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By: divyahimachal : घाटे का हिमाचल पथ परिवहन निगम फेस्टिवल सीजन में कुछ आर्थिक सांसें लेने में कामयाब रहा, तो इसके मायने गंभीरता से समझने होंगे। सरकारी बसें अगर अक्तूबर में 76 करोड़ कमा सकती हैं, तो अन्य महीनों में कमर क्यों टूट रही है। दरअसल निगम अगर हिमाचली परिवहन की मांग को समझे तथा इसी के अनुरूप चले तो कमाने की व्यवस्था बन सकती है, लेकिन जिस ढर्रे और बुनियाद पर एचआरटीसी अपनी प्राथमिकताएं तय करती है, वहां घाटे के बिखराव में सारी मेहनत बेकार हो रही है। एक बस के ऊपर औसतन जितना स्टाफ व अधिकारी नियुक्त हैं, उसे देखते हुए कोई आदर्श स्थापित करना मुश्किल है। जाहिर है अक्तूबर में अंतरराज्यीय रूटों पर सरकारी बसों ने ज्यादा यात्री ढोए, लेकिन इस सेवा का पूर्ण विकल्प होता, तो कहानी गौण हो जाती। यह इसलिए कि लंबे रूटों पर भी सरकारी बसों का हुलिया बिगड़ा हुआ है। अक्तूबर की कमाई में दूर बैठे हिमाचली की उम्मीदें हैं या लौटने के रास्ते यूं भी कट जाते हैं। हर सप्ताहांत निजी छोटे वाहनों की शेयरिंग कैपेस्टी में, उपलब्ध ऐप कितनी मंजिलें उपलब्ध करा रही है, यह आधुनिक परिवहन का एक सशक्त विकल्प है। रोज निजी वोल्वो पर सवार होता हिमाचल अपने साथ पर्यटन और पर्यटक को जोड़ लेता है। इसलिए अगर अक्तूबर महीना एचआरटीसी को आशाजनक रहा, तो परिवहन की आशा हर दिन प्राइवेट बसों में क्यों बैठती है।
अक्तूबर माह विभिन्न प्रदेशों को दौड़ी निजी बसों की कमाई और शुमारी ने खुद को पहली पसंद बनाए रखा तो जाहिर तौर पर, उस हिसाब में परिवहन की क्षमता का लेखा-जोखा भी तो होना चाहिए। प्रमुख पर्यटक स्थलों से निकली वोल्वो बसों ने इस बार भी दिल्ली लूटी है, तो इस प्रतिस्पर्धा मेें आंसू पौंछ कर कुछ नहीं मिलेगा। खास तौर पर वोल्वो बसों की सरकारी सेवा में हारतीं सीटें, सरकारी बर्ताव, रखरखाव और यात्री सुविधाओं की कमजोरी दिखाई देती है। बेशक एचआरटीसी आम हिमाचली की गाड़ी है, लेकिन पर्यटन की बढ़ती क्षमता में सरकारी बसों की हिस्सेदारी क्यों घट रही है, इसके ऊपर विचार करना होगा। अगर एचपीटीडीसी और एचआरटीसी हाथ मिलाएं तथा दोनों की क्षमता को जोड़ते हुए साझी मार्किटिंग का हुनर दिखाएं, तो पर्यटन के हर पहलू में दोनों का आर्थिक उजाला होगा। मसलन एचआरटीसी के ट्रैवल पैकेज में दिन का भ्रमण अगर परिवहन निगम सुनिश्चित करते हुए रात्रि विश्राम सरकारी होटल में कराए, तो इस युगलबंदी को छूने के लिए निजी क्षेत्र को भी मेहनत करनी होगी। एचआरटीसी के पास तमाम बस स्टैंड कल के मॉल, महापार्किंग स्थल और पर्यटन केंद्र बन सकते हैं, बशर्ते संपत्तियों के इस्तेमाल का नजरिया बदले। एचआरटीसी अपने तौर पर प्रदेश में भोजनालय शृंखला खड़ी करके यात्री और यात्रा के बीच एक अनूठा सामंजस्य पैदा कर सकती है। इसी तरह अंतरराज्यीय मार्गों पर अगर यात्री सुविधाएं प्रदान करने की मिलकीयत में एचआरटीसी निवेश करे, तो सरकारी बसों के साथ भरोसा बढ़ेगा। एचआरटीसी की सफलता के मानक अलग नहीं हो सकते और न ही निजी ट्रांसपोर्ट को देखे बिना यह आगे बढ़ पाएगी। प्रदेश के समूचे परिवहन क्षेत्र को उद्योग का दर्जा देकर परिवहन निगम का नेतृत्व करने के लिए जनता का विश्वास, नवाचार, ऊर्जा, यात्री संवेदना और व्यापारिक उद्देश्य अर्जित करने पड़ेंगे।
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Gulabi Jagat
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