सम्पादकीय

क्या एक-दूसरे से भयभीत होने के कारण बनी शांति सचमुच हितकारी हो सकती है

Rani Sahu
1 Sep 2021 4:40 PM GMT
क्या एक-दूसरे से भयभीत होने के कारण बनी शांति सचमुच हितकारी हो सकती है
x
1 सितंबर 1939 को दूसरे विश्व-युद्ध का प्रारंभ हुआ था। इसके कुछ वर्ष पूर्व वैश्विक आर्थिक मंदी का दौर प्रारंभ हुआ था

जयप्रकाश चौकसे। 1 सितंबर 1939 को दूसरे विश्व-युद्ध का प्रारंभ हुआ था। इसके कुछ वर्ष पूर्व वैश्विक आर्थिक मंदी का दौर प्रारंभ हुआ था। उस कमी के दौर में पूंजीवादी लोग दावत दे रहे थे और मौज में थे। तत्कालीन फिल्म 'दी ग्रेट गैट्सबी' में यही विषय था। वर्तमान में भी साधन संपन्न लोग विषम हालात और भयावह भविष्य को नजर अंदाज कर रहे हैं।

जर्मनी में बेरोजगारी को हिटलर ने अपने ढंग से सुलझाया। उसने बंदूक, तोप, बारूद इत्यादि हथियारों के कारखाने शुरू किए। बेरोजगारों को काम मिला। उन्होंने हिटलर को महान अवतार माना। उस दौर की फिल्मकार लेनी रिफेंस्थॉल ने ऐसे वृत्त-चित्र बनाए कि हिटलर की छवि महान हो गई। कमोवेश जर्मनी बारूद का ढेर बन गया और हिटलर रूपी माचिस को पहरेदार बना दिया गया।
मानव इतिहास में ऐसी नकारात्मकता और संकीर्णता बार-बार घटित होती है। दोष तो आम आदमी का है, जो आसानी से भटक जाता है। वह भ्रष्ट होने और भेड़चाल पर चलने के लिए हमेशा तत्पर रहता है। तमाशबीन ही तमाशा बन जाता है। दूसरे विश्वयुद्ध का विवरण देने वाली कई फिल्में बनी हैं जिनके आधार पर भी उस भयावह काल-खंड का सारा विवरण हमें मिल सकता है।
उस युद्ध में अमेरिका ने पूंजी लगाई, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल ने रणनीति बनाई और सबसे अधिक संख्या में रूस ने लोग खोए। पराजय से रू-ब-रू होते ही हिटलर ने आत्महत्या कर ली। क्या इससे नकारात्मक नाजीवाद मर गया? नाजीवाद कहीं कोने में दुबका बैठा है और अवसर की तलाश में है।
बहरहाल रूस में बनी 'बॅलाड ऑफ ए सोल्ज़र' और 'द क्रेंस आर फ्लाइंग' कालजयी फिल्में हैं। 'समर ऑफ 1942' एक अनूठी फिल्म है। युद्ध के कारण विधवा हुई स्त्री और कमसिन वय के किशोर की कथा है 'बॅलाड ऑफ ए सोल्ज़र'। फिल्म में एक सैनिक को साहसिक कार्य के लिए छुट्टी मिलती है उसके साथी उसे उनके परिवार के लिए पत्र देते हैं।
उनका परिवार से संपर्क टूटे लंबा समय हो चुका है। जब वह एक साथी का पत्र उसकी पत्नी को देने जाता है, तो उसे घोर दुख होता है क्योंकि साथी की पत्नी परिवार पालने के लिए शरीर बेच रही थी। सैनिक का वेतन दिन-ब-दिन बढ़ती महंगाई से कम पड़ता है। वह महिला मजबूरी में यह काम कर रही है। युद्ध के गर्भ में महंगाई और बीमारियां पल रही होती हैं।
धरती के कण-कण में विष समा जाता है। जब युद्ध समाप्त होने जा रहा था तब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर अणु बम गिराए, जिसके दुष्प्रभाव, जापान में कई पीढ़ियों ने भुगते। अमेरिका पूरे विश्व का स्वयं-भू पहरेदार है। वियतनाम और कोरिया में अनावश्यक युद्ध छेड़े गए जिससे अनेक लोग आहत हुए।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद हिटलर का हुक्म मानने वालों पर न्यूरेमबर्ग में मुकदमा चला। उनका तर्क था कि अगर वे हिटलर की आज्ञा नहीं मानते तो वह उन्हें ही मार देता। यह हमारे बड़े दोष को रेखांकित करता है कि हम ऐसे समय अपना विवेक और तर्क सम्मत विचार प्रणाली को ध्वस्त कर भेड़ों जैसा आचरण करने लगते हैं। शेक्सपियर ने कहा है कि शत्रु स्वयं मनुष्य के अंदर बैठा है।
वर्तमान में अनेक देशों के पास अणु बम हैं। इसलिए कोई युद्ध नहीं चाहता। गुरिल्ला जंग सीमित क्षेत्र में होती रहती है। क्या एक-दूसरे से भयभीत होने के कारण बनी शांति सचमुच हितकारी हो सकती है? इस विषय में साहिर लुधियानवी ने चेतावनी दी है 'गुज़श्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार, अजब नहीं कि ये तनहाइयां भी जल जाएं।
गुज़श्ता जंग में पैकर (शरीर) जले मगर इस बार, अजब नहीं कि ये परछाइयां भी जल जाएं।' दूसरे विश्वयुद्द में डीडीटी एक हथियार की तरह बनाया गया। युद्ध में उपयोग नहीं किया गया। बाद में इसे कीटनाशक की तरह बेचा गया। खेतों में इसके उपयोग से धरती अपनी उपजाने की क्षमता काफी हद तक खो चुकी है। संभवत: यही युद्ध का सबसे घातक परिणाम माना जा सकता है।


Next Story