सम्पादकीय

क्या गोवा विधानसभा चुनाव में बागी बीजेपी की बाजी पलट सकते हैं?

Rani Sahu
4 Feb 2022 2:32 PM GMT
क्या गोवा विधानसभा चुनाव में बागी बीजेपी की बाजी पलट सकते हैं?
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भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए गोवा (Goa) में बागी उम्मीदवार बड़ा सिरदर्द साबित हो रहे हैं

अजय झा

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए गोवा (Goa) में बागी उम्मीदवार बड़ा सिरदर्द साबित हो रहे हैं, जहां आने वाले 14 फरवरी को विधानसभा चुनाव (Assembly Election) होने हैं. हालांकि, बीजेपी लीडरशिप कई सीटों पर बगावत को शांत करने में सफल रही है, फिर भी पणजी, मंड्रेम, संगुएम और कंबरजुआ की बगावत पार्टी के लिए चिंता का सबब बन गई है. इन बागी उम्मीदवारों में पूर्व मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर (मंड्रेम) और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर (पणजी) शामिल हैं
उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कावेलकर की पत्नी सावित्री कावेलकर ने बीजेपी की ओर से प्रत्याशी और पूर्व विधायक सुभाष फलदेसाई को लगातार परेशानी में डाल रखा है. कंबरजुआ सीट से बीजेपी के प्रत्याशी जनिता मडकाईकर को भी बागी उम्मीदवार रोहन हरमलकर से खतरा बना है जो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. गोवा जैसे छोटे राज्य में बगावत होना कोई नई बात नहीं है और लगभग सभी पार्टियां ऐसी स्थिति का सामना करना सीख चुकी हैं. हालांकि, कम से कम चार सीटें ऐसी हैं जहां बागी उम्मीदवार बीजेपी की संभावना को चोट पहुंचा रहे हैं, इनमें से दो सीटों पर तो स्थिति काफी गंभीर है.
दूसरे दल से आए नेता बीजेपी के लिए गंभीर चुनौती साबित हो रहे हैं
गोवा जैसे राज्य की समस्या यह है कि यहां विधानसभा सीटों (40) की संख्या सीमित है, जबकि टिकट के दावेदारों की संख्या अधिक है. इस बार बीजेपी की समस्या और बढ़ गई क्योंकि उसे 2017 के चुनाव में त्रिशुंक विधानसभा में बहुमत हासिल करने के लिए कांग्रेस से लाए गए 13 विधायक और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी से लाए गए 2 विधायकों को भी एडजस्ट करना था.
हालांकि, यहां बीजेपी के स्थानीय नेताओं की मजबूत टीम है, लेकिन दूसरे दल से आए नेता उसके लिए गंभीर चुनौती साबित हो रहे हैं. दूसरी पार्टियों से लाए गए नेताओं की अनदेखी करना बीजेपी के लिए संभव नजर नहीं आता, क्योंकि इससे भविष्य में बीजेपी के प्रति विश्वसनीयता का खतरा पैदा होता है, दूसरी ओर यदि बीजेपी उन्हें टिकट देती है तो उसे अपने नेताओं के दावे को नजरअंदाज करने का खतरा पैदा होता है.
पार्टी ने जैसे ही उम्मीदवारों की अपनी लिस्ट जारी की, व्यापक स्तर पर असंतोष के हालात बन गए. पार्टी के खिलाफ बगावत करने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री, दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे, उपमुख्यमंत्री की पत्नी और गोवा का प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय मंत्री के बेटे शामिल हैं. हालांकि, पार्टी को सबसे अधिक चुनौती पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर से मिल रही है, वे अपने पिता की पारंपरिक सीट पणजी से चुनावी मैदान में हैं.
बीजेपी अपने 'एक परिवार-एक टिकट' वाले सिद्धांत को छोड़ चुकी है
बीजेपी उधर केंद्रीय मंत्री श्रीपद नाइक के बेटे सिद्धेश नाइक को यह समझाने में सफल हुई है कि वे कंबरजुआ सीट से अपना नाम वापस ले लें. वैसे तो बीजेपी अपने 'एक परिवार-एक टिकट' वाले सिद्धांत को छोड़ चुकी है, लेकिन जूनियर नायक के दावे को इसलिए नजरअंदाज किया गया क्योंकि बीजेपी ने मौजूदा विधायक पांडुरंग मडकाईकर की पत्नी जनिता मडकाईकर को चुनावी मैदान में उतारा है. नायक जूनियर तो नरम पड़ गए लेकिन इससे जनिता की राह आसान नहीं हुई क्योंकि उन्हें रोहन हरमलकर के रूप में नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
लक्ष्मीकांत पार्सेकर, साल 2002 से 2012 के बीच तीन बार बीजेपी से चुनाव जीत चुके हैं, जब मनोहर पर्रिकर 2014 में बतौर रक्षा मंत्री केंद्र सरकार में शामिल हुए थे तब उन्होंने पार्सेकर को ही मुख्यमंत्री का पद सौंपा था. लेकिन, 2017 में मिली चुनावी हार की वजह से उन्हें बदनामी का सामना करना पड़ा था. उन्हें हराने वाले दयानंद सोपते, कांग्रेस के उन विधायकों में से एक थे जिन्होंने 2017 के चुनाव के बाद बीजेपी का दामन थाम लिया था, और फिर इस सीट के उपचुनाव में बतौर बीजेपी प्रत्याशी उन्होंने जीत हासिल की थी. ऐसे हालात में बीजेपी सोपते को टिकट देने से मना नहीं कर सकती थी, लेकिन पार्सेकर भी इतिहास बनने के लिए तैयार नहीं थे और उन्होंने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार नामांकन दाखिल कर दिया.
लड़ाई बीजेपी बनाम पूर्व-बीजेपी हो गई है
सोपते को आठ दूसरे उम्मीदवारों से भी चुनौती मिल रही है, इनमें गोवा फॉरवर्ड पार्टी, शिवसेना, आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार शामिल हैं. पार्सेकर भले ही अब कमजोर हो चुके हैं लेकिन अभी वे इतने सक्षम हैं कि बीजेपी को पसीना छुड़ा सकते हैं. जहां तक बात उत्पल पर्रिकर की है तो उन्होंने पणजी सीट पर चुनावी लड़ाई को बीजेपी बनाम पूर्व-बीजेपी बना दिया है.
कुल मिलाकर, वहां से सात उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. इनमें मौजूदा विधायक अतानासियों मोनसेरेट भी शामिल हैं, जो मनोहर पर्रिकर की मृत्यु के बाद 2019 उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से यहां से चुनाव जीते थे, और ऐसा पहली बार हुआ था जब 30 सालों बाद कोई कांग्रेसी नेता यहां से चुनाव जीता हो. लेकिन कांग्रेस के लिए जीत की यह खुशी अधिक दिन तक नहीं टिकी क्योंकि 2019 में जिन 10 कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी का हाथ थामा था उनमें मोनसेरेट भी शामिल थे.
और आम आदमी पार्टी ने भी पणजी सीट से अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, हालांकि इन्हें रेस से बाहर माना जा रहा है. कांग्रेस के प्रत्याशी एल्विस गोम्स, जिन्होंने गोवा में आप पार्टी की नींव रखी थी, पणजी सीट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे और आप पार्टी के प्रत्याशी वाल्मीकि नायक ने भी उत्पल पर्रिकर के हाथों चुनावी लड़ाई सौंपने की इच्छा जताई थी, क्योंकि आप पार्टी के मुखिया ने पर्रिकर को पार्टी ज्वाइन करने का न्योता देते हुए पणजी से उम्मीदवारी की पेशकश की थी.
पणजी सीट का मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है
बीजेपी के पास अपने आधिकारिक प्रत्याशी के साथ बने रहने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है, लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता बाहरी उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए बाध्य नहीं हैं और ज्यादातर कार्यकर्ता अपने पसंदीदा नेता रहे मनोहर पर्रिकर के बेटे के लिए प्रचार कर रहे हैं. और तो और, शिवसेना-एनसीपी ने उत्पल पर्रिकर समर्थन देने का फैसला किया है. दूसरी ओर, पणजी सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला करने वाले तृणमूल कांग्रेस-एमजीपी गठबंधन भी उत्पल पर्रिकर के समर्थन में है.
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है पणजी सीट दिलचस्प होता जा रहा है, क्योंकि उत्पल पर्रिकर यहां से भरसक प्रयास कर रहे हैं. ध्यान रहे कि 2019 के उपचुनाव में मोनसेरेट ने यहां से महज 1700 वोटों से चुनाव जीता था. अपने कार्यकर्ताओं के उत्साह और बागी प्रत्याशी के लिए उनके प्रचार के प्रति बीजेपी खामोश नजर आ रही है, जिससे मोनसेरेट के लिए चुनावी लड़ाई कठिन हो चुकी है और इसका परिणाम उल्टा हो सकता है.
बीजेपी के लिए राहत की बात बस इतनी है कि ये सभी बागी प्रत्याशी बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और उन्होंने किसी दूसरी पार्टी का हाथ नहीं थामा है. इसका मतलब यह है कि चुनाव के बाद बीजेपी इन्हें वापस पार्टी में लाने के लिए राजी करने का प्रयास कर सकती है और बीजेपी ऐसा करने से परहेज भी नहीं करेगी, क्योंकि गोवा जैसे छोटे राज्य में सरकार बनाने के लिए एक-एक सीट काफी मायने रखती है.
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