सम्पादकीय

फिल्म उद्योग को पुकारते

Gulabi
6 Dec 2021 4:54 AM GMT
फिल्म उद्योग को पुकारते
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हिमाचल के फिल्म जगत से रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने की दृष्टि से शिमला फिल्म फेस्टिवल ने एक और मील पत्थर स्थापित किया
दिव्यहिमाचल. हिमाचल के फिल्म जगत से रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने की दृष्टि से शिमला फिल्म फेस्टिवल ने एक और मील पत्थर स्थापित किया, जबकि 58 फिल्मों के प्रदर्शन ने मनोरंजन को एक दिशा व कलात्मक पक्ष की सृजनशीलता को मुकाम तक पहुंचाने की पैरवी की है। निश्चित रूप से हिमाचल के अतीत में भी कई बालीवुड फिल्मों की पृष्ठभूमि दर्ज हुई है, लेकिन सिने पर्यटन को लेकर अभी भी प्रदेश कहीं पीछे खड़ा है। बेशक फिल्म नीति का एक कागजी दस्तावेज सामने आया है और जिसके तहत आरंभिक कोशिश देखी जा सकती है, लेकिन इससे फिल्म उद्योग अवतरित होगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता। हिमाचल में पिछले कुछ सालों से शिमला व धर्मशाला में फिल्म महोत्सवों का आयोजन शुरू हुआ है, लेकिन इन्हें पूरी तरह से विकसित तथा परिमार्जित करने की आवश्यकता है। भले ही फिल्म पालिसी के तहत फिल्म निर्माण व शूटिंग जैसी अनापत्तियां हासिल करने के लिए वचनबद्धता दर्शाई गई है, लेकिन इससे संबंधित प्रोत्साहन सामग्री, व्यवस्थागत सुविधाएं तथा सतत प्रक्रिया के लिए किसी अथारिटी का गठन जरूरी है। क्या कला, संस्कृति व भाषा विभाग की थकी हारी मानसिकता से फिल्म उद्योग को पुकारा जा सकता है या इस दायित्व के निर्वहन के लिए कोई स्वतंत्र कॉडर विकसित किया जाएगा। फिल्म नीति के निर्धारण का कागजी संवाद भले ही उत्तीर्ण माना जाए, लेकिन यहां सवाल अपने आप में हिमाचल के भीतर फिल्म संसार पैदा करने का भी है।
ऐसे कई नन्हे प्रयास लोक कलाकार, कला प्रेमी, फिल्म निर्माता, मीडिया घराने तथा सोशल मीडिया के जरिए हो रहे हैं। आज फिल्म उद्योग बड़ी स्क्रीन की ताजपोशी तक ही सीमित नहीं, बल्कि कई तरह की अदायगी है। फिल्मों में तकनीकी ज्ञान का संवर्द्धन, नए कलाकारों का आगमन, आयोजनों की फेहरिस्त, फिल्म से इतर मनोरंजन कार्यक्रमों की शुरुआत, टेलीफिल्मों में उभरते विषय तथा नए रोजगार को प्रेरित करता अध्ययन एवं प्रशिक्षण काफी अहमियत रखता है। फिल्म और टीवी के बीच निकटता बढ़ी है और इसके साथ आईटी सेक्टर की भूमिका अहम हो जाती है। अतः हिमाचल की फिल्म नीति अगर हिमाचली रोजगार को फिल्म टीवी के विकल्प नहीं दे रही, तो सारी कसरतें पुराने दौर को पुचकारती ही व्यर्थ चली जाएंगी। हिमाचल में फिल्मों व टीवी मनोरंजन का धरातल जब तक भविष्य की अहर्ताएं पूरी नहीं करता, वित्तीय प्रोत्साहन की फसलें काटता केवल एक वर्ग देखा जाएगा।
ऐसे में फिल्म सिटी का प्रस्ताव काफी प्रशंसनीय है, लेकिन इसका गठबंधन हिमाचली संस्कृति, पर्यटन आकर्षण, प्राकृतिक नजारों, बागबानी, एग्रो टूरिज्म, कबाइली पृष्ठभूमि तथा लोक संस्कृति के साथ सुनिश्चित करना होगा। फिल्म उद्योग को पुकारने का अर्थ केवल शूटिंग बढ़ाने से नहीं है, बल्कि इसके जरिए निवेश, मनोरंजन, रोजगार तथा सिने पर्यटन को मजबूत करना होगा। फिल्म सिटी की परिधि को एक केंद्र की गतिविधियों में समाहित नहीं किया जा सकता, बल्कि प्रदेश के चारों कोनों पर चिन्हित करना होगा। मसलन प्रदेश के धरोहर गरली-परागपुर गांव में रची बसी संस्कृति, वास्तुशैली तथा संरक्षित धरोहर इमारतों को देखते हुए अगर फिल्म उद्योग की मूलभूत सुविधाएं दी जाएं, तो यह फिल्म सिटी की रूपरेखा में पर्यटन गांव भी बन जाएगा। इसकी परिधि में चंबा-सुजानपुर व कांगड़ा की ऐतिहासिक विरासत, डलहौजी-मकलोडगंज की प्राकृतिक छटा, पौंग-गोबिंदसागर जैसे जलाशय, तिब्बती संस्कृति, पालमपुर के टी गार्डन और विभिन्न घाटियों के माधुर्य में शूटिंग का साम्राज्य खड़ा होता है। मंडी व सोलन के आसपास इसी तरह फिल्म सिटी का संकल्प स्कीईंग, ट्राइबल लाइफ तथा आकर्षण के विविध पहलुओं को छू सकते हैं। फिल्म उद्योग को पुकारता हिमाचल अपने टेलेंट को पांव पर खड़ा करने की संभावनाएं तराशना चाहता है, तो एक अलग से एजेंसी या प्राधिकरण का गठन करके फिल्म एवं टीवी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना भी करनी होगी।
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