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- बजट सत्र की आबोहवा

आंकड़ों में न तो खिज़ाब धार्मिक होता है और न ही हिज़ाब। इसलिए आंकड़ों की प्रस्तुति में खिज़ाब असर रखता है, जबकि वास्तविकता हिज़ाब पहनकर छुपाई जाती है। कुछ इसी तरह के हिसाब-किताब में उलझा हिमाचल का बजट सत्र ऐसे मुहाने पर टिका है, जहां विपक्ष न तो राज्यपाल के अभिभाषण के अर्थ को पचा पा रहा है और न ही मुख्यमंत्री के जवाब में राहत महसूस कर रहा है। बेशक सरकार की जवाबदेही में अपनी भूमिका तराशते विपक्ष के लिए यह सिर धड़ की बाजी भी हो सकती है कि अपने हर बहिर्गमन को निर्दोष साबित करे, लेकिन सत्र के दौरान लोकतंत्र को कहां खोजें। क्या सदन के भीतर कहने को कुछ नहीं बचा है या बाहर का मजमा ज्यादा सुड़ौल हो रहा है। जो भी हो हिमाचल में विपक्ष ने कम से कम सरकार की नेकनीयत को खारिज करने के कई साक्ष्य पकड़ लिए हैं और पहली बार अर्थव्यवस्था, कानून-व्यवस्था तथा सुशासन को लेकर बहस के कई बिंदु उभर रहे हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल
