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यूपी में चुनावी सरगर्मी के बीच आवारा पशुओं की समस्या प्रमुख चुनावी मुद्दे के तौर पर उभरी है
राकेश दीक्षित.
यूपी में चुनावी सरगर्मी के बीच आवारा पशुओं (Stray Animals) की समस्या प्रमुख चुनावी मुद्दे के तौर पर उभरी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने प्रदेश के मतदाताओं से वादा किया है कि 10 मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद इस समस्या से निपटने के लिए नई नीति पेश की जाएगी. 2017 में बीजेपी (BJP) के सत्ता में आने के बाद से यह संकट और गहरा गया है. कई स्थानीय पशु बाजार बंद हो गए हैं. उन्नाव में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस समस्या से "छुटकारा" पाने के लिए नया सिस्टम लागू किया जाएगा.
उन्होंने वादा किया, "मैं आपके सामने एक ऐसी व्यवस्था रखूंगा जिसके तहत आप उस जानवर के गोबर से भी आय प्राप्त कर सकते हैं जो अब दूध नहीं देता है." समाजवादी पार्टी पहले ही वादा कर चुकी है कि अगर वह सत्ता में आती है तो आवारा सांडों के हमले में मारे गए लोगों के परिवारजनों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा देगी. इस समस्या से निपटने के लिए कांग्रेस पार्टी ने छत्तीसगढ़ मॉडल को अपनाने का वादा किया है. पार्टी ने घोषणापत्र में आवारा पशुओं या अन्य जानवरों द्वारा क्षतिग्रस्त हुई कृषि भूमि को 3,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देने का वादा किया है.
इतना ही नहीं, पशुपालन को प्रोत्साहन देने और इस खतरे से निपटने के लिए किसानों से 2 रुपये प्रति किलो गाय का गोबर खरीदने की पेशकश की गई है. प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है, आवारा पशुओं का मुद्दा बीजेपी को सताने लगा है. यूपी में जैसे-जैसे हम पश्चिम से पूर्व की ओर जाते हैं, गोवंश की आबादी बढ़ती जाती है. पशु वध प्रतिबंध का प्रभाव इन हिस्सों में अधिक दिखाई देता है जहां मतदान आगामी चरणों में होने वाले हैं.
पशु वध प्रतिबंध का असर दिखता है
प्रदेश के करीब 12 लाख बेसहारा पशुओं की गौशालाओं में उचित देखभाल के लिए वार्षिक बजट में लगभग 8,760 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. राज्य में सात चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव के चार चरणों का मतदान हो चुका है. लेकिन संभव है की गौवंश के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत की संभावनाओं को पहले से ही काफी नुकसान पहुंचा दिया हो. पिछले पांच वर्षों में आवारा पशुओं ने खेतों में फसलों को इतना भारी नुकसान पहुंचाया है कि गाय किसानों में धार्मिक भावना से अधिक भय पैदा करती है. योगी सरकार ने इस खतरे को नजरंदाज किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गाय को पवित्र मानने के साथ किसानों की सामूहिक पीड़ा भूल गए. ग्रामीण इलाकों में चुनाव प्रचार के दौरान लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है. सत्तारूढ़ बीजेपी की नींद खुल गई है और आवारा पशुओं की समस्या को दूर करने के मुद्दे पर चिंतित दिखाई पड़ती है. योगी सरकार द्वारा सख्ती से लागू किए गए पशु वध प्रतिबंध का असर जमीनी स्तर पर साफ दिखाई पड़ने लगा है.
किसानों को आर्थिक नुकसान
आवारा पशुओं का झुंड फसलों को नुकसान पहुंचाने के अलावा खेतों को रौंद देता है. इसके कारण किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. जानवरों को भगाने के लिए उन्हें रात-रात भर जागकर पहरा देना पड़ता है. इस समस्या से निपटने के लिए किसान मजबूर होकर खेतों को तार से घेरते हैं. किसानों का मानना है कि इससे बेवजह उनका पैसा खर्च होता है.
पीएम की तरफ से चुनावी वादा करने में हुई देरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को उत्तर प्रदेश में मतदाताओं से वादा किया कि 10 मार्च को चुनाव परिणामों की घोषणा होने के बाद इस मुद्दे से निपटने के लिए एक नई नीति पेश की जाएगी. उन्होंने कहा, 'जो पशु दूध नहीं देता है, उसके गोबर से भी आय हो, ऐसी व्यवस्था मैं आपके सामने खड़ी कर दूंगा.' उन्होंने आश्वासन तो दिया मगर समाधान की तरफ इशारा नहीं किया. मतदाताओं को समझाने के लिए मोदी का यह वादा अगर पहले मिलता तो बीजेपी को फायदा हो सकता था. समाजवादी पार्टी ने पहले से ही अपने घोषणापत्र में इस मुद्दे पर ठोस और व्यावहारिक समाधान पेश किया है. पार्टी ने वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आती है तो आवारा सांडों के हमले में मारे गए लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा देगी.
आवारा पशुओं को लेकर एसपी-कांग्रेस ने किए वादे
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने चुनावी अभियान में "बाबा, बैल और बुलडोजर" सरकार को उखाड़ फेंकने की अपील करते हुए इस मुद्दे को उठाया है. कांग्रेस पार्टी ने छत्तीसगढ़ मॉडल अपनाकर इस समस्या के समाधान का वादा किया है. पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में आवारा पशुओं या अन्य जानवरों द्वारा क्षतिग्रस्त हुई कृषि भूमि को 3,000 रुपये प्रति एकड़ के मुआवजे का वादा किया है. साथ ही, पशुपालन को प्रोत्साहित करने और इस खतरे से निपटने के लिए किसानों से 2 रुपये प्रति किलो गाय का गोबर खरीदने की पेशकश की है.
चुनाव परिणामों पर आवारा पशुओं का असर
उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं का खेतों में घुसना और फसलों को निशाना बनाना आम बात है. बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त क्षेत्र के किसानों का कहना है कि 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद समस्या और बढ़ गई है. योगी सरकार की गौ-संरक्षण नीतियों की वजह से स्थानीय पशु बाजारों का पतन हुआ. मवेशियों के परिवहन पर प्रतिबंध लगा और अवैध बूचड़खाने बंद हो गए.
योगी सरकार से पहले आवारा पशुओं से फसलों को नुकसान नहीं होता था, क्योंकि पशु वध पर प्रतिबंध कागजों तक ही सीमित था. सांड और दूध न देने वाली गायों को किसानों ने खुला छोड़ दिया है. समय के साथ आवारा पशुओं की संख्या बढ़ती गई. इसका राजनीतिक परिणाम पश्चिमी 'भैंस' बेल्ट की तुलना में पूर्वी 'गाय' बेल्ट में अधिक देखने को मिल सकता है.
जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश में चुनाव पूर्व की ओर बढ़ते जा रहे हैं, बीजेपी के लिए आवारा मवेशी एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है. पश्चिम यूपी मुख्य रूप से 'भैंस' बेल्ट है. इन इलाकों में पहले ही चुनाव हो चुके हैं. पश्चिमी यूपी की तुलना में पूर्वी यूपी में गोवंश की आबादी अधिक है.
योगी सरकार का समाधान
आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए योगी सरकार गौशालाओं के निर्माण में मदद करती है. यह समाधान किसानों की तकलीफ दूर करने के लिहाज से अपर्याप्त साबित हुआ. किसानों की शिकायत है कि अगर वे अपने पशुओं को गौशाला ले जाते हैं, तो उसके प्रबंधक सीधे 2,000 रुपये की मांग करते हैं. गोशालाएं पशुओं को ठीक से चारा नहीं देने के लिए भी बदनाम हैं. किसान बताते हैं कि एक पशु के लिए 30 रुपये प्रति दिन का प्रावधान चारे की जरूरत भी को पूरी नहीं कर सकता है. सबसे बड़ी समस्या है कि गौशाला किसी भी स्थिति में सांडों की देखभाल नहीं कर सकते.
बजट पर बोझ बढ़ेगा
जब 2017 में बूचड़खानों पर प्रतिबंध के बाद हजारों मवेशियों को सड़कों पर खुला छोड़ा जाने लगा तब राज्य सरकार ने कई कदम उठाए. सरकार ने पशु संरक्षण केंद्रों के साथ-साथ गौशालाओं का निर्माण करवाया
आवारा पशुओं के रख-रखाव के लिए वर्ष 2018-19 में सहायता अनुदान के तौर पर 17.52 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया. 2019-20 में आवारा पशुओं के रख-रखाव पर 203.11 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई, जबकि बजट में केवल 72 करोड़ रुपये का प्रावधान था. अगले साल बजट को बढ़ाकर 200 करोड़ रुपये कर दिया गया. 2019-20 में गौ रक्षा केंद्रों के निर्माण पर लगभग 136 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान था, जिसे 2020-21 में बढ़ाकर 147.60 करोड़ रुपये कर दिया गया. हालांकि, 115 करोड़ रुपये ही खर्च हुआ था. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, राज्य सरकार ने पिछले तीन वर्षों में आवारा पशुओं की समस्या से उबरने के लिए लगभग 355 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
हालांकि, पशु-आश्रयों में प्रति मवेशी उचित रखरखाव पर अनुमानतः करीब 200 रुपये प्रति दिन खर्च होता है. इस हिसाब से राज्य सरकार को प्रदेश के करीब 12 लाख पशुओं के रखरखाव के लिए अपने सालाना बजट में कुल 8,760 करोड़ रुपये का प्रावधान करना होगा.
पशुओं का व्यापार हुआ चौपट
पिछले पांच सालों में यूपी में आवारा पशुओं की समस्या बढ़ी है. 23 मई, 2017 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (पशुधन बाजारों का विनियमन) के लिए नियम बनाए. इस बीच, यूपी सरकार ने यूपी गोहत्या रोकथाम अधिनियम, 1955 (UP Prevention of Cow Slaughter Act, 1955) को सख्ती से लागू कर दिया. इन दो नियमों के कारण राज्यभर में सभी बूचड़खानों को बंद कर दिया गया. इसका असर मवेशियों के व्यापार पर भी हुआ. इस नतीजा यह हुआ कि पशुपालकों ने अपने पशुओं को खुला छोड़ दिया. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई.
किसानों को नहीं मिलता मुआवजा
भारत में मवेशियों को आमतौर पर तब तक 'उत्पादक' माना जाता है जब तक वे दूध देते हैं. दुधारू पशुओं के मामले में उम्र सीमा 3-10 साल के बीच है, लेकिन उनकी औसत आयु करीब 15-18 होती है. ज्यादातर मवेशी व्यापारी मुस्लिम या दलित समुदाय से आते हैं. अक्सर बीजेपी या स्थानीय दक्षिणपंथी समूहों से जुड़े लोगों के द्वारा मवेशी व्यापारियों पर हमले होते हैं या उन्हें मार दिया जाता है. इसलिए उनमें से कइयों ने डर से मवेशियों को खरीदने-बेचने का धंधा छोड़ दिया है. जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो उसे बेच दिया जाता है. लेकिन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ऐसा करना प्रतिबंधित है. सरकार ने सभी पशुधन व्यापार बंद कर दिए हैं, मालिकों को अपने अनुत्पादक जानवरों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है. आवारा पशुओं की वजह से सड़क दुर्घटनाएं होती हैं. खेतों में लहलहाती फसलों की तबाही होती है. इन सभी समस्याओं के बावजूद, आवारा पशुओं से हुए नुकसान की न तो भरपाई की जाती और न ही पीएम फसल बीमा योजना के तहत कोई मुआवजा मिलता है.
देश में आवारा पशुओं की संख्या
2019 में हुई 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 1,184,494 आवारा जानवर हैं. 2012 की 19वीं पशुधन गणना के अनुसार यह संख्या 1,009,436 थी. इस प्रकार राज्य में आवारा पशुओं की संख्या में वृद्धि हुई है. लेकिन देश में आवारा पशुओं की संख्या 52.87 लाख से घटकर 50.21 लाख हो गई है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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