सम्पादकीय

2023 तक, कांग्रेस देश के हर राज्य से बाहर हो जाएगी, बशर्ते कोई चमत्कार न हो

Gulabi Jagat
14 March 2022 2:40 PM GMT
2023 तक, कांग्रेस देश के हर राज्य से बाहर हो जाएगी, बशर्ते कोई चमत्कार न हो
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साल 2019 में देश के विभिन्न राज्यों में कांग्रेस (Congress) के 5 मुख्यमंत्री थे
संदीपन शर्मा।
साल 2019 में देश के विभिन्न राज्यों में कांग्रेस (Congress) के 5 मुख्यमंत्री थे. हॉर्स ट्रेडिंग (Horse trading) की वजह से इनमें से एक की विदाई हो गई, और फिर चार बच गए. इसके बाद 2020 तक कांग्रेस के चार मुख्यमंत्री (Chief Minister) बचे थे, लेकिन इनमें एक को अपने डिप्टी के हाथों अपने पद से हाथ धोना पड़ा, फिर बचे तीन. 2022 में कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्री बचे थे, लेकिन 'डॉन सिद्धू क्विकजोट' की लकड़ी के तलवार की बलि चढ़ गए और बचे रहे दो. कुल मिलाकर अब दो मुख्यमंत्री ऐसे हैं जो 2023 तक अपने भाग्य का इंतजार कर रहे हैं और हो सकता है फिर कोई न बचे.
यदि कोई चमत्कार न हो तो 2023 तक भारत के सारे राज्यों में से कांग्रेस बाहर हो जाएगी. ऐसा इतिहास में पहली बार होगा, जब कांग्रेस के अक्स तले देश का कोई राज्य नहीं होगा. वह पार्टी जिसने देश में करीब 6 दशकों तक शासन किया हो, वह पार्टी जिसने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुवाहाटी से लेकर गांधीनगर तक चुनाव जीते हों, वह भारत के चुनावी नक्शे से मिट जाएगी.
दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार
कांग्रेस यदि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव हार गई तो, यह पूरी तरह से गायब हो जाएगी. लेकिन यह मूल संकट का एक हिस्सा ही है. सबसे बड़ी समस्या तो कांग्रेस के वोट प्रतिशत को लेकर है. 2022 के यूपी चुनाव में इस पार्टी को महज 2.5 फीसदी वोट मिले. वोटर शेयर का यह प्रतिशत, राष्ट्रीय लोक दल जैसी पार्टियों के वोट शेयर से भी कम है और अपना दल, निषाद पार्टी जैसी छोटी पार्टियां, जिनकी केवल राज्य के कुछ ही हिस्सों में उपस्थिति है, उसके शेयर के लगभग बराबर है. यूपी में कांग्रेस से कम वोट शेयर पाने वाली पार्टी में एकमात्र पार्टी असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM है.
देश के हर राज्यों में कांग्रेस हुई कमजोर
ऐसा नहीं कि यह ट्रेंड केवल यूपी में ही देखने को मिल रहा है. देश के हर राज्य में कांग्रेस का यही हाल है. बिहार के हालिया उपचुनाव में कांग्रेस को केवल तीन फीसदी वोट प्राप्त हुए. जबकि विधानसभा चुनाव में जब इसने राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, तब इस 9.48 फीसदी वोट मिले थे. मुख्य बात यह है कि कांग्रेस की स्थिति एक मरणासन्न मरीज की तरह हो चुकी है. यह वह मरीज है जो वास्तविकता को न पहचानते हुए लगातार इनकार की मुद्रा में है. पार्टी का दंभ, उसके भीतर ही मौजूद नजर आता है. ममता बनर्जी के आरोपों पर कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी तर्क देते हैं कि पार्टी के पास अभी भी देश का 20 फीसदी वोट शेयर है और पूरे देश में इसके 700 विधायक हैं. लेकिन मौजूदा ट्रेंड के हिसाब से देखें तो आपको यह कहने के लिए किसी आगथा क्रिस्टी की जरूरत नहीं होगी कि, जल्दी ही कुछ नहीं बचेगा.
कांग्रेस के लिए बीजेपी एक चुनौती
भारत के राजनीतिक परिदृश्य की रूपरेखा तेजी से स्पष्ट होती जा रही है. और इसके मुख्य केंद्र में बीजेपी होगी, एक ऐसे पर्वत की तरह जिसे पार करना आसान नहीं होगा. जिन राज्यों में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस होगी, वहां विपक्ष का स्थान आप पार्टी और मजबूत स्थानीय पहचान वाली क्षेत्रीय पार्टियां ले लेंगी. गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बेबसी के साथ अपने से जमीन का टुकड़ा तलाशती रह जाएगी. इसकी कब्र पर बीजेपी के लिए नई चुनौतियां पैदा होंगी.
कांग्रेस के वोट शेयर में काफी गिरावट
इसके अलावा, कई राज्यों में इसका वोट शेयर इतना महत्वहीन हो जाएगी कि कोई भी पार्टी इसे एक सहयोगी के तौर पर अपने साथ मिलाने की इच्छा नहीं रखेगी. हाल के बिहार चुनाव में मिली हार के बाद तेजस्वी यादव ने यह महसूस कर लिया था कि बतौर सहयोगी कांग्रेस पार्टी, उन पर एक बोझ थी. अखिलेश यादव ने अपनी और तेजस्वी की गलतियों से सीख लिया और यूपी चुनाव में कांग्रेस को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया.
गर्त में कांग्रेस का भविष्य
जल्द ही यह बात दूसरी पार्टियों को भी समझ आ जाएगी. AIMIM की तरह, यह पार्टी अपनी सीमित स्वीकार्यता और असीमित बोझ के कारण एक तरह से अछूत बन जाएगी. कांग्रेस के भविष्य को लेकर कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है. कार्ल सागन के मुताबिक, विलुप्त होना एक नियम है और अपना अस्तित्व बचाए रख पाना एक अपवाद है. यह नियम कांग्रेस पर फिट बैठता है. कांग्रेस डायनासोर की तरह विलुप्त हो जाएगी. और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह भरोसा करना भी कठिन हो जाएगा कि एक वक्त में ऐसी कोई जीवित हुआ करती थी.
गुजरात में कांग्रेस ने किया था बेहतर प्रदर्शन
क्या कांग्रेस इस हालात में कुछ कर सकती है? ईमानदारी से कहा जाए तो देवदास फिल्म में चुन्नी बाबा की तरह, कांग्रेस को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि, "हम लाइलाज हो गए". देवदास की तरह, ऐसी कई पारो हुईं जिन्होंने कांग्रेस को सहारा देने का प्रयास किया. लेकिन, वह मरने के लिए इस कदर बेताब हो चुका था कि उसने किसी भी बात को मानने से इनकार कर दिया. इस पार्टी के लिए, एक खास वक्त तब आया था जब इसने बीजेपी के गढ़, किला, प्रयोगशाला या मंदिर कहे जाने वाले गुजरात में बीजेपी के खिलाफ मजबूत प्रदर्शन किया था.
2017 में कांग्रेस ने बीजेपी को दी थी कड़ी टक्कर
साल 2017 में कांग्रेस ने नींद से जागकर बीजेपी को तगड़ी टक्कर दी थी. हालात यहां तक हो गए थे कि बीजेपी को करीब-करीब हार का सामना करना पड़ता. इसके बाद, इसने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की. लेकिन, जीत की इमारत को और मजबूत बनाने के बजाए, कांग्रेस ने इसे तोड़ने के लिए कई बड़ी गलतियां की. लॉटरी जीते हुए एक जुआरी की तरह उसने थोड़े ही समय में सब कुछ गंवा दिया. इसने असहमित को विनाश में, दोस्तों को दुश्मनों में बदलने दिया और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे फिदायीन के हाथों पार्टी को पुनर्जीवित करने का जिम्मा दे दिया. पंचतंत्र में ऐसी कहानी आती है, जहां एक राजा ने एक बंदर को अपना निकट सहयोगी बनाया था. लेकिन यह अलग वक्त की बात है.
गांधी परिवार के हाथों में कांग्रेस की बागडोर
अब, कांग्रेस लाइलाज हो चुकी है. पार्टी की इस दुर्दशा का असली जिम्मेदार गांधी परिवार है. लेकिन उन्होंने खुद को इतना बड़ा कर लिया है कि उनके बिना कांग्रेस की कल्पना नहीं की जा सकती. उन्हें निकालने का अर्थ, पार्टी को खत्म करना होगा. विरोधाभास यह है कि कांग्रेस में बागियों- इनमें से ज्यादातर नेता ऐसे हैं जो नगरपालिका चुनाव तक जीतने की हैसियत नहीं रखते- का अस्तित्व केवल गांधी परिवार के शिखर पर होने की वजह से टिका हुआ है. यदि इन्हें हटा दिया जाए तो उनके पास कुछ नहीं रह जाएगा. पसोपेश के इस हालात पर जोसेफ हेलर शायद यह कहते "यदि आप गांधी परिवार को निकालते हैं तो, कांग्रेस खत्म हो जाएगी" लेकिन यदि इन्हें बने रहने देते हैं तो भी कांग्रेस खत्म हो जाएगी. तो परेशान होने की क्या जरूरत है? इसकी विरासती मुद्दे, इसके प्रतिद्वंद्वियों के लिए इसे मुस्लिम समर्थक, विकास विरोधी, वंशवादी और भ्रष्ट के रूप में मजाक उड़ाने को आसान बनाते हैं. और पार्टी के पास इन आरोपों का जवाब देने के लिए नैतिक, राजनीतिक या वैचारिक आधार भी नहीं है. यह किसी दोषी व्यक्ति की तरह अपराध बोध से ग्रस्त है, भले ही कुछ आरोप बहुत अधिक अपमानजनक हैं.
हो सकता है कांग्रेस का विभाजन
अंत में आप कांग्रेस के लिए दुखी होंगे. आप जानते हैं कि यह खत्म हो रही है, लेकिन कोई भी कुछ नहीं कर सकता, यहां तक कि दया दिखाने के कुछ शब्द भी नहीं हैं. कांग्रेस वर्किंग कमेटी एक बैठक करेगी. पुराने अंदाज में कुछ सबक हासिल करने की कोशिश की जाएगी और एक बार फिर कांग्रेस में विभाजन होगा. कुछ बहादुर, निडर विद्रोही शायद गांधी परिवार के साथ वैसा ही करने के लिए दुस्साहस करें जैसा उन्होंने 1998 में सीताराम केसरी के साथ किया था. केसरी की धोती खींची गई थी, उनके नेमप्लेट को हटाया गया था, ताकि सोनिया गांधी के लिए रास्ता साफ किया जा सके. दूसरी ओर, कुछ चाटुकार नेता अपनी बात रखेंगे और पार्टी के भविष्य हाईकमान के हाथों सौंप देंगे और पार्टी को खत्म करने के आरोपों से गांधी परिवार को मुक्त कर देंगे.
कांग्रेस को फिर से जमीन तलाशने में लगेंगे वक्त
लेकिन अंत में, कांग्रेस में चलने वाला ड्रामा, अंतिम संस्कार के पहले होने वाले एक बदसूरत नाटक की तरह होगा. यह वास्तविक हालातों को काल्पनिक कथाओं के जरिए स्पष्ट करने जैसा है कि रानी के सभी घोड़े और राजकुमार के प्यादे, इस बेजान राज्य को दोबारा खड़ा नहीं कर पाएंगे. जल्द ही, वहां कोई नहीं होगा.
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