सम्पादकीय

सेना के खिलाफ सेना को खड़ा कर इमरान ने पाकिस्तान में वो काम किया जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता

Rani Sahu
26 April 2022 2:47 PM GMT
सेना के खिलाफ सेना को खड़ा कर इमरान ने पाकिस्तान में वो काम किया जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता
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मेजर (सेवानिवृत) गौरव आर्या को पाकिस्तानी मामलों पर एक लोकप्रिय YouTuber और टीवी कमेंटेटर माना जाता है

प्रशांत सक्सेना

मेजर (सेवानिवृत) गौरव आर्या को पाकिस्तानी मामलों पर एक लोकप्रिय YouTuber और टीवी कमेंटेटर माना जाता है. कुछ दिनों पहले उनका एक वीडियो क्लिप पाकिस्तान (Pakistan) के राजनीतिक हलकों में काफी वायरल हुआ था. इस क्लिप में आर्या ने इमरान खान (Imran Khan) को भारत का "सबसे अच्छा दोस्त" बताया क्योंकि अपदस्थ पाक पीएम ने न केवल भारत की विदेश नीति की लगातार तारीफ की बल्कि आम पाकिस्तानियों को उकसाया भी कि वे अपनी ही सेना (Pakistani Army) को पाकिस्तानी शहरों की सड़कों पर खुलेआम गाली दें.
आर्या का कहना है कि इमरान ने वो कर दिखाया है जो भारतीय एजेंसियां सात दशकों में भी नहीं कर पाईं. आज आम पाकिस्तानी सार्वजनिक रैलियों और गरमागरम बहसों में अपनी सेना, सेना प्रमुख और आईएसआई की निंदा करते हैं. "इमरान ने इसे कामयाबी के साथ हासिल किया है और वो भी तब जब भारत ने एक पैसा भी खर्च नहीं किया." आर्या कहते हैं. क्लिप को मौजूदा सत्तारूढ़ पीएमएल-एन के परवेज राशिद द्वारा टैग किया गया था और प्रख्यात पाकिस्तानी पत्रकार नजम सेठी द्वारा फ्लैग किया गया था.
यह एक हकीकत है कि हाल के दिनों में इमरान खान ने पाकिस्तानी शहरों में जितनी भी रैलियां की हैं उनके समर्थकों ने खुलेआम 'चौकीदार चोर है' (पाकिस्तानी सेना के सीधे संदर्भ में) जैसे नारे लगाए हैं. कभी-कभी तो पाकिस्तान सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) का नाम खुले आम लिया है. इस महीने की शुरूआत में संयुक्त विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर इमरान खान को प्रधानमंत्री पदसे हटा दिया था. इसके बाद से इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ" (पीटीआई) पाकिस्तान के शहरों में प्रदर्शन कर रही है.
इमरान की मजबूरियां
भारतीय विदेश नीति और भारत की "भ्रष्टाचार मुक्त सेना" की सराहना करने के पीछे इमरान खान की अपनी कुछ मजबूरियां थीं उनके निशाने पर उनकी अपनी सेना थी जिसने विपक्ष के खिलाफ उनकी लड़ाई में उनका साथ नहीं दिया और साथ ही गतिरोध को तोड़ने के लिए "मध्यस्थ की भूमिका" निभाने को भी तैयार नहीं थी. इमरान खान ने 24 मार्च को एक जनसभा में पाकिस्तानी सेना का नाम लिये बिना कहा, "मैं भारत को सलाम करता हूं. भारत की विदेश नीति पाकिस्तान से बेहतर है, वे अपने लोगों के लिए काम करते हैं, भारतीय सेना भ्रष्ट नहीं है और वे कभी भी नागरिक सरकार में हस्तक्षेप नहीं करते हैं."
एक अभूतपूर्व घटना के तहत 9-10 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव पर मध्यरात्रि के करीब हुए मतदान के जरिए इमरान खान को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. अटकलें लगाई जा रही हैं कि तत्कालीन पीएम पूरे दिन टालमटोल करते रहे लेकिन जनरल बाजवा ने इमरान को वोटिंग स्वीकार करने के लिए मजबूर किया. इमरान के चले जाने के बाद अब पाकिस्तानी सेना की बारी है. पाकिस्तानी सेना, जिसे एस्टेब्लीशमेंट ( प्रतिष्ठान) और रावलपिंडी GHQ कहा जाता है और जिसका सरकार पर पूरा नियंत्रण होता है, को अब लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. आम जनता ये महसूस कर रही थी कि इमरान को अमेरिकियों को खुश रखने के लिए "बलिदान" किया गया था. यह मुद्दा इमरान ने खुद उठाया था.
इमरान ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए कहा कि अविश्वासप्रस्ताव को जबरन लागू करवाने का मुद्दा कूटनीतिक तार में उलझा हुआ था. उनका इशारा साफ तौरपर अमेरिकी धमकी की ओर था. इस महीने इमरान के निष्कासन के तुरंत बाद जनरल बाजवा ने शीर्ष कमांडरों की एक बैठक बुलाई और 'राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा ' के सिद्धांत को खारिज कर दिया. इसके बाद सेना के मीडिया विंग आईएसपीआर के प्रमुख जनरल बाबर इफ्तिखार ने एक बार फिर इमरान खान के दावे को खारिज करने के लिए एक प्रेस वार्ता की.
सेना में अनबन
पाकिस्तान में व्यापक रूप से ये रिपोर्टिंग की गई कि पाकिस्तानी सेना के भीतर विभिन्न तत्व जनरल बाजवा के इमरान के साथ किए गए व्यवहार से बहुत खुश नहीं हैं, जिसे तथाकथित प्रतिष्ठान ने 2018 के चुनावों में समर्थन दिया था. ऐसा कहा जाता है कि कई वरिष्ठ अधिकारियों ने जनरल बाजवा द्वारा बुलाई गई बैठक में अपनी इमरान समर्थक भावनाओं से उन्हें अवगत कराया. गौरतलब है कि जनरल बाजवा अपनी सेवा के एक्सटेंसन पर चल रहे हैं और पूरी संभावना है कि इस साल के अंत तक वो सेवानिवृत्त हो जाएंगे.
आम जनता और साथ ही सेना के भीतर एक व्यापक धारणा यह है कि इमरान के बाहर निकलने से वास्तव में कुछ भी समाधान नहीं निकला है; दरअसल यह बीते हुए कल को फिर से दोहराने के लिए मजबूर करता है. यह शरीफ और भुट्टो परिवारों के 'वंशवादी' शासन की ओर संकेत करता है जिनके कार्यकाल ने "भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया और सामंती ताकतों के हुकूमत को कायम रखा." वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार नजम सेठी ने कहा है कि "पाकिस्तान के सेवानिवृत और सेवारत फौजियों में लगभग 90 प्रतिशत जिनकी संख्या करीबन 5 मिलियन है, वे इमरान के समर्थक हो गए हैं क्योंकि उनका मानना है कि बाकी दल वंशवादी, सामंती और भ्रष्ट हैं.
नजम सेठी कहते हैं कि मौजूदा दौर में पाकिस्तानी सेना भी शहरी मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के युवाओं से बनी है. सेठी कहते हैं, "वे एक तरह से जिया-उल-हक के बच्चे हैं ." जिया अस्सी के दशक की शुरुआत में एक तानाशाह शासक थे जिन्होंने प्रभावी रूप से पाकिस्तानी समाज का इस्लामीकरण किया और तालिबान के वजूद में आने सेपहले अपनी नीतियों को अमेरिका समर्थक झुकाव लाए हुए बनाया था.
आर्मी और सियासत
पाकिस्तानी सेना ने देश के राजनेताओं को पाला-पोसा, उनके लिए बहुत कुछ किया और अंत में उन्हें बाहर फेंक दिया है. भुट्टो और शरीफ़ इसके ताजा उदाहरण हैं. इस प्रक्रिया में सेना को भी आंतरिक कलह का सामना करना पड़ा है. 1988 में एक रहस्यमयी हवाई दुर्घटना में जिया की मौत एक उदाहरण है. दूसरा उदाहरण जनरल परवेज मुशर्रफ का है जिनकी हत्या करने की चार बार नाकाम कोशिश की गई. जनरल परवेज़ पड़ोसी अफगानिस्तान में 'आतंक के खिलाफ युद्ध' पर अमेरिका को कथित रूप से समर्थन देते रहे थे. बहरहाल जनरलों ने एक ऐसी प्रणाली स्थापित की है जिसे राजनयिक हुसैन हक्कानी के शब्दों में "अन्य तरीकों से सैन्य शासन" कहा जा सकता है.
हालांकि, टोरंटो में स्थित एक पाकिस्तानी पत्रकार मोहम्मद रिज़वान का इमरान खान के निष्कासन के बाद "पाकिस्तानी सेना के 90 फीसद इस्लामीकृत बल" पर आने वाले अलग-अलग नोटों पर एक अलग विचार है. उन्हें लगता है कि नागरिकों से खुद को बचाए रखने और राजनेताओं पर मजबूत पकड़रखने के बावजूद आज अर्थव्यवस्था के लगभग बर्बाद हो जाने के बाद पाकिस्तानी सेना खुद को चौराहे पर पाती है. रिजवान कहते हैं, "सेना के एक बड़े वर्ग को ये आशंका है कि देश के आर्थिक पतन और नई भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के मद्देनज़र इसका आकार, प्रोफ़ाइल और भूमिका कम होने जा रही है. यह वर्ग सेना के प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए जनरल बाजवा जैसे लोगों पर अपना भरोसा दिखाना चाहते हैं… वे चाहते हैं कि सेना में रहते हुए और सेवानिवृत्ति के बाद भी उनका भत्ता और विशेषाधिकार जारी रहे,". "इमरान की रैलियों की व्यवस्था और खर्चा कौन कर रहा है? इस सवाल का जवाब सेना के भीतर हो रहे नए अहसास और पुनर्गठन के संदर्भ में दिया जाना चाहिए." रिज़वान ने कहा.
रावलपिंडी का मशहूर औऱ ऐतिहासिक लाल हवेली पूर्व गृह मंत्री शेख राशिद का आवास है. यहां पीटीआई की एक रैली को संबोधित करते हुए राशिद ने दहाड़ते हुए कहा, "28 अप्रैल को ईद होगी. तैयार रहें, हम रोजाना लाल हवेली से जेल भरो आंदोलन करेंगे. मैं इसे खुद कराची से शुरू करूंगा." उन्होंने कहा, कि वह सभी सिंधियों को बताएंगे कि वे ( तब के विपक्ष) चोर, डाकू और लुटेरे हैं. बहरहाल एक पाकिस्तानी पर्यवेक्षक के मुताबिक पाकिस्तानी फौज जो संदेश देने के लिए प्रतिबद्ध है वो ये है कि "आप जो कुछ भी करते हैं करिए लेकिन हमेशा याद रखें कि मालिक कौन है." इसी बीच पाकिस्तानी सेना अपने घर को व्यवस्थित रखने में व्यस्त दिखाई दे रही है क्योंकि शहबाज शरीफ की सरकार वो सभी रणनीतिक कदम उठा रही है जिससे वो जिंदा रह सके और इन कोशिशों में पहला कदम है अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्जे की अगली किश्त प्राप्त करना.
Rani Sahu

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