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पिछले दो वर्षों से सुन रहे हैं प्रशिक्षक कैडर के भर्ती व पदोन्नति नियमों में सुधार कर लिया है
पिछले दो वर्षों से सुन रहे हैं प्रशिक्षक कैडर के भर्ती व पदोन्नति नियमों में सुधार कर लिया है, मगर अभी तक जूनियर प्रशिक्षक का स्केल और काम जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी का लिया जा रहा है। इससे अधिक अन्याय प्रशिक्षकों के साथ और अब क्या हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी करोड़ों लोगों में स्वयं व अपने देश को पदक जीत कर सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करता है तो उस के पीछे जहां उस दृढ़ संकल्प, लगातार कठोर परिश्रम व अपनों की सहायता व दुआएं होती हैं, वहीं पर एक प्रशिक्षक की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। इसीलिए अलग से राज्यों में खेल विभागों का गठन हुआ है। 1982 के एशियाड के बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी प्रदेश में हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग का गठन किया। विभाग के गठन के चार दशक बाद भी अभी तक हिमाचल प्रदेश में प्रशिक्षकों के भर्ती व पदोन्नति नियमों को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। हिमाचल प्रदेश के इस विभाग में निदेशक, संयुक्त निदेशक, उप निदेशक, जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारियों, प्रशिक्षकों, कनिष्ठ प्रशिक्षकों व युवा संयोजकों के पद सृजित हैं। इस विभाग का कार्य प्रदेश में युवा गतिविधियों व खेलों का विकास करना है। हिमाचल प्रदेश में यह विभाग खेल प्रशिक्षण, खेलों के लिए आधारभूत ढांचा व राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता होने पर नगद पुरस्कार व अवार्ड देने के लिए बनाया गया है।
हिमाचल प्रदेश के इस विभाग का निदेशक प्रशासनिक सेवा से ही अधिकतर नियुक्त होता रहा है, केवल विशेष परिस्थितियों में ही आज तक दो बार ही विभागीय अधिकारी निदेशक पद तक पहुंच पाए हैं। उपनिदेशक और कभी कभी संयुक्त निदेशक पद तक विभाग के प्रशिक्षक व युवा संयोजक पदोन्नत होकर पहुंच जाते हैं। इन विभागीय अधिकारियों को अधिक तकनीकी जानकारी होती है। आजकल हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के पास कोई भी उपनिदेशक नहीं है। वरिष्ठ जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी को उप निदेशक के पद पर बिठा कर काम चलाया जा रहा है। नियमित जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी भी केवल चार ही जिलों में हैं। राज्य के शेष जिलों में काम चलाऊ अधिकारी बिठा रखे हैं। सरकार को चाहिए कि जल्दी ही उपनिदेशक के पद पर नियमित पदोन्नति की जाए तथा जिलों में भी नियमित अधिकारी हों। इस समय जो प्रशिक्षक जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी के पद पर तदर्थ कार्य कर रहे हैं, उन्हें एकमुश्त नियमों में छूट देकर नियमित अधिकारी बना दिया जाए । इस विषय पर पहले भी इस कॉलम के माध्यम से लिखा जा चुका है, मगर लगता है कि सरकार के लिए युवा शक्ति व खेल प्राथमिकता पर नहीं हैं। विभाग में नाम मात्र के प्रशिक्षक हैं। अधिकतर खेलों में तो एक भी प्रशिक्षक पूरे जिले के लिए उपलब्ध नहीं है। विभाग में जो प्रशिक्षक नियुक्त हैं उन्हें कनिष्ठ प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति मिली है। उसके बाद वे सेवानिवृत्ति तक भी प्रशिक्षक नहीं बन पाए हैं। विभाग में नियुक्त प्रशिक्षकोंं को जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी पद पर पदोन्नति के लिए केवल 25 प्रतिशत ही कोटा है।
50 प्रतिशत युवा संयोजक व 25 प्रतिशत पद हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से भरे जाते हैं। प्रशिक्षक बनने की योग्यता बहुत कठिन है। स्नातक डिग्री के साथ जो प्रतिभागी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हो या तीन बार वरिष्ठ राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व किया हुआ हो या शारीरिक शिक्षा में स्नातकोत्तर डिग्री के साथ अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता में खेला हो, उसके बाद राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान में प्रवेश परीक्षा पास कर एक वर्ष के कठिन प्रशिक्षण व शिक्षण के बाद प्रशिक्षक बनता है। पिछली बार हुई भर्ती में विभाग ने नियमों को ठेंगा दिखा कर छह सप्ताह में प्रशिक्षण पूरा किए सर्टिफिकेट कोर्स वाले को प्रशिक्षक भर्ती कर दिया है। सेवा नियमों में एक समय एमपीएड के साथ कंडैंस कोर्स जो छह माह का होता था, उसे पास किया हुआ प्रशिक्षक के पद के लिए योग्य था, न कि छह सप्ताह का सर्टिफिकेट कोर्स किया हुआ। भविष्य में इस तरह का गोलमाल नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे हिमाचल प्रदेश की खेल जगत में काफी खिल्ली उड़ी है। हिमाचल प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह प्रदेश में नियुक्त कनिष्ठ प्रशिक्षकों को पांच साल के बाद प्रशिक्षक के पद पर पदोन्नत कर 50 प्रतिशत कोटा जिला अधिकारी पद पर पदोन्नति के लिए दिया जाए, क्योंकि प्रशिक्षकों की सख्या बहुत अधिक है। अगर हर खेल में जिला स्तर पर पांच प्रशिक्षक भी हों तो प्रशिक्षकों की संख्या सौ से भी अधिक जा सकती है। इसके मुकाबले बारह जिलों में बारह ही युवा संयोजक नियुक्त हैं। इस तरह देखा जाए तो यह प्रशिक्षकों के साथ बहुत अन्याय है।
प्रदेश में विभिन्न खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड तो बन कर तैयार हैं, मगर उनका न तो सही रख रखाव है और न ही उन पर उस स्तर का प्रशिक्षण कार्यक्रम हो रहा है। सरकार को चाहिए कि वहां पर उन खेलों में उच्च प्रदर्शन करवाने वाली खेल अकादमियां स्थापित की जाएं। हिमाचल प्रदेश में युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के दो खेल छात्रावास बिलासपुर व ऊना में कुछ चुनिंदा खेलों के लिए आधा अधूरा प्रशिक्षण दे रहे हैं। उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने वाले प्रशिक्षकों की कमी व प्रबंधन में अव्यवस्था साफ देखी जा सकती है। उत्कृष्ट खेल परिणाम दिलाने वाले प्रशिक्षक बहुत कम हैं क्योंकि विभाग में प्रशिक्षकों की अनदेखी है जिसमें बहुत कम ग्रेड पे व दशकों से कनिष्ठ पद पर कार्यरत रहने के कारण राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान से प्रशिक्षित प्रशिक्षक खेल विभाग में प्रशिक्षक बनने से अधिक शिक्षा विभाग में प्राध्यापक या डीपीई बनने को अधिमान देते हैं। उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने के लिए प्रशिक्षकों व खिलाडिय़ों के लिए एक अच्छी प्रबंधन टीम की अहम भूमिका है। सही प्रबंधन मिले, इसके लिए नियमित जिला खेल अधिकारियों, उपनिदेशकों, प्रशिक्षकों अन्य अधिकारियों की नियुक्ति बेहद जरूरी है। खिलाड़ी को तैयार करने में प्रशिक्षक की भूमिका जब बेहद जरूरी है तो फिर हम उसे सामाजिक व आर्थिक रूप से निश्चिंत कर शारीरिक व मानसिक पूरी तरह अपने प्रशिक्षण पर केन्द्रित क्यों नहीं होने देते। इसलिए राज्य के युवा सेवाएं एवं खेल विभाग में प्रशिक्षकों के साथ न्याय करने के लिए इनके भर्ती व पदोन्नति नियमों में संख्या अनुपात में संशोधन करना बहुत जरूरी है। अब बहुत बीत चुका है, थोड़ा शेष है। प्रशिक्षक कैडर को उनका जायज हक हिमाचल प्रदेश सरकार को जरूर दे देना चाहिए।
भूपिंद्र सिंह
अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक
ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.कॉम
By: divyahimachal
Rani Sahu
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