सम्पादकीय

संवैधानिक हदें लांघती मुहिम

Rani Sahu
27 Oct 2021 7:06 PM GMT
संवैधानिक हदें लांघती मुहिम
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महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक क्या साक्षात् संविधान हैं

महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक क्या साक्षात् संविधान हैं? दूसरी ओर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े एक संवैधानिक अधिकारी हैं। टकराव की इस मुहिम में संविधान की गरिमा ही खंडित हो रही है। कमोबेश मंत्री एवं एनसीपी के नेता नवाब मलिक अपनी संवैधानिक हदें लगातार लांघ रहे हैं। गौरतलब यह है कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) एक स्वायत्त और सर्वोच्च संस्थान है, जो आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और आईआरएस सरीखी अखिल भारतीय सेवाओं के लिए अधिकारियों का चयन करता है। नवाब मलिक का न तो कोई दखल है और न ही कोई भूमिका है। मंत्री या राज्य सरकार को 'काउंटर केस' का भी अधिकार नहीं है, लेकिन उन्होंने एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े के चयन को लगातार 'फर्जीवाड़ा' करार दिया है। आश्चर्य है कि मुख्यमंत्री ने भी अपने मंत्री को कोई नसीहत या निर्देश नहीं दिए हैं। सब कुछ निरंकुश लग रहा है। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति और सेवा भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय के तहत आती हैं। यह मंत्रालय देश के प्रधानमंत्री के अधीन काम करता है। समीर फिलहाल गृह मंत्रालय की एजेंसी एनसीबी मंे कार्यरत हैं, लेकिन राज्य सरकार के मंत्री ने उनके खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। यह एक नई, अप्रत्याशित प्रवृत्ति है। समीर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), राजस्व गुप्तचर निदेशालय और कस्टम आदि में भी संवेदनशील पदों पर नियुक्त रहे हैं। क्या फर्जीवाड़े के साथ ऐसा संभव था? क्या किसी फर्जी अधिकारी की नियुक्ति इन विभागों में की जा सकती है? क्या नवाब मलिक देश के प्रधानमंत्री, गृह और कार्मिक मंत्रालयों से भी 'सुप्रीम' हैं? अखिल भारतीय सेवा में चयनित अधिकारी की सम्यक जांच सतर्कता, खुफिया और पुलिस आदि विभाग करते हैं। तमाम दस्तावेजों का सत्यापन किया जाता है।

उन अधिकारियों को प्रशिक्षण के दौर से भी गुज़रना पड़ता है। उसके बाद ही संवेदनशील पदों पर नियुक्त किया जाता है। ऐसे अधिकारी ही भारत सरकार के प्रतिनिधि होते हैं। एक गैर-जनादेशी और पुलिस कमिश्नर द्वारा वसूली के गंभीर आरोपों की दागी सरकार का मंत्री किन आधारों पर ऐसे अधिकारी को नौकरी से बर्खास्त कराने के सार्वजनिक बयान दे सकता है? नवाब मलिक ने तो भारत की संपूर्ण संवैधानिक और प्रशासनिक व्यवस्था को ही नकार दिया है। क्या इसे किसी भी तरह राज्य सरकार के एक मंत्री का अधिकार-क्षेत्र माना जा सकता है? मंत्री ने समीर और उनके परिजनों की निजता को भी सोशल मीडिया पर नीलाम कर दिया है। क्या सोशल मीडिया की भूमिका यही है कि महिलाओं के निजी चित्र सार्वजनिक करे, क्योंकि उन्हें एक मंत्री ने अपलोड कराया है? क्या यह एक औसत नागरिक के संवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है? सबसे गंभीर आरोप 1000 करोड़ रुपए के उगाही रैकेट का समीर वानखेड़े पर चस्पा किया गया है, लेकिन हैरानी है कि मंत्री या उनके किसी चंपू ने इन तमाम आरोपों को लेकर अदालत में दस्तक नहीं दी है। सोशल मीडिया को ही संविधान की दहलीज़ मानकर पूरी मुहिम चलाई जा रही है। इन आरोपों का शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान के ड्रग्स केस से भी कोई लेना-देना नहीं है। आर्यन के वकील एवं भारत सरकार में एटॉर्नी जनरल रहे मुकुल रोहतगी भी बंबई उच्च न्यायालय में यह कह चुके हैं। फिर नवाब मलिक की समीर वानखेड़े के खिलाफ मुहिम के मायने क्या हैं? क्या वह नशा माफिया और सिंडिकेट को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और एनसीबी के एक आला अफसर को लेकर आक्रामक हैं और एजेंसी के दूसरे, जूनियर अफसरों को भी हतोत्साहित करने में जुटे हैं? जाहिर है कि इससे जांच ही प्रभावित होगी। हालांकि एनसीबी की सतर्कता टीम ने मुंबई आकर सम्यक जांच करने की शुरुआत की है। समीर भी जांच के दायरे में हैं।

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