सम्पादकीय

बजट सत्र की आबोहवा

Rani Sahu
2 March 2022 6:55 PM GMT
बजट सत्र की आबोहवा
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आंकड़ों में न तो खिज़ाब धार्मिक होता है और न ही हिज़ाब

आंकड़ों में न तो खिज़ाब धार्मिक होता है और न ही हिज़ाब। इसलिए आंकड़ों की प्रस्तुति में खिज़ाब असर रखता है, जबकि वास्तविकता हिज़ाब पहनकर छुपाई जाती है। कुछ इसी तरह के हिसाब-किताब में उलझा हिमाचल का बजट सत्र ऐसे मुहाने पर टिका है, जहां विपक्ष न तो राज्यपाल के अभिभाषण के अर्थ को पचा पा रहा है और न ही मुख्यमंत्री के जवाब में राहत महसूस कर रहा है। बेशक सरकार की जवाबदेही में अपनी भूमिका तराशते विपक्ष के लिए यह सिर धड़ की बाजी भी हो सकती है कि अपने हर बहिर्गमन को निर्दोष साबित करे, लेकिन सत्र के दौरान लोकतंत्र को कहां खोजें। क्या सदन के भीतर कहने को कुछ नहीं बचा है या बाहर का मजमा ज्यादा सुड़ौल हो रहा है। जो भी हो हिमाचल में विपक्ष ने कम से कम सरकार की नेकनीयत को खारिज करने के कई साक्ष्य पकड़ लिए हैं और पहली बार अर्थव्यवस्था, कानून-व्यवस्था तथा सुशासन को लेकर बहस के कई बिंदु उभर रहे हैं।

विपक्ष सरकार की नीतियों का कटु आलोचक हो सकता है, लेकिन यहां चुनाव के हाथी ढूंढे जा रहे हैं। हम सरकार की बेचारगी का आलम कर्मचारी मसलों में देख सकते हैं, क्योंकि एक नई पार्टी या लघु पार्टियों का मोर्चा बना कर डा. राजन सुशांत इसी इंतजार में हैं कि कर्मचारी आक्रोश उन्हें कबूल करके राजनीतिक हथियार बन जाए। कांग्रेस पहले ही राजस्थान फार्मूले पर मरहम बांट कर कर्मचारियों को सहला रही है, लेकिन विपक्ष के पास फिलहाल कोई ऐसा आर्थिक मंत्र नहीं है जिसके उच्चारण से बेरोजगारी दूर हो जाएगी या राज्य आत्मनिर्भरता से आगे बढ़ पाएगा। बहरहाल विपक्ष के पास दो मुद्दों की अहमियत, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़े सवाल पैदा कर रही है और इसलिए माफिया को लेकर माहौल गर्म है। कुछ समय पूर्व नकली शराब के असली धंधे ने जिस तरह सात लोगों को लील दिया या उसके बाद अवैध बारूद फैक्टरी ने ग्यारह मजदूरों की जान ले ली, उसके लिए व्यवस्था में सुराख ढूंढ कर विपक्ष अपनी आवाज ऊंची करने में सक्षम है। आगामी बजट की रूपरेखा में जयराम सरकार सस्नेह ऐसी प्रस्तुति देने में मशगूल है, जो आगामी चुनाव की बिसात पर हर मोहरे को चित कर सकेगा, लेकिन विपक्ष की तैयारी में राज्य की अर्थव्यवस्था की नब्ज रहेगी।
बतौर वित्तमंत्री जयराम ठाकुर को राज्य का हिसाब-किताब देखना है, तो मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें केवल सियासी तौर पर अद्भुत सुर्खियां लिखनी हैं। हर वर्ग और हर क्षेत्र को मालामाल करने के लिए भले ही खजाना अनुमति न दे, मगर सत्ता का एहसास हमेशा दयावान होता है। यही अच्छी राजनीति की निशानी है कि बजट के माध्यम से भाजपा सरकार खुश करे, लेकिन अच्छे दिनों की निगरानी में विपक्ष को राज्य के मुंशी या अर्थशास्त्री के रूप में निगरानी करनी है। प्रदेश पर बढ़ता कर्ज और राजकोषीय घाटे का हिसाब चिंता का विषय हो सकता है। साथ ही बेरोजगारी का आलम तथा सरकारी कर्मचारी की अपेक्षाओं के मद्देनजर राज्य की खुशहाली के सूचक देखने होंगे। विकास के दस्तूर में संसाधनों के आबंटन का क्षेत्रवाद, अवश्य ही विपक्ष के सूखे टापू से नजर आएगा, तो नीति-नियमों का कालापानी भी स्पष्ट होगा। विपक्ष के लिए सरल आलोचना भी कारगर होगी, लेकिन जनता के सामने सरकार का पक्ष कितनी मेहनत कर रहा है, यह अंतिम बजट की कारिगिरी में देखा जाएगा। बजट सत्र की आबोहवा में विपक्ष की गरमाहट का अंदाजा कोई भी लगा सकता है, लेकिन असली सौहार्द तो जयराम सरकार के बजट से ही टपकेगा। देखें इस बार किस पैबंद में लिपट कर बजट अपने निहायत खूबसूरत पन्नों का उल्लेख करता है।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

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