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संजय पोखरियाली: पंजाब के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर भगवंत मान आम आदमी पार्टी के लिए जो एक नई शुरुआत करने जा रहे हैं, उस पर इस राज्य के साथ-साथ देश की भी निगाह रहेगी। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनना इसलिए एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है, क्योंकि कांग्रेस, भाजपा और वाम दलों के बाद वह चौथा ऐसा दल है, जो एक के बाद दूसरे राज्य की सत्ता में पहुंचा है। उसकी इस सफलता ने उन तमाम क्षेत्रीय दलों के सामने एक चुनौती पेश कर दी है, जो एक लंबे अर्से से राष्ट्रीय राजनीति पर असर डालने की कोशिश कर रहे हैं।
यह विशेष उल्लेखनीय है कि आम आदमी पार्टी अपने गठन के दस वर्ष के अंदर ही दिल्ली के बाद पंजाब की सत्ता तक पहुंच गई। उसने अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पंजाब में केवल शानदार जीत ही हासिल नहीं की, बल्कि चुनावी मुकाबले में प्रतिद्वंद्वी दलों के बड़े-बड़े दिग्गजों को पराजित किया और वह भी अपने आम उम्मीदवारों के सहारे। उसने कुछ ऐसा ही करिश्मा दिल्ली में भी किया था।
पंजाब के चुनाव नतीजों ने यही बताया कि राज्य के लोग कांग्रेस एवं शिरोमणि अकाली दल, दोनों से आजिज आ चुके थे और उन्हें बेहतर विकल्प के रूप में केवल आम आदमी पार्टी ही नजर आई। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि आम आदमी पार्टी की सफलता में केजरीवाल शासन के दिल्ली माडल ने एक बड़ी भूमिका अदा की, जो लोगों के कल्याण पर जोर देता है। वास्तव में यही इस दल की राजनीति का केंद्रीय बिंदु है। चूंकि दिल्ली के मुकाबले पंजाब एक पूर्ण राज्य है इसलिए भगवंत मान सरकार के पास फैसले लेने की पूरी छूट होगी। यह स्थिति एक अवसर भी है और चुनौती भी। चुनौती इसलिए, क्योंकि पंजाब कई गंभीर समस्याओं से दो-चार है। एक समय पंजाब की गिनती देश के सबसे संपन्न राज्य में होती थी, लेकिन बीते कुछ वषों में वह पिछड़ गया है।
पंजाब को केवल आर्थिक संकट से ही उबारने की चुनौती नहीं है। इसके साथ ही उसे उस खतरे से भी बचाने की चुनौती है, जो सीमावर्ती राज्य होने के नाते उस पर मंडरा रहा है। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भगवंत मान को बधाई देते हुए उनकी सरकार को हर तरह का सहयोग देने का वादा किया। केंद्र और राज्य के बीच सहयोग भाव न केवल कायम होना चाहिए, बल्कि वह दिखना भी चाहिए।