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आंकड़ों में यह दक्षिणी राज्य काफी आगे
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने राज्य के लोगों को आगाह किया कि अगर 2022 के विधानसभा चुनावों (Assembly Election) में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को वोट नहीं दिया तो राज्य के हालात केरल, कश्मीर या बंगाल जैसे हो जाएंगे. यूपी के सीएम के इस बयान की विपक्ष, खासतौर पर केरल में सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और विपक्षी कांग्रेस के राजनेताओं ने कड़ी आलोचना की है. हालांकि यह स्पष्ट है कि यूपी के सीएम ने तीनों क्षेत्रों की जनसांख्यिकीय विशेषताओं के बारे में (झूठा) भय दिखाया है, लेकिन इससे केरल के विकास मॉडल और यूपी के साथ इसकी तुलना पर काफी चर्चा हो रही है. इसी बीच केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने उत्तर प्रदेश और केरल के विकास की तुलना वाले आंकड़ों की एक सीरीज भी ट्वीट किया है.
केरल का जीवन स्तर यूपी से कहीं आगे
आइए कुछ आर्थिक संकेतकों के जरिए इसकी पड़ताल कर लेते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 में केरल का प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद 2.2 लाख रुपये था, जो कि यूपी से तीन गुना ज्यादा है. लेकिन ये आंकड़े दोनों राज्यों की आबादी के जीवन स्तर की पूरी तस्वीर सामने नहीं रखते. साल 2011-12 के नेशनल सैंपल सर्वे की जो लेटेस्ट डेटा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है उसके अनुसार केरल की 7 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही थी. जबकि उत्तर प्रदेश के लिए ये आंकड़ा 29 फीसदी था. इसका अर्थ यह हुआ कि केरल की प्रति नागरिक आर्थिक अहमियत कहीं ज्यादा है और वो भी समाज के गरीब वर्गों के कल्याण से गंभीर रूप से समझौता किए बिना.
केरल स्वास्थ्य और शैक्षणिक सुविधाओं में बेहतर
सामाजशास्त्र के जानकारों ने 1970 के दशक से ही केरल की विकास गति का लगातार उल्लेख किया है. देश और कई क्षेत्रों की तुलना में कम आय के बावजूद केरल बतौर राज्य पचास साल पहले से ही अपने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य और शैक्षिक सुविधाएं देता आ रहा है. राज्य की इन योजनाओं और नीतियों के पीछे दरअसल समानता और प्रतिनिधित्व के वे लंबे संघर्ष रहे, जिनके दबाव में सरकार ने सामाजिक विकास के लिए पब्लिक इंवेस्टमेंट बढ़ाया. हालांकि पिछले कुछ दशकों में जनकल्याण को लेकर यूपी में कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन केरल की तुलना में इसे अभी भी खासा लंबा सफर तय करना है. अगर अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक और लैंगिक समानता के ताजा आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो ये स्थिति खुद ही स्पष्ट हो जाती है.
यह जीवन-स्तर के दूसरे संकेतकों से यह और अधिक स्पष्ट हो जाता है. बहुआयामी गरीबी पर हाल ही में जारी नीति आयोग की रिपोर्ट में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 2015-16 के आंकड़ों के आधार पर ये पड़ताल की गई कि किस राज्य में कितनी आबादी अभाव में अपना जीवन यापन कर रही है. इस सर्वे में केरल में केवल 0.7 प्रतिशत ही गरीबों की हिस्सेदारी सामने आई, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के मानकों में किसी न किसी रूप में अभाव का सामना कर रहे थे. केरल का यह आंकड़ा पूरे देश में सबसे कम था.
वहीं 38 प्रतिशत की बहुआयामी गरीब आबादी के साथ उत्तर प्रदेश नीचे से तीसरे स्थान पर रहा. नीति आयोग की रिपोर्ट में सबसे ताजा आंकड़े NFHS 2019-21 सर्वे के शामिल किए गए हैं जिसमें कई मानकों की लेटेस्ट वैल्यू दी गई है. कोविड 19 महामारी की वजह से दो चरणों में हुआ ये सर्वे यूपी और केरल के बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर सामने लाता है.
साक्षरता में केरल की मिसाल दी जाती है
शिक्षा के मामले में देखा जाए तो केरल में 15-49 के आयु वर्ग के पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर करीब 97 फीसदी है. जबकि उत्तर प्रदेश में इस आयु वर्ग के साक्षर पुरुषों की संख्या 82 फीसदी और महिलाओं की 66 फीसदी है. दोनों राज्यों के बीच का ये अंतर आगे और भी बढ़ जाता है. केरल में लगभग 77 प्रतिशत महिलाओं ने कम से कम 10 साल की स्कूली शिक्षा प्राप्त की है. जबकि यूपी में ये संख्या महज 39 प्रतिशत है. अगर हेल्थ सेक्टर की बात करें तो केरल में शिशु मृत्यु दर जहां प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 4.4 है, वहीं उत्तर प्रदेश में यह 50.4 है. सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश की तुलना में केरल में लोगों की आयु भी ज्यादा लंबी होती है. केरल में पैदा हुए व्यक्ति की औसतन आयु 75 वर्ष है, तो यूपी में यह 65 वर्ष है. यानी सीधे दस साल कम. स्वच्छता सुविधाओं की बात करें तो केरल में महज एक प्रतिशत घरों में बेहतर स्वच्छता सुविधाओं जैसे कि फ्लश टू पाइप सीवर सिस्टम की पहुंच नहीं है तो यूपी के 31 प्रतिशत घरों में ये सुविधा अब तक नहीं पहुंची है.
हालांकि केरल में भी अभी सुधार की बहुत गुंजाइश बाकी है, लेकिन मौजूदा उपलब्धियां राज्य के जनहित वाली विकास नीतियों को ही दर्शाती हैं. हाल में कोविड 19 महामारी के दौरान भी इसका नमूना देखने को मिला, जब सरकार ने उन लोगों के लिए भी कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की जो महामारी के कारण आए आर्थिक संकट से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. कोरोना के कहर के दौरान केरल में दूसरे राज्यों की तुलना में मृत्यू दर बहुत कम रहने की वजह यहां की विकेंद्रीकृत सरकार के साथ हेल्थ केयर सेक्टर का प्रभावी ढंग से काम करना माना जा रहा है. इस अवधि के दौरान केरल में शिक्षा सेवाओं की पहुंच भी अधिक रही जिसमें लगभग 91 प्रतिशत स्कूली बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे. जबकि यूपी में ये आंकड़ा महज 14 प्रतिशत था. इसके अलावा केरल की नई राज्य कल्याण योजनाओं में प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को भी शामिल किया गया है.
ये तो यूपी और केरल के बीच विकास के मामले में भारी अंतर के कुछ उदाहरण हैं. ऐसा नहीं है कि यूपी के सीएम के पास ये आंकड़े मौजूद नहीं होंगे या उनको इस दक्षिणी राज्य की विकास और कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होगी. ऐसे में केरल की इन नीतियों को अपनाने के बजाय, योगी आदित्यनाथ तत्काल चुनावी लाभ के लिए जनता के मन में डर बैठा रहे हैं. केरल के नाम का खौफ बिठाने के बजाय बेहतर होगा कि यूपी सरकार और बीजेपी अलग-अलग स्त्रोतों के आंकड़ों पर गौर करें.
(डिस्क्लेमर: लेखक फाउंडेशन फॉर एग्रेरियन स्टडीज, बेंगलुरु में एसोसिएट फेलो हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई राय और तथ्य जनता से रिश्ता के रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.)
Gulabi
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