- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- फूटता गुस्सा
Written by जनसत्ता: श्रीलंका में जनता का गुस्सा अचानक नहीं फूटा। आर्थिक संकट से जूझते देश में जिस तरह की राजनीतिक अस्थिरता भी बनी हुई है, उसमें आज नहीं तो कल यह होना ही था। गुस्साई भीड़ जिस तरह से राष्ट्रपति निवास में घुस गई, उससे साफ है कि जनता अब उन नेताओं को बर्दाश्त नहीं करने वाली जिन पर से उसका भरोसा खत्म हो चुका है। जनता ने बड़े भरोसे और उम्मीदों के साथ एक दशक तक जिस सरकार को सत्ता सौंप रखी थी, आज वह उन्हीं के घर फूंकने पर वह उतारू हो गई है।
इतना बड़ा कांड अचानक नहीं हो सकता। इसके पीछे काफी पहले से और कई कारण देखे जा सकते हैं। अब यह कहने में किसी को हिचक नहीं हो सकती कि ऐसी नौबत इसलिए आई, क्योंकि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे पद छोड़ने को तैयार नहीं थे। न ही वे देश की आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का हल निकाल पा रहे थे।
गौरतलब है कि दो महीने पहले प्रदर्शनकारियों ने तब के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, जो राष्ट्रपति के सगे बड़े भाई हैं, के घर में घुस कर उसे भी आग के हवाले कर दिया था। इस घटना के बाद महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया था और चुपचाप भाग निकले थे। अब वही हाल गोटबाया राजपक्षे का हुआ। ऐसी खबरे हैं कि वे भी देश से भाग गए हैं। इधर प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भी इस्तीफा दे चुके हैं। कहा जा सकता है कि जनता ने बिगुल बजा दिया है।
लंबे समय से कंगाली झेल रहे इस प्रायद्वीप में आज लाखों लोग सड़कों पर हैं। इनमें आमजन के अलावा वकील, पुलिसकर्मी, सरकारी कर्मचारी, रेल कर्मचारी, शिक्षक, स्वास्थ्यकर्मी आदि सब शामिल हैं। सबकी एक ही मांग रही कि राष्ट्रपति सहित मौजूदा सरकार हटे और ऐसी सरकार बने जो देश को आर्थिक संकट से निकाल सके। अब यह तो साफ हो गया है कि कार्यवाहक राष्ट्रपति और अंतरिम सरकार ही इस देश का भविष्य तय करेंगे।
दरअसल, श्रीलंका जिस विकट परिस्थिति से गुजर रहा है, उसका तात्कालिक समाधान किसी के पास नहीं दिखता। नई सरकार किसी की भी बने या सर्वदलीय ही क्यों न हो, उसके सामने पहली चुनौती देश को आर्थिक संकट से उबारने की होगी। हालात ऐसे हो गए हैं कि चाहे कुछ भी कर लिया जाए, श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सालों लग जाएंगे।
श्रीलंका की ऐसी दुर्गति के पीछे एक और बड़ा कारण अंदरूनी भ्रष्टाचार भी माना जा रहा है। उन हालात में भी लगातार एक दशक तक राजपक्षे परिवार सत्ता पर काबिज रहा। पहले महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति थे और गोटबाया राजपक्षे रक्षा मामलों के प्रमुख थे। फिर गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बन गए और महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री। इनके एक और भाई सरकार में वित्त मंत्री थे। महिंदा राजपक्षे का एक बेटा भी सरकार में काबीना मंत्री था। राजपक्षे खानदान शुरू से चीन समर्थक रहा। बड़े कारोबारी और वित्तीय निर्णय भी चीन को लाभ पहुंचाने वाले रहे।
इसके बदले चीन श्रीलंका को भारी कर्ज देता रहा। आज श्रीलंका चीन के कर्ज में दबा पड़ा है। देश का खजाना खाली है। जनता के पास र्इंधन, दवाइयां और खाद्य सामग्री खरीदने तक के लिए पैसे नहीं है। आबादी का बड़ा हिस्सा दो-दो दिन भूखे रहने को मजबूर है। स्कूल-कालेज, बिजलीघर और रेल बंद हैं। ऐसे में लोगों का डर और बेचैनी वाजिब है, क्योंकि देश में अब भुखमरी और लूटपाट जैसे संकट सामने हैं। ऐसे में जनता का रुख बता रहा है कि वह लंबे समय तक कुशासन बर्दाश्त नहीं करेगी।