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फाइल फोटो
गौरतलब है कि पिछले दिनों दिल्ली के एम्स के सात सर्वरों में वायरस भेज कर ठप्प कर दिया गया था।
जनता से रिश्ता वेबडेसक | गौरतलब है कि पिछले दिनों दिल्ली के एम्स के सात सर्वरों में वायरस भेज कर ठप्प कर दिया गया था। इसके चलते वहां का कामकाज कई दिनों तक बाधित रहा।
फिर पता चला कि उन सर्वरों को हैक करने यानी बंधक बनाने वालों ने सरकार से पैसे की मांग की है। हालांकि शुरू में दिल्ली पुलिस ने इस बात से इनकार किया। मगर अब आशंका जताई जा रही है कि एम्स के सर्वर में संचित तीन से चार करोड़ मरीजों का डेटा चोरी कर लिया गया है। उनमें कई महत्त्वपूर्ण लोग भी शामिल हैं। जांच से पता चला है कि चीन के दो शहरों से इन सर्वरों में सेंधमारी की गई थी। हालांकि अभी तक सेंधमारों की पहचान नहीं हो सकी है। जल्दी ही इसका पता लगा लेने का दावा किया जा रहा है। मगर इसमें जो डेटा चोरी चला गया उसे वापस लाना और यह सुनिश्चित करना कि उसका कहीं दुरुपयोग नहीं हुआ है या होगा, संभव नहीं होगा।
आजकल जिस तरह कामकाज में आसानी और तेजी के तर्क पर पूरी दुनिया में डेटा संग्रह के लिए डिजिटल व्यवस्था पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, उसमें डेटा की सुरक्षा को लेकर लगातार आशंका जताई जाती रही है। जब आधार कार्ड शुरू हुआ था, तब भी अनेक विशेषज्ञों ने कहा था कि इसके जरिए लोगों का व्यक्तिगत जैविक डेटा आसानी से चोरी किया जा सकता है। कुछ लोगों ने सार्वजनिक रूप से ऐसा करके दिखाया भी।
मगर सरकार दावा करती रही कि डेटा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं। मगर पिछले दिनों यह भी खुलासा हुआ कि भारत के लाखों लोगों के निजी ब्योरे बाजार में चार सौ से पांच सौ रुपए में बिकने को उपलब्ध हैं। इसे लेकर अब कुछ सतर्क लोग अपने व्यक्तिगत डिजिटल डेटा की सुरक्षा खुद करने लगे हैं, मगर एम्स जैसे सरकारी संस्थानों के सर्वर में संचित संवेदनशील डेटा अगर सेंधमारों के हाथ लग जाए, तो कई तरह के खतरे पैदा हो सकते हैं।
बताया जा रहा है कि एम्स के ई-अस्पताल वाले डेटा के चोरी जाने की आशंका है। संभव है, कोई दवा कंपनी इस तरह अस्पतालों का डेटा चोरी करा कर अपनी कारोबारी रणनीति तैयार करना चाहती हो। फिर यह भी हो सकता है कि कोई उपद्रवी संगठन किसी साजिश के लिए उनका इस्तेमाल करना चाहता हो। किसी भी व्यक्ति का जैविक डेटा चोरी जाने का मतलब है कि उसके बारे में हर जानकारी प्राप्त कर लेना। आजकल सबसे अधिक खतरा बैंकों पर मंडराता रहता है। मामूली सेंधमार भी लोगों के खातों से बड़ी-बड़ी रकम उड़ा ले जाते हैं।
इसी तरह कारोबारी गतिविधियों, सरकार के गुप्त दस्तावेजों, योजनाओं, फैसलों, रणनीतियों आदि में सेंधमारी के प्रयास भी देखे गए हैं। आजकल हर आदमी के हाथ में मोबाइल फोन आ जाने से बहुत सारे विवरण आसानी से चोरी करने के उपाय निकाल लिए गए हैं। चीन से ऐसी अनेक गतिविधियों का संचालन देखा गया है। इसलिए डिजिटल व्यवस्था पर निर्भरता बढ़ाने के साथ-साथ उसकी सुरक्षा को सौ फीसद सुरक्षित बनाने के उपायों पर कड़ाई से काम होना चाहिए।गौरतलब है कि पिछले दिनों दिल्ली के एम्स के सात सर्वरों में वायरस भेज कर ठप्प कर दिया गया था। इसके चलते वहां का कामकाज कई दिनों तक बाधित रहा।
फिर पता चला कि उन सर्वरों को हैक करने यानी बंधक बनाने वालों ने सरकार से पैसे की मांग की है। हालांकि शुरू में दिल्ली पुलिस ने इस बात से इनकार किया। मगर अब आशंका जताई जा रही है कि एम्स के सर्वर में संचित तीन से चार करोड़ मरीजों का डेटा चोरी कर लिया गया है। उनमें कई महत्त्वपूर्ण लोग भी शामिल हैं। जांच से पता चला है कि चीन के दो शहरों से इन सर्वरों में सेंधमारी की गई थी। हालांकि अभी तक सेंधमारों की पहचान नहीं हो सकी है। जल्दी ही इसका पता लगा लेने का दावा किया जा रहा है। मगर इसमें जो डेटा चोरी चला गया उसे वापस लाना और यह सुनिश्चित करना कि उसका कहीं दुरुपयोग नहीं हुआ है या होगा, संभव नहीं होगा।
आजकल जिस तरह कामकाज में आसानी और तेजी के तर्क पर पूरी दुनिया में डेटा संग्रह के लिए डिजिटल व्यवस्था पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, उसमें डेटा की सुरक्षा को लेकर लगातार आशंका जताई जाती रही है। जब आधार कार्ड शुरू हुआ था, तब भी अनेक विशेषज्ञों ने कहा था कि इसके जरिए लोगों का व्यक्तिगत जैविक डेटा आसानी से चोरी किया जा सकता है। कुछ लोगों ने सार्वजनिक रूप से ऐसा करके दिखाया भी।
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मगर सरकार दावा करती रही कि डेटा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं। मगर पिछले दिनों यह भी खुलासा हुआ कि भारत के लाखों लोगों के निजी ब्योरे बाजार में चार सौ से पांच सौ रुपए में बिकने को उपलब्ध हैं। इसे लेकर अब कुछ सतर्क लोग अपने व्यक्तिगत डिजिटल डेटा की सुरक्षा खुद करने लगे हैं, मगर एम्स जैसे सरकारी संस्थानों के सर्वर में संचित संवेदनशील डेटा अगर सेंधमारों के हाथ लग जाए, तो कई तरह के खतरे पैदा हो सकते हैं।
बताया जा रहा है कि एम्स के ई-अस्पताल वाले डेटा के चोरी जाने की आशंका है। संभव है, कोई दवा कंपनी इस तरह अस्पतालों का डेटा चोरी करा कर अपनी कारोबारी रणनीति तैयार करना चाहती हो। फिर यह भी हो सकता है कि कोई उपद्रवी संगठन किसी साजिश के लिए उनका इस्तेमाल करना चाहता हो। किसी भी व्यक्ति का जैविक डेटा चोरी जाने का मतलब है कि उसके बारे में हर जानकारी प्राप्त कर लेना। आजकल सबसे अधिक खतरा बैंकों पर मंडराता रहता है। मामूली सेंधमार भी लोगों के खातों से बड़ी-बड़ी रकम उड़ा ले जाते हैं।
इसी तरह कारोबारी गतिविधियों, सरकार के गुप्त दस्तावेजों, योजनाओं, फैसलों, रणनीतियों आदि में सेंधमारी के प्रयास भी देखे गए हैं। आजकल हर आदमी के हाथ में मोबाइल फोन आ जाने से बहुत सारे विवरण आसानी से चोरी करने के उपाय निकाल लिए गए हैं। चीन से ऐसी अनेक गतिविधियों का संचालन देखा गया है। इसलिए डिजिटल व्यवस्था पर निर्भरता बढ़ाने के साथ-साथ उसकी सुरक्षा को सौ फीसद सुरक्षित बनाने के उपायों पर कड़ाई से काम होना चाहिए।
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Triveni
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