सम्पादकीय

उपचुनावों की बिसात

Rani Sahu
28 Sep 2021 7:01 PM GMT
उपचुनावों की बिसात
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उपचुनावों की घोषणा के साथ हिमाचल में राजनीतिक गंध का कितना प्रसार होता है

उपचुनावों की घोषणा के साथ हिमाचल में राजनीतिक गंध का कितना प्रसार होता है, इसके दूसरे छोर पर खड़े मतदाता को अपने हासिल का चुनाव परिणामों के बाद पता चलेगा। तमाम अटकलों और अटके-भटके वादों के बीच तीन विधानसभा क्षेत्रों और मंडी संसदीय क्षेत्र के लिए उपचुनाव की बिसात बिछने लगी है। न ये उपचुनाव हैरान करते हैं और न ही इनके अंकगणित से किसी भी पार्टी का राजनीतिक मिशन असफल माना जाएगा। यह दीगर है कि इस बहाने अगले साल के चुनावी मुहाने नजदीक आएंगे। सत्ता की हवाएं और सरकार की भुजाएं भी देखी जाएंगी। विपक्ष के लिए अपने समाधान और अपनी एकजुटता के प्रमाण इन उपचुनावों को नई पहचान दे सकते हैं। हालांकि एक ही दिन पूर्व दो घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस और भाजपा के भीतरी संकल्पों का मुआयना हो सकता है।

सोमवार के दिन शिमला के पीटरहॉफ में तैयार हो रहा था मिशन-2022 का रोडमैप और जिसके तहत भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह ने विशेष रूप से शिरकत की, लेकिन मंगलवार की चुनावी घोषणा ने सत्ता पक्ष की कई खिड़कियां बंद कर दी हैं। जाहिर है उपचुनाव की फेहरिस्त में आचार संहिता के विराम सत्ता पक्ष के लिए इसलिए भी अवरोधक बनेंगे, क्योंकि पूर्ण राज्यत्व की पच्चासवीं वर्षगांठ का स्वर्णिम रथ अभी शृंगार करके निकलने ही वाला था। दूसरी ओर विपक्ष के अपने आजू-बाजू में ही अगर परस्पर वैमनस्य नहीं है, तो क्यों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं विधायक रामलाल ठाकुर को यह कहना पड़ रहा है कि बिलासपुर के कुछ कांग्रेसी नेता ही भाजपा के इशारे पर अपनी पार्टी को कमजोर कर रहे हैं। ऐसे राग-द्वेष कमोबेश हर उपचुनाव के आसपास मंडरा रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही अपने ऐलानिया उद्बोधन में पंडित सुखराम ने जिस तरह मंडी उपचुनाव में विरोध की कील ठोंकी है, उसका कुछ असर तो भाजपा के ही काम आएगा।
यह दीगर है कि मंडी उपचुनाव में कांग्रेस के पास स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की विरासत व परिवार की संवेदना से जुड़ा सबसे मजबूत प्रत्याशी यानी रानी प्रतिभा सिंह हैं। दूसरी ओर अर्की हलके में भाजपा को मिल रहा भीतरी आघात है, तो सामने कांग्रेस भी ऊहापोह की स्थिति में झूल रही है। जुब्बल-कोटखाई में दोनों पार्टियों का भीतरी परिवारवाद ठाठें मार रहा है। वहां चेतन बरागटा के सामने रोहित का होना सियासी परवरिश का तारतम्य बन जाता है, लेकिन पलकें उठाकर फतेहपुर उपचुनाव की महत्त्वाकांक्षा ने इसे कई कोणीय बना दिया है। यहां चित्तौड़ के दुर्ग की तरह सियासत के घोड़े दौड़ रहे हैं। स्वर्गीय सुजान सिंह की मौत का खालीपन उनके बेटे भवानी सिंह भर पाएंगे या उन्हें कांग्रेस के उत्तराधिकार में पैदा हो रहा गैर-परिवारवाद स्वीकार करेगा, कहा नहीं जा सकता। दूसरी ओर भाजपा के गले में पुष्पमाला की तरह वर्षों से सजे कृपाल परमार का वजन, आंतरिक विरोध के लक्षणों को मिटा पाएगा। जो भी हो, परीक्षा के फलक पर ये चार उपचुनाव अपनी गहन कसरतों के पैमाने तय कर रहे हैं, जहां ये सवाल तो जनता के मन में भी उठेगा कि वह किसी को जितवा कर भी क्या हासिल कर लेगी। चंद महीनों के मेहमान को चुनने के लिए राजनीति अपने अवसरवाद को हर उपचुनाव में अलग-अलग तरह से देखेगी। यहां वंशवाद, जातिवाद या क्षेत्रवाद के कई बंद लिफाफे खुलेंगे या नीतियों के घर्षण में कोई नया राजनीतिक उत्पाद बिकेगा, कहा नहीं जा सकता। सरकार ने अपने मंतव्यों की फेहरिस्त में हर उपचुनाव की आरंभिक तैयारियों में कई घोषणाओं के शगुन जरूर डाले हैं, लेकिन विपक्ष के डाल पर बैठी कांग्रेस का मूड संघर्षशील है और विरोध का राष्ट्रव्यापी संवेग अगर हिमाचल के लिए मुद्दे तराश पाया, तो ये उपचुनाव वर्तमान राज्य सरकार की समीक्षा भी कर सकते हैं।

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