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- अतिक्रमण का नासूर
Written by जनसत्ता: अवैध कब्जों और अतिक्रमण से देश की अर्थव्यवस्था भी जुड़ी है। इन्हीं से न जाने कितने जाम हादसे प्रतिदिन होते हैं और बेहिसाब धन, ईंधन , जन ऊर्जा के साथ कीमती समय की बर्बादी के साथ बड़ा प्रदूषण भी होता है। असल में इसके जिम्मेदार मुख्यत: स्थानीय निकाय, उनके अधिकारी, नेता और नौकरशाह हैं। आज यह मुद्दा माननीय सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, जिसमे जनता को पूरी आशा है कि वह इसके लिए एक ऐसा हल जरूर देगी, जिससे सभी को राहत मिलेगी और देश आर्थिक रूप से भी आगे बढ़ेगा।
तभी यह बड़ी समस्या स्थायी रूप से हल हो सकती है। इसके अलावा, सभी सम्बंधित लोगों को जिम्मेदार बनाया जाना जरूरी है। आज दुर्भाग्य से गांव से लेकर महानगरों तक की गलियां, सड़कें, फुटपाथ और नदी-नाले तक इसके शिकार हैं। इसलिए इस नाजुक दौर में इन सभी का पुनर्निर्धारण और सख्त क्रियान्वयन भी अच्छे मास्टर प्लान के साथ अत्यंत जरूरी है।
कश्मीर घाटी में अब पिछले डेढ़-दो साल से बहने लगी है विकास की बयार, जिसे वहां का आम आदमी भी महसूस करने लगा है। निस्संदेह अनुच्छेद 370 हटने के बाद आज कश्मीर में काफी कुछ बदला है और यह बदलाव लगातार देखने को भी मिल रहा है। इसलिए आज वहां भाड़े के पाकिस्तानी आतंकवादियों के सिवा आतंक की बात कोई नहीं करता। मगर फिर भी आज वहां चुनाव से पहले जो भी बचा हुआ आतंकवाद है उसे समाप्त करने की चुनौती सेना और केंद्रीय प्रशासन बल को मिली हुई है और इसमें उसे काफी हद तक सफलता भी मिली है।
प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर कश्मीर घाटी के विकास के लिए बीस करोड़ की सौगात देकर कहा कि यहां के पुराने बुजुर्गों ने चाहे यहां पर काफी तकलीफें उठाई हों, पर आज की युवा पीढ़ी को अब उन तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ेगा। अब लगता है कि कश्मीरी युवा भी आगे बढ़ कर केंद्र सरकार का साथ पूरी तरह से दे रहा है और यहां शांति स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहा है। अब जरूरत इस बात की है कि जो भी वहां पर भेजे गये पाकिस्तानी भाड़े के आतंकवादी हैं, उन्हें घाटी में जहां जहां से भी जनसमर्थन मिल रहा है, उसे अब खत्म किया जाना चाहिए।
हर वर्ष हमारे देश में 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। यह दिवस हमें अवसर प्रदान करता है कि ग्रामीण क्षेत्र की इस महत्त्वपूर्ण संस्था को सक्षम बनाने के लिए कुछ आधारभूत सुधार किए जाएं। ग्राम पंचायतें आज संसाधनों के अभाव से जूझ रही हैं। ग्राम न्यायालयों को भी पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है, ताकि छोटे-मोटे विवाद स्थानीय स्तर पर ही हल हो सकें। ग्राम सभाओं को भी अधिकार संपन्न बनाया जाना चाहिए। टेलीफोन, इंटरनेट, ग्राम पंचायत भवन और कर्मचारियों की पर्याप्त व्यवस्था करके ही ग्रामीण क्षेत्र में व्यवस्थाओं को सुचारू किया जा सकता है।