशेषाधिकार प्राप्त सरकारी कर्मचारी हिमाचल सरकार के वादों और घोषणाओं के मुताबिक, वेतनवृद्धि के कैनवास पर मुस्करा सकते हैं। यहां प्रदेश की ऊर्जा, राजनीति की प्राथमिकता और वित्तीय संसाधन दिल खोलकर करिश्मा दिखा रहे हैं, तो प्रदेश के दो लाख सरकारी कर्मचारी सरकार की नीयत से संधि कर सकते हैं। यानी प्रदेश की एक और सरकार ने चार कदम आगे चलकर कर्मचारियों का वेतन 15 फीसदी तक बढ़ाते हुए उनकी तीन हजार से 25 हजार तक की पगार बढ़ा दी है। पेंशनरों के लिए भी यह वसंत पंद्रह सौ से बारह हजार तक की मासिक आय बढ़ा देगी। यह दीगर है कि न्यू पेंशन स्कीम के खूंटे पर अटके अरमान अभी इस काबिल नहीं कि इस खाई को पाट सकें। आश्चर्य यह कि कर्मचारी फलक पर हर साल चार हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ उठाकर भी हिमाचल राज्य के माथे पर आर्थिक संकट की कोई शिकन नहीं, जबकि दूसरी ओर रोजगार के घटते अवसरों पर सरकारी खजाने के पास कोई मरहम नहीं। दो लाख सरकारी कर्मचारियों पर न्यौछावर राज्य के वित्तीय संसाधनों पर गौर करें, तो यह मात्र तीन फीसदी संख्या पर खर्च हो रहा है। यह अलग बात है कि राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक कर्मचारी संख्या खड़ी करके हिमाचल का रोजगार सरकारी परिपाटी में ही घूम रहा है, जबकि निजी क्षेत्र या स्वरोजगार की तलाश में कई हिमाचल हमारे आसपास घूम रहे हैं।

दो लाख सरकारी कर्मचारियों के मुकाबले निजी क्षेत्र के तहत पच्चीस लाख लोगों के रोजगार को भी मान्यता मिलनी चाहिए। एक छोटी सी दुकान या रेहड़ी पर कम से कम चार लोगों की जिंदगी दौड़ रही है, तो उनके कल्याण में सार्वजनिक धन का इस्तेमाल हो सकता है। वर्षों से व्यापार मंडलों के मसलों पर छाई खामोशी पर अगर कुछ प्रोत्साहन छिड़क दें, तो रोजगार बढ़ेगा। अगले साल से चार हजार करोड़ अतिरिक्त खर्च करके हिमाचल नया रोजगार पैदा नहीं कर रहा है, लेकिन इतना ही धन अगर रोजगार पैदा करने की अधोसंरचना पर खर्च करें तो क्रांति आ सकती है। सरकारी नौकरी की पूजा करते-करते राज्य का खजाना इतना अक्षम हो चुका है कि इसका दुष्प्रभाव गैर सरकारी रोजगार पर पड़ रहा है। उदाहरण के लिए अगर हिमाचल के संसाधन नए बस स्टैंड, आधुनिक शॉपिंग कांप्लेक्स, हाई-वे टूरिज्म, धार्मिक पर्यटन विकास, नए निवेश केंद्रों, ट्रांसपोर्ट नगरों, आईटी पार्कों, आधुनिक सब्जी मंडियों तथा इसी तरह के स्वरोजगार संकल्पों पर खर्च किए जाएं, तो हर साल कम से कम एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। सौ नए बस स्टैंड कम शॉपिंग कांप्लेक्स, मल्टीप्लैक्स तथा हाई-वे पर बस स्टॉप कम बिजनेस सेंटर ही विकसित करंे, तो यह निवेश रोजगार के अवसर बढ़ाएगा। धार्मिक स्थलों पर माकूल अधोसंरचना का निर्माण, रोजगार के अवसर बढ़ाएगा।
हम यह कदापि नहीं कहेंगे कि सरकारी कर्मचारियों को कितना दिया जाए, लेकिन यह जरूर कहेंगे कि सरकारी निवेश से रोजगार की संपूर्णता में निजी क्षेत्र को भी भागीदार बनाया जाए। इस दृष्टि से स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार परिवहन योजना एक अच्छी पहल हो सकती है। ग्रामीण इलाकों में मिनी बसों व टैम्पो ट्रैवलर के रूट परमिट कई युवाओं को आजीविका का आश्रय दे सकते हैं। इसी तरह युवाओं को अगर कर्मचारी आवासीय सुविधा प्रदान करने का पार्टनर बना दिया जाए, तो ग्रामीण स्तर पर विकसित अधोसंरचना सीधे रोजगार से जुड़ जाएगी। ग्रामीण स्तर के कर्मचारियों व अधिकारियों को सौ फीसदी आवासीय सुविधा प्रदान करने का जिम्मा अगर युवा रोजगार से जुड़े, तो हर डिग्री के मुताबिक निजी भवन निर्माण के तहत युवाओं को जमीन व आसान किस्तों में कर्ज उपलब्ध कराया जा सकता है। इस तरह ग्रामीण युवा अपने तौर पर ऐसी इमारतों के स्वामी बनकर मासिक तौर पर सरकार से जो किराया वसूलेंगे, वह उनके लिए पगार सरीखा होगा। बल्क ड्रग पार्क के तहत अगर प्रदेश के एक हजार विज्ञान स्नातकों को जोड़ा जाए, तो दवाइयों का उत्पादन छोटे-छोटे गांवों तक पहुंच कर रोजगार के अवसर बढ़ा देगा। हिमाचली युवाओं के लिए रोजगार की पेशकश के अनेक अवसर खोजे जा सकते हैं और इसी नजरिए से आउटसोर्स सेवाओं में बढ़ोतरी होगी, लेकिन इस दिशा में बढ़ने के लिए सरकारों को दृढ़प्रतिज्ञ होते हुए एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींचनी होगी, जहां राज्य के संसाधन बराबरी से बंटें तथा नौकरी के मायने सरकारी से निजी क्षेत्र के तहत एक समान हो जाएं।

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