सम्पादकीय

आसियान देशों से कारोबार की उम्मीदें

Rani Sahu
14 Nov 2021 6:43 PM GMT
आसियान देशों से कारोबार की उम्मीदें
x
इससे भारत-आसियान आर्थिक रिश्तों और कारोबार संबंधों की नई संभावनाएं आगे बढ़ी हैं

हाल ही में 28 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रूनेई के सुल्तान हाजी हसनल बोलकिया के साथ संयुक्त रूप से भारत-आसियान शिखर बैठक की अध्यक्षता करते हुए वर्ष 2022 को भारत-आसियान फ्रेंडशिप वर्ष के तौर पर मनाने का फैसला किया है। इससे भारत-आसियान आर्थिक रिश्तों और कारोबार संबंधों की नई संभावनाएं आगे बढ़ी हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना काल के दौरान भारत और आसियान दोनों तरफ से जिस तरह एक-दूसरे को सहयोग किया गया है, उससे अब भारत-आसियान आर्थिक रिश्ते प्रगाढ़ होंगे। ज्ञातव्य है कि भारत ने आसियान को कोविड से लड़ाई के लिए सृजित फंड में दस लाख डॉलर की भी मदद की है। इस मौके पर दोनों पक्षों में नए कारोबारी संबंधों के विकल्पों पर भी विचार किया गया। गौरतलब है कि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान में वियतनाम, लाओस, म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रूनेई और कंबोडिया शामिल हैं। पिछले वर्ष 15 नवंबर 2020 को दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड समझौते रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) ने 15 देशों के हस्ताक्षर के बाद जो मूर्तरूप लिया है, भारत उस समझौते में शामिल नहीं हुआ है। इस बार फिर आसियान सदस्यों के साथ मोदी ने स्पष्ट किया कि मौजूदा स्वरूप में भारत आरसेप का सदस्य होने को इच्छुक नहीं है। भारत के मुताबिक आरसेप के तहत देश के आर्थिक तथा कारोबारी हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। आरसेप समझौते में अब तक भारत की चिंताओं का भी निदान नहीं किया गया है। अब एक ओर जहां भारत आसियान देशों के साथ नए कारोबार समझौतों के लिए आगे बढ़ रहा है, वहीं भारत दुनिया के ऐसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को तेजी से अंतिम रूप देने पर अपना ध्यान फोकस करते हुए दिखाई दे रहा है, जिन्हें भारत के बड़े चमकीले बाजार की जरूरत है और जो देश बदले में भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार के दरवाजे भी खोलने के लिए उत्सुक हैं।

वस्तुतः विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत विश्व व्यापार वार्ताओं में जितनी उलझनें खड़ी हो रही हैं उतनी ही तेजी से विभिन्न देशों के बीच एफटीए बढ़ते जा रहे हैं। यह एक अच्छी बात है कि डब्ल्यूटीओ कुछ शर्तों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए की इजाजत भी देता है। एफटीए ऐसे समझौते हैं जिनमें दो या दो से ज्यादा देश आपसी व्यापार में कस्टम और अन्य शुल्क संबंधी प्रावधानों में एक-दूसरे को तरजीह देने पर सहमत होते हैं। दुनिया में इस समय 300 से ज्यादा एफटीए दिखाई दे रहे हैं। भारत ने पिछले 10 वर्षों में किसी बड़े एफटीए पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वर्ष 2011 में भारत ने मलेशिया के साथ एफटीए किया था। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष विगत 22 फरवरी को भारत और मॉरीशस के द्वारा सीमित दायरे वाले एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस समझौते के तहत भारत के कृषि, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स और विभिन्न क्षेत्रों के 300 से अधिक घरेलू सामानों को मॉरीशस में रियायती सीमा शुल्क पर बाजार में प्रवेश मिल सकेगा। समझौते के तहत मॉरीशस की 615 तरह की वस्तुओं/उत्पादों के आयात पर भारत में शुल्क कम या नहीं लगेगा। इनमें फ्रोजन मछली, बीयर, मदिरा, साबुन, थैले, चिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा उपकरण और परिधान शामिल हैं। ज्ञातव्य है कि सीमित दायरे वाले ट्रेड एग्रीमेंट के पीछे वजह यह है कि ये मुक्त व्यापार समझौते की तरह बाध्यकारी नहीं होते हैं यानी अगर बाद में किसी खास कारोबारी मुद्दे पर कोई समस्या होती है तो उसे दूर करने का विकल्प खुला होता है। भारत ने पूर्व में जिन देशों के साथ एफटीए किए हैं, उनके अनुभव को देखते हुए इस समय सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते ही बेहतर हैं। उल्लेखनीय है कि आसियान सहित दुनिया के कई देश भारत के बढ़ते हुए उद्योग और कारोबार के मद्देनजर भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक समझौतों में अपना आर्थिक लाभ अनुभव करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि पिछले कुछ सालों में भारत ने आर्थिक मोर्चे पर उजली कामयाबी हासिल की है। कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों का सफलतापूर्वक मुकाबला करते हुए भारत वर्ष 2021-22 में दुनिया में सबसे अधिक 9-10 फीसदी विकास दर वाले देश के रूप में चिह्नित किया जा रहा है। भारत में डिजिटलीकरण, बुनियादी ढांचा, विनिर्माण, शहरी नवीनीकरण और स्मार्ट शहरों पर बल दिया जा रहा है। आसियान देशों के लिए विशेष तौर पर कुछ ऐसे क्षेत्रों में निवेश करने के लिए अच्छे मौके हैं जिनमें भारत ने काफी उन्नति की है। ये क्षेत्र हैं डिजिटलीकरण, ई-कॉमर्स, सूचना प्रौद्योगिकी, बायोटेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल्स, पर्यटन और आधारभूत क्षेत्र। आसियान सहित दुनिया के विभिन्न देशों में इस बात को समझा गया है कि कोविड-19 के बीच भारत के प्रति बढ़ा हुआ वैश्विक विश्वास, आधुनिक तकनीक, बढ़ते घरेलू बाजार, व्यापक मानव संसाधन, वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में दक्षता जैसी अहमियत भारत को आर्थिक ऊंचाई दे रही हैं। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि कोरोना काल ने एफटीए को लेकर सरकार की सोच बदल दी है। सरकार बदले वैश्विक माहौल में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोपीय संघ (ईयू) और ब्रिटेन सहित कुछ और विकसित देशों के साथ सीमित दायरे वाले व्यापार समझौतों की निर्णायक डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा सितंबर 2021 में अमेरिका की यात्रा और अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ वार्ता से भारत के अच्छे आर्थिक और कारोबारी संबंधों की नई संभावनाओं के परिदृश्य ने भारत और अमेरिका के बीच सीमित दायरे वाले कारोबारी समझौते की संभावनाएं बढ़ाई हैं। यह बात महत्वपूर्ण है कि मोटे तौर पर भारत और अमेरिका के बीच कारोबार के सभी विवादास्पद बिंदुओं का समाधान कर लिया गया है।
भारत ने अमेरिका से जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज (जीएसपी) के तहत कुछ निश्चित घरेलू उत्पादों को निर्यात लाभ फिर से देने की शुरुआत करने और कृषि, वाहन, वाहन पुर्जों और इंजीनियरिंग क्षेत्र के अपने उत्पादों के लिए बड़ी बाजार पहुंच देने की मांग की है। दूसरी ओर अमेरिका भारत से अपने कृषि और विनिर्माण उत्पादों, डेयरी उत्पादों और चिकित्सा उपकरणों के लिए बड़े बाजार की पहुंच, डेटा का स्थानीयकरण और कुछ सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उत्पादों पर आयात शुल्कों में कटौती चाहता है। यद्यपि ऑस्ट्रेलिया, ईयू और ब्रिटेन सहित कुछ और देशों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए के लिए चर्चाएं संतोषजनक रूप में हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी बनी हुई हैं। अब भारत को मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव देश की कारोबार जरूरतों और वैश्विक व्यापार परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए करना होगा। हम उम्मीद करें कि 28 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा भारत-आसियान शिखर बैठक की अध्यक्षता और वर्ष 2022 को भारत-आसियान फ्रेंडशिप वर्ष मनाए जाने के महत्वपूर्ण निर्णय के बाद आसियान देशों के साथ भारत के नए द्विपक्षीय आर्थिक रिश्तों की संभावनाएं आगे बढ़ेंगी। साथ ही भारत दुनिया के विभिन्न देशों के साथ नए सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौतों की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़ेगा। खास तौर से आस्ट्रेलिया, अमेरिका, ईयू और ब्रिटेन के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जाएगा। ऐसी वैश्विक और विदेश व्यापार रणनीति से भारत के विदेश-व्यापार के नए अध्याय लिखे जा सकेंगे।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री


Next Story