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- संवैधानिक हदें लांघती...
महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक क्या साक्षात् संविधान हैं? दूसरी ओर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े एक संवैधानिक अधिकारी हैं। टकराव की इस मुहिम में संविधान की गरिमा ही खंडित हो रही है। कमोबेश मंत्री एवं एनसीपी के नेता नवाब मलिक अपनी संवैधानिक हदें लगातार लांघ रहे हैं। गौरतलब यह है कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) एक स्वायत्त और सर्वोच्च संस्थान है, जो आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और आईआरएस सरीखी अखिल भारतीय सेवाओं के लिए अधिकारियों का चयन करता है। नवाब मलिक का न तो कोई दखल है और न ही कोई भूमिका है। मंत्री या राज्य सरकार को 'काउंटर केस' का भी अधिकार नहीं है, लेकिन उन्होंने एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े के चयन को लगातार 'फर्जीवाड़ा' करार दिया है। आश्चर्य है कि मुख्यमंत्री ने भी अपने मंत्री को कोई नसीहत या निर्देश नहीं दिए हैं। सब कुछ निरंकुश लग रहा है। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति और सेवा भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय के तहत आती हैं। यह मंत्रालय देश के प्रधानमंत्री के अधीन काम करता है। समीर फिलहाल गृह मंत्रालय की एजेंसी एनसीबी मंे कार्यरत हैं, लेकिन राज्य सरकार के मंत्री ने उनके खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। यह एक नई, अप्रत्याशित प्रवृत्ति है। समीर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), राजस्व गुप्तचर निदेशालय और कस्टम आदि में भी संवेदनशील पदों पर नियुक्त रहे हैं। क्या फर्जीवाड़े के साथ ऐसा संभव था? क्या किसी फर्जी अधिकारी की नियुक्ति इन विभागों में की जा सकती है? क्या नवाब मलिक देश के प्रधानमंत्री, गृह और कार्मिक मंत्रालयों से भी 'सुप्रीम' हैं? अखिल भारतीय सेवा में चयनित अधिकारी की सम्यक जांच सतर्कता, खुफिया और पुलिस आदि विभाग करते हैं। तमाम दस्तावेजों का सत्यापन किया जाता है।
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