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वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में प्रमुख एशियाई देशों की भूमिका ओर अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है
ज्योतिर्मय रॉय वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में प्रमुख एशियाई देशों की भूमिका ओर अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। पिछले दशक से एशिया का महत्व काफी बढ़ गया है। दुनिया के तीन प्रमुख भू-राजनीतिक खिलाड़ी और सैन्य शक्तियां – संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस को एशिया में अपनी प्रगति दिखती हैं संयुक्त राज्य .अमेरिका और चीन के बीच मतभेद क्रमशः बढ़ता जा रहा हैं. चीन और रूस रणनीतिक साझेदार हैं और रूस चीन के हर फैसले से सहमत नजर आता है. 26 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ के पतन के बाद, विश्व शक्ति ध्रुवीकरण संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन पर केंद्रित है. चीन की 'विस्तारबाद नीति' की वजह से दुनिया का ध्रुवीकरण द्रुतगति से गहराता जा रहा है.
संयुक्त राज्य अमेरिका चीन और रूस का मुकाबला करने के लिए नाटो को मजबूत करने के साथ-साथ 'ऑकस' समझौते और 'क्वाड' सुरक्षा वार्ता के माध्यम से एशिया-प्रशांत देशों के साथ संबंधों को ओर मजबूत करने में लगा हुआ है. बीजिंग और मास्को ने भी अमेरिका और उसके सहयोगियों का संयुक्त रूप से विरोध करने के लिए एक अनौपचारिक गुट पर काम करना शुरू कर दिया है.
दक्षिण चीन सागर में जासूसी तेज
बीजिंग और मॉस्को ने इस साल 16 से 23 अक्टूबर तक प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से में युद्धपोतों का इस्तेमाल करते हुए पहला संयुक्त गश्त किया था। रूस के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि संयुक्त गश्त का उद्देश्य रूस और चीन के राज्य के झंडे को प्रदर्शित करना, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखना और दोनों देशों की समुद्री आर्थिक गतिविधियों को सुरक्षित करना है, इस संयुक्त गश्त के माध्यम से वे जापान और अन्य राज्यों की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि चीनी और रूसी युद्धपोतों ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया. इसने वाशिंगटन के साथ-साथ 'ऑकस' और 'क्वाड' के देशों को चीनी-रूस मित्रशक्ति की प्रतिबद्धता को दर्शाया है. रूस पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में चीन का एक मजबूत और विश्वसनीय भागीदार है.
चीन दक्षिण चीन सागर में अपनी नौसेना को स्थायी रूप से रखने का बहाना ढूंढ रहा है
अमेरिका ने इस साल दक्षिण चीन सागर में जासूसी तेज कर दी है. चीन और रूस के संयुक्त पनडुब्बी रोधी अभियान ने सभी देशों का ध्यान खींचा है। 2 अक्टूबर को, एक अमेरिकी परमाणु पनडुब्बी दक्षिण चीन सागर के तल पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जो इस क्षेत्र में एक गुप्त मिशन पर था. चीन का कहना है कि पिछले एक साल में अमेरिका ने वहां जासूसी के लिये 11 बार पनडुब्बियां भेजी हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका के पास दुनिया की सबसे ज्यादा परमाणु संचालित 68 पनडुब्बियां हैं. अगर अमेरिका इस क्षेत्र में रणनीतिक नाकाबंदी करना चाहता है, तो चीन और रूस संयुक्त रूप से अमेरिका की रणनीतिक और सैन्य नाकाबंदी का मुंहतोड़ जवाब देने के लिये तैयार बैठा है. चीन अपने सामरिक हितों को कायम रखने के लिए अपनी नौसेना को गहरे समुद्र में जरूर लाएगा और चीन गहरे पानी में ओर अधिक युद्धाभ्यास करेगा. चीन अपनी नौसेना को यहां स्थायी रूप से रखने का बहाना ढूंढ रहा है.
चीन की सहायता के लिए उत्तर कोरिया आगे आ सकता है
'ऑकस' का गठन चीन और रूस जैसे रणनीतिक प्रतिस्पर्धियों को चुनौती देने के लिए किया गया है और प्राथमिक स्तर पर स्थिति को सम्हालने के लिये ऑस्ट्रेलिया को अग्रिम पंक्ति में रखने कि व्यवस्था की गई है. हालांकि ऑस्ट्रेलिया के पास रूस के साथ अग्रिम पंक्ति में लड़ने के लिए समान सुविधाएं और अवसर नहीं हैं, लेकिन निकट भविष्य में अमेरिका अपनी दोस्ती और विश्व महाशक्ति की छवि को बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकता है. अन्यथा, अमेरिका महाशक्ति के रुतबे से बाहर हो जाएगा, जो विश्व शक्ति संतुलन के क्षेत्र में हानिकारक सिद्ध होगा.
प्रश्न यह है कि, क्या 'क्वाड' और 'ऑकस' गठबंधन से चीन-रूस को रोका जा सकता है? अगर युद्ध छिड़ता है, तो चीन की सहायता के लिए उत्तर कोरिया आगे आ सकता है. सम्भवतः इसका पहला लक्ष्य उत्तर पश्चिमी जापान के द्वीप और संयुक्त राज्य अमेरिका में गुआम जैसे क्षेत्र होंगे. अमेरिकी रक्षा खर्च को देखकर ऐसा लगता है कि वे लंबे समय तक नौसेना बलों को तैनात करने में सक्षम नहीं होंगे, और इस वक्त फ्रांस पर अधिक निर्भर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि, ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका पनडुब्बी सौदे को लेकर फ्रांस पहले से ही अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से नाराज है.
चीन अपनी उग्र 'विस्तारबाद नीति' और आक्रामक चरित्र के कारण विश्व-निन्दित है
चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच शीत-युद्ध अब दक्षिण चीन सागर में, अफगानिस्तान में, मध्य एशिया में, मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में, पूर्वी यूरोप में, अफ्रीका में और प्रशांत क्षेत्र में उग्र हो रहा है. चीन अपनी उग्र 'विस्तारबाद नीति' और आक्रामक चरित्र के कारण विश्व-निन्दित है. पड़ोसी देश होने के कारण इसका खामियाजा भारत को भी भुगतना पड़ रहा है. भारत, चीन के साथ 3488 किलोमीटर की सीमा साझा करता है, जो जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के साथ लगा है. इस बीच भारत की धरती पर चीन के कब्जे की खबरें आ रही हैं.
मलक्का जलडमरूमध्य अवरोध पैदा करके चीन का मुकाबला किया जा सकता है
भारत को मलक्का जलडमरूमध्य पर अपनी पकड़ मजबूत करने की जरूरत है. प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच जलमार्ग में स्थित होने के कारण इसका बहुत महत्व है. यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ता है. इस जलमार्ग से तेल की आपूर्ति जापान, चीन, कोरिया को जाती है. रणनीति के तहत, इस व्यापार मार्ग पर महत्वपूर्ण अवरोध पैदा करके चीन का मुकाबला किया जा सकता है. क्या 'क्वाड' ऐसा करने की स्थिति में है? इस बीच, पेंटागन को यह स्वीकार करना पड़ा कि चीन का बेड़ा और नौसेना दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक है. चीन मलक्का मार्ग में शामिल जोखिमों से भी अवगत है. अपने व्यापार और तेल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, चीन ने मलक्का को छोड़कर हिंद महासागर में प्रवेश करने के लिए वैकल्पिक मार्ग तलाशना शुरू कर दिया है. वर्तमान में चीन के समक्ष दो विकल्प उपलब्ध हैं; पहला सीपीईसी या पाकिस्तान के माध्यम से है, जो हिंद महासागर तक चीन के लिये सबसे सुविधाजनक पहुंच मार्ग होगी; दूसरी थाई नहर है, जो थाईलैंड के इस्तमुस में मलय प्रायद्वीप का सबसे संकरा बिंदु है, जो चीन से हिंद महासागर के लिए दूसरा समुद्री मार्ग खोलेगा। यह थाई नहर, या क्रा नहर, चीनी नौसेना को दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में अपने नवनिर्मित दक्षिण चीन सागर के ठिकानों के बीच जहाजों को जल्दी से स्थानांतरित करने में सहायक सिद्ध होगा. मलक्का जलडमरूमध्य पूरे मलेशिया में 700 मील से अधिक की दूरी तय करेगा. चीन थाईलैंड को नहर बनाने के लिए 30 बिलियन तक का भुगतान कर रहा है. इन दोनों रास्तों के बन जाने के बाद चीन इस क्षेत्र में और ताकतवर हो जाएगा.
इससे पहले, 'इंडो-पैसिफिक' की अवधारणा 2018 में इस क्षेत्र में चीन से निपटने के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर बनाई गई थी. विशेष रूप से 30 मई, 2018 को, अमेरिकी रक्षा सचिव जिम मैटिस ने घोषणा की कि पेंटागन की प्रशांत कमान का नाम बदलकर "इंडो-पैसिफिक कमांड" कर दिया जाएगा, जो चीन को नियंत्रित करने और उसका विरोध करने के लिए प्रशांत क्षेत्र में भारत एक बड़ी भूमिका निभाएगा. यह वाशिंगटन के लिए एक महत्वपूर्ण नीति परिवर्तन था. विशेषज्ञों का मानना है कि, वर्तमान घटनाओं और संभावनाओं के संदर्भ में, सीपीईसी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे भविष्य में पाकिस्तान के आर्थिक विकास के स्तंभ के रूप में उभर के आएगा. इमरान खान ने कहा है कि, "हमारी अर्थव्यवस्था का भविष्य सीपीईसी परियोजना से जुड़ा हुआ है"
उस वक्त कोई नहीं जानता था कि भारत अपना वादा कितना निभा पाएगा या नहीं. क्या यह परिवर्तन वास्तव में चीन के लिए एक प्रतिकार के रूप में काम कर सकता है? क्या यह संयुक्त राज्य अमेरिका को चीन और उसकी बढ़ती शक्ति को "नियंत्रित" करने में मदद कर पाएगा? हालांकि, 18 महीने में ऐसा कुछ नहीं हुआ.
पैंगोंग झील और गलवान घाटी के महत्वपूर्ण सुविधाजनक बिंदुओं पर दावा करते हुए चीन भारत के कब्जे वाले लद्दाख की सीमा से घुसपैठ करता रहा है. भारत की ओर से इसका विरोध हो रहा है. विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, चीनी सेना ने भारतीय सेना के बिना किसी प्रतिरोध के लद्दाख में प्रवेश किया है और क्षेत्र की वापसी पर चर्चा करने में बहाना बना रहा है. चीनी कार्रवाइयों से उत्साहित होकर, नेपाल भारतीय सीमा के भीतर क्षेत्र का दावा कर रहा है, नगालैंड और पूर्वी क्षेत्र भी भारतीय संघ के खिलाफ आवाज उठा रहा हैं, बांग्लादेश ने 'बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' (BRI) में शामिल होने के लिए चीन के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. श्रीलंका ने कोलंबो के बंदरगाह को चीन को पट्टे पर दिया है. चीन ने म्यांमार को सामरिक सहायता प्रदान की है. ईरान ने चीन के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. तालिबान अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के प्रयास में चीन के साथ बातचीत कर रहा है. सिक्किम में भी चीन की सीमा पर दबाव बढ़ गया है. पाकिस्तान में ग्वादर और ईरान में चाबहार ने बिना किसी विदेशी प्रतिरोध के चीन अपनी गतिविधियों को पूरी ताकत से जारी रखा है. भारत के पड़ोसी देशों में चीन की पकड़ मजबूत होता जा रहा है, जो ना केवल भारत के लिए चिंता का विषय है, बल्कि सुपरपावर अमेरिका और मित्रों देशों के लिए एक चुनौती है.
चीन को वैश्विक आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है
इस स्थिति में, संपूर्ण इंडो-पैसिफिक अवधारणा की स्थिति पर और विचार किया जाना चाहिए. संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी नहीं चाहेंगे कि एक शक्तिशाली पश्चिमी गठबंधन की अवधारणा के बारे में संदेह पैदा हो.
चीन की आक्रामक मानसिकता के कारण उसकी सामरिक शक्ति, भविष्य में विश्व के लिए आतंक का विषय बन सकता है. चीन को रोकने का एकमात्र सशक्त माध्यम है वैश्विक आर्थिक प्रतिबंध. अगर चीन अपनी आक्रमक विचारधारा नहीं बदलता है, तो देर-सबेर उसे वैश्विक आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा, जो दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के लिए फायदेमंद नहीं है.
Rani Sahu
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