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- पुनर्वास का ढांचा...
विकास के पांव जहां तक चिन्हित होते हैं, वहां सियासी और सामाजिक संतुलन की अति आवश्यकता है। नेरचौक-मनाली फोरलेन की बिसात पर खड़े आंदोलन ने अब पठानकोट-मंडी फोरलेन की राह पकड़ी है, तो आंदोलनरत जनता के सवालों से रू-ब-रू तलखियों का समाधान चाहिए। आरंभिक विकास की महबूबा की तरह गांव, देहात और शहर के लिए यह इश्क की तरह था, लेकिन अब बड़े दायरे में जब मंजिलें मीलों माप रही हैं, तो सामाजिक योगदान के इम्तिहान में तख्तियां बदल रही हैं। ऐसे में विकास की बड़ी परिकल्पना को या तो रद्द कर दिया जाए या वन संरक्षण अधिनियम के कुछ ताले टूटने चाहिएं। खास तौर पर ऊना, बिलासपुर, सिरमौर, कांगड़ा, हमीरपुर, चंबा, मंडी जैसे जिलों के कम ऊंचाई के वन क्षेत्रों से विकास के सार्वजनिक समाधान आवश्यक हो जाते हैं। विकास कोई ऐसी अवधारणा नहीं कि आंखों पर पट्टी बांध कर पूरा कर लिया जाए या सामाजिक आवरण से दूरी बना कर इसे मुकम्मल किया जा सकता है।
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