- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा...
x
सबसे बड़ी चुनौती राजकोषीय नीति तैयार करने की थी
यह बजट सात दशकों की सबसे धीमी आर्थिक वृद्धि की पृष्ठभूमि में पेश हुआ है। ऐसे में उम्मीदों के केंद्र में यही था कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बजट में क्या होगा? कैसे यह मौजूदा संकट को अवसर में बदलता है, ताकि तेज वृद्धि की बुनियाद रखी जा सके। वर्ष 2020 में संकट गहराने के साथ ही राजकोषीय नीति बदलाव के दौर से गुजरती रही। साल भर प्राथमिकताओं में परिवर्तन होता रहा। बजट सत्र की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही कहा था कि 'इस बजट को गत वर्ष पेश किए गए कई मिनी बजट (प्रोत्साहन पैकेज) की निरंतरता के अगले पड़ाव के रूप में ही देखा जाना चाहिए।' इस दलील के हिसाब से देखें तो अब सुधार की प्रक्रिया में अधिक खर्च के साथ मांग को सहारा देना होगा।
सबसे बड़ी चुनौती राजकोषीय नीति तैयार करने की थी
इस बजट को बनाने की राह में सबसे बड़ी चुनौती ऐसी राजकोषीय नीति तैयार करने की थी, जो अर्थव्यवस्था की मौजूदा जरूरत और मध्यम अवधि में सुदृढ़ीकरण के बीच संतुलन साधने का काम करे। यही कारण है कि राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन यानी एफआरबीएम एक्ट को कुछ समय के लिए किनारे करके खर्च बढ़ाया गया है और उसके बाद भी सामान्य स्थिति के लिए जल्दबाजी नहीं दिखाई गई है। तमाम विश्लेषकों में यही आमसहमति थी और आर्थिक सर्वे में इसकी पुरजोर हिमायत भी की गई कि निकट भविष्य में आर्थिक वृद्धि को सहारा देने के लिए राजकोषीय नीति को केंद्रीय भूमिका में रहना होगा। बजट ने यही किया भी है।
राजकोषीय घाटे के लिए जीडीपी का 6.8 प्रतिशत लक्ष्य रखा गया
आगामी वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे के लिए जीडीपी का 6.8 प्रतिशत लक्ष्य रखा गया है। इसके बाद भी उसमें बहुत तेजी से सुधार का खाका नहीं खींचा गया है। घाटे के वर्ष 2025-26 तक ही धीरे-धीरे 4.5 प्रतिशत तक आने का अनुमान लगाया गया है। इसका अर्थ है कि राजकोषीय नीति केवल इसी वर्ष नहीं, बल्कि आने वाले कुछ समय में भी आर्थिक वृद्धि को सहारा देती रहेगी। वास्तव में बजट बहुत वास्तविक आधार पर तैयार किया गया है। इसमें वित्त वर्ष 2022 के लिए 14.4 प्रतिशत की अनुमानित (नॉमिनल) वृद्धि की बात है, जो वास्तविक आधार पर 10 से 11 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि संभव बना सकती है।
ग्रामीण विकास के लिए आवंटन में 35 फीसद की कटौती
मानसून हमेशा से अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम भरा पहलू रहा है। विशेषकर बीते दो दशकों के इस रुझान को देखते हुए कि इस दौरान एक बार ही मानसून लगातार दो वर्षों तक सामान्य रहा। पिछले दो वर्षों से मानसून सामान्य रहा है, ऐसे में इस साल उसके गच्चा देने की स्थिति में जीडीपी की वृद्धि पर कुछ असर पड़ सकता है। जीडीपी से इतर यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि कृषि से जुड़ी 40 प्रतिशत से अधिक आबादी मानसून पर बहुत निर्भर है। बजट में ग्रामीण विकास के लिए आवंटन में 35 प्रतिशत की कटौती भी उचित ही है, क्योंकि चालू वित्त वर्ष में ग्रामीण क्षेत्र में अप्रत्याशित और असाधारण रूप से खर्च किया गया और चूंकि अब हालात सामान्य हो रहे हैं तो उसमें कटौती गलत नहीं।
बजट में पूंजीगत व्यय के लिए 34 फीसद की बढ़ोतरी
वित्त वर्ष 2021-22 में आर्थिक वृद्धि दो किस्तों में दिखाई पड़ेगी। पहली छमाही में कमजोर बेस इफेक्ट का असर दिखेगा। दूसरी छमाही और दमदार होगी, जिसे व्यापक स्तर पर होने वाले टीकाकरण और हर्ड इम्युनिटी से सहारा मिलेगा। इससे उन सेवाओं की स्थिति में सुधार होगा, जो मानवीय संपर्क को लेकर डर के कारण प्रभावित हुईं। इस साल स्वास्थ्य और रक्षा क्षेत्र को व्यय में वरीयता मिलने का अनुमान था और बजट में उनके लिए पर्याप्त आवंटन हुआ भी। इसके अतिरिक्त मध्यम अवधि में वृद्धि को सहारा देने के लिए निवेश चक्र में सुधार की खातिर भी बजट बहुत महत्वपूर्ण था। वित्त वर्ष 2020 में निवेश-जीडीपी अनुपात 29.8 प्रतिशत रह गया था, जो वित्त वर्ष 2012 में 34.3 प्रतिशत के स्तर पर था। वित्त वर्ष 2021 में इसके 27.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। निवेश के मोर्चे पर निजी क्षेत्र के सुस्त योगदान को देखते हुए उसमें तेजी लाने का दारोमदार सरकार पर ही था। ऐसे में सरकार ने पिछले बजट अनुमान के उलट इस बजट में पूंजीगत व्यय के लिए 34 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी की है। इसमें भी बुनियादी ढांचे पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है।
वृद्धि के लक्ष्य को हासिल करने में राज्यों की जिम्मेदारी
हालांकि वृद्धि के लक्ष्य को हासिल करने में राज्यों की जिम्मेदारी भी उतनी ही अहम है, क्योंकि केंद्र के कुल 58 प्रतिशत और समग्र पूंजीगत व्यय की 63 प्रतिशत राशि उन्हें ही खर्च करनी है। उन्हें भी अपनी राजकोषीय नीति में ऐसा ही लचीलापन दिखाना होगा। इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता कि पूंजीगत व्यय न केवल निजी निवेश को प्रोत्साहित करता है, बल्कि राजस्व व्यय की तुलना में उसके गुणात्मक प्रभाव भी कहीं अधिक होते हैं। इसकी सफलता के लिए सरकार को संस्थागत क्षमताओं को भी बढ़ाना होगा। इस रणनीति के साथ ही विनिर्माण क्षेत्र के लिए बनी योजना भी वृद्धि को बड़ा सहारा देगी। मित्र स्कीम भी ध्यान आकर्षित करती है। इसमें कपड़ा क्षेत्र के लिए विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा विकसित किया जाएगा। इसमें तीन वर्षों के दौरान सात टेक्सटाइल पार्क बनाए जाएंगे। हालांकि भारत को विनिर्माण के लिए और अधिक निवेश अनुकूल परिवेश तैयार करने की दिशा में अभी काफी कुछ करना होगा। इससे देश को उस अंतरराष्ट्रीय निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी, जो अब नए ठिकानों की तलाश में है।
बजट में सरकारी बैंकों को 20,000 करोड़ की नई पूंजी दी गई
आर्थिक वृद्धि को निरंतरता प्रदान करने के मकसद से बजट में सरकारी बैंकों को 20,000 करोड़ की नई पूंजी दी गई है। वहीं नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन के माध्यम से बुनियादी ढांचे के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने की जुगत भी की गई है। प्रस्तावित डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन के गठन से इसे सहायता मिलेगी। बुनियादी ढांचे के लिए ऐसी कोई संस्था आवश्यक है, जो लंबी अवधि के लिए पूंजी उपलब्ध करा सके। नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड की स्थापना इसी उद्देश्य से की गई थी, पर वह अपेक्षित रूप से सफल नहीं रहा।
भारत ने आर्थिक मोर्चे पर अनुमान से कहीं तेज वापसी की
इसमें संदेह नहीं कि भारत ने आर्थिक मोर्चे पर अनुमान से कहीं तेज वापसी की है। हमने कोविड-19 चक्र को भी सफलतापूर्वक मोड़ दिया है। इससे अगले वर्ष दहाई अंकों और उसके बाद तेज आर्थिक वृद्धि वाले दौर की वापसी संभव लगती है। कुल मिलाकर करों का बोझ डाले बिना बजट ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने और भविष्य में वृद्धि की बुनियाद रखने में अपनी भूमिका निभा दी है। इसकी सफलता इसमें निहित होगी कि उसके प्रस्तावों को किस प्रकार मूर्त रूप दिया जाता है?
Next Story