सम्पादकीय

भ्रष्टाचार की इमारतें

Subhi
29 Aug 2022 5:01 AM GMT
भ्रष्टाचार की इमारतें
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यह सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का ही नतीजा कहा जाएगा कि नोएडा के सैक्टर 92 में एक दशक से भी ज्यादा समय से खड़ी दो बहुमंजिला अवैध इमारतों को रविवार को आखिरकार ढहा दिया गया।

Written by जनसत्ता; यह सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का ही नतीजा कहा जाएगा कि नोएडा के सैक्टर 92 में एक दशक से भी ज्यादा समय से खड़ी दो बहुमंजिला अवैध इमारतों को रविवार को आखिरकार ढहा दिया गया। दोनों इमारतें सुपरटेक बिल्डर की परियोजना का हिस्सा थीं। इनके निर्माण में नियम-कानूनों की जिस तरह से धज्जियां उड़ती रहीं, वह हमारी सरकारों और शहरी विकास के निकायों यानी प्राधिकरणों की भ्रष्ट संस्कृति को उजागर करने के लिए काफी है।

सर्वोच्च अदालत ने पिछले साल 31 अगस्त को एक आदेश जारी कर इन इमारतों को तीन महीने के भीतर गिराने का आदेश दिया था। लेकिन नोएडा प्राधिकरण को इस काम में भी एक साल लग गया! खैर, भले इस काम में देरी हुई और इस परिसर के निवासियों को सुपरटेक के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, पर इसका नतीजा न केवल सुखद रहा, बल्कि कड़ा संदेश देने वाला भी रहा। सर्वोच्च अदालत की यह कठोर कार्रवाई उन सभी भवन निर्माताओं के लिए सबक है जो पैसे के बल पर कानून के शासन को चुनौती देते रहे हैं। इन अवैध इमारतों को गिरवा कर सुप्रीम कोर्ट ने बता दिया है कि कानून से ऊपर कोई भी नहीं है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट सक्रियता नहीं दिखाते तो सुपरटेक का शायद कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी अवैध रूप से बनी इन इमारतों को गिराने का आदेश दिया था। लेकिन तब सुपरटेक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसे उम्मीद रही होगी कि पैसे और रसूख के बल पर यहां कुछ राहत मिल जाएगी। अगर ये इमारतें नियमों का पालन करते हुए बनाई गर्इं होतीं तो लोग अदालत जाने को क्यों मजबूर होते? न ही सुपरटेक कंपनी हारती! यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि अगर प्राधिकरण के अधिकारी मेहरबान हो जाएं तो किस तरह से बिल्डर नियम-कानून को ताक पर रखते हुए भ्रष्टाचार की इमारतें खड़ी करते चले जाते हैं।

वैसे यह सुपरटेक का अकेला मामला नहीं है, ऐसे न जाने कितने ही मामले होंगे। हर शहर में विकास प्राधिकरण होते हैं जिनका काम ही शहरी नियोजन और भवन निर्माण संबंधी कामकाज देखना होता है। पर शायद ही कोई ऐसा शहर हो जो अवैध निर्माण के रोग से ग्रस्त न हो। मगर ऐसी कार्रवाई हर जगह इसलिए नहीं हो पाती कि कोई आवाज नहीं उठाता और अवैध निर्माण पर नजर रखना और उसे न होने देना जिनकी जिम्मेदारी होती है, वे खुद ही इसमें लिप्त रहते हैं। सुपरटेक परिसर के निवासी अदालत गए और लंबी लड़ाई लड़ी, इसलिए यह मामला तार्किक परिणति तक पहुंच पाया।

सुपरटेक के दोनों अवैध निर्माण तो ढहा दिए गए, पर अब सवाल यह है कि प्राधिकरण के जिन अधिकारियों की वजह से भवन निर्माण कंपनियां फलती-फूलती रहीं और अवैध निर्माण होते रहे, उनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर सरकार कहां तक पहुंची? सर्वोच्च अदालत ने प्राधिकरण के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश दिए थे जिनकी वजह से यह गोरखधंधा चलता रहा।

हालांकि सरकार ने मामले की जांच के लिए विशेष जांच टीम बनाने की औपचारिकता पूरी कर दी थी, लेकिन अब तक किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई ऐसी कार्रवाई होती नहीं दिखी जो मिसाल कायम करती। जबकि इस मामले में आरोपी चौबीस अधिकारियों में से उन्नीस सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार का अब तक जो शिथिल रवैया देखने को मिलता रहा है, उससे तो लगता नहीं कि किसी को सजा मिल भी पाएगी। हालांकि अगर सरकारें ठान लें तो भ्रष्टाचार की इमारतों को ढहाना असंभव नहीं!


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