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जब से 2016 में आरबीआई ने संपत्ति गुणवत्ता समीक्षा की है, भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के लिए एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी गैर-निष्पादित संपत्तियां) सिरदर्द बन गए हैं
मदन सबनवीस जब से 2016 में आरबीआई ने संपत्ति गुणवत्ता समीक्षा की है, भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के लिए एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी गैर-निष्पादित संपत्तियां) सिरदर्द बन गए हैं और इनके बढ़ने की प्रवृत्ति रही है। मार्च 2021 में भी ये 7.5% यानी करीब 8.25 लाख करोड़ रुपए पर थे।
बैंकों ने इनका सामना करने के लिए बीते वर्षों में प्रावधान किए हैं लेकिन एक बार प्रावधान किए जाने के बाद, मुनाफा कम हो जाता है और कुछ पीएसबी (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक) के लिए इसका मतलब गहरा नुकसान होता है जिससे पूंजी में कमी आई है। इससे सरकार को आगे आकर उनके लिए पूंजी की व्यनस्था करनी पड़ी। चार सवालों से समझिए कि एनपीए समाधान की नई व्यवस्था में क्या बदलाव हो रहे हैं।
1. एनपीए समाधान की पुरानी व्यवस्था क्या थी? आईबीसी यानी दिवाला और बैंकरप्सी कोड 2016 में आया, जिसने एनपीए के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संक्षेप में, यदि कोई कंपनी ऋण का भुगतान नहीं करती है तो बैंक/बैंकों को यह निर्णय लेना चाहिए कि इसे 180 दिनों के भीतर, 90 दिनों के विस्तार के साथ कैसे हल किया जाए, जिसके बाद इसे आईपीसी में ले जाया जाए, जो एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा इन संपत्तियों को बेचकर लेनदारों ने भुगतान किया। ऋण चुकाना और समयबद्ध तरीके से समाधान पाना जरूरी था।
यह वहां कारगर रहा जहां कुछ संपत्तियों पर वसूली 80-90% तक थी और कुछ के लिए औसतन 60-70%। हालांकि, मार्च 2020 तक यह 45% के आसपास थी। समस्या यह थी कि समाधान में लगने वाले समय से संपत्ति की कीमत घट रही थी। इसे ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने 2021 के बजट में 'बैड बैंक' बनाने की बात कही थी, जिसे अब कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है और नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) बनाई गई है।
2. बैड बैंक या एनएआरसीएल क्या है? इसे कंपनियों का समूह बनाता है इसलिए यह स्वतंत्र इकाई है। यह एआरसी (एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी) उन बुरी संपत्तियों को आपसी सहमति से तय कीमत पर खरीदती है, जो बैंकों से एनपीए हैं। मान लीजिए एनपीए 100 रुपए है और मोलभाव के बाद कीमत 50 रुपए तय की गई। फिर इसे एआरसी में भेजते हैं, जो बैंक को 50 रुपए चुकाता है और बैंक संपत्ति को अपने हिसाब से हटा देता है।
इसका फायदा यह है कि इस ऋण की मदद करने वाली यही पूंजी नए ऋण लेने में इस्तेमाल की जा सकती है। फिर एआरसी संपत्ति को वापस सक्रिय कर या ऋणों को पुनर्गठित कर या अन्य बैंकों को बेचकर समाधान का प्रयास करता है। सबसे खराब स्थिति में, संपत्ति बेची जाती हैं। यदि एआरसी को 60 रु. मिलते हैं, तो कमीशन के ऊपर का अधिशेष बेचने वाले बैंक को देते हैं। यदि नुकसान होता है, तो इसे एआरसी वहन करता है।
3. कैसे बनेगा एनएआरसीएल? इसे पीएसबी व सार्वजनिक वित्त संस्थान बना रहे हैं, जिससे बड़ा फर्क पड़ता है। कंपनी का स्वामित्व सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास होगा, जिससे बैंकों द्वारा इस संस्था को संपत्ति बेचने संबंधी आशंका दूर होगी क्योंकि दोनों पक्ष सार्वजनिक क्षेत्र से हैं। सरकार को उम्मीद है कि 5 वर्षों में एनपीए के लगभग 2 लाख करोड़ रु. एनएआरसीएल नियंत्रित करेगा।
4. क्या नई प्रणाली पहले से बेहतर है? बैकस्टॉप व्यवस्था प्रणाली का नया हिस्सा है जो इसे मौजूदा प्रणाली से बेहतर बनाता है। हालांकि बैंकों को तय करना होगा कि संपत्ति को आईबीसी में ले जाएं या एनएआरसीएल में। एनएआरसीएल चुनने के लिए प्रोत्साहन हो सकता है जिससे आईबीसी कम प्रासंगिक हो सकता है। हालांकि सरकार इन वैकल्पिक प्रणालियों को प्रतिस्पर्धा के बजाय पूरक के रूप में देखती है। एक समस्या यह है कि ऐसी सुविधाएं सफल होने पर बैंक क्रेडिट मूल्यांकन मानकों में ढील दे सकते हैं, जो खतरनाक हो सकता है।
कुलमिलाकर एनएआरसीएल लाना अच्छा कदम है। यह बैंकों के लिए एनपीए बेचने का एक और जरिया होगा। हालांकि देखना होगा कि यह कहां तक सफल होता है। समस्या के आकार को देखते हुए यह स्पष्ट है कि एक तंत्र उद्देश्य की पूर्ति नहीं करेगा और हमें सभी विकल्पों पर प्रयास करना होगा।
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