सम्पादकीय

बजट और सरोकार

Subhi
15 Feb 2021 3:11 AM GMT
बजट और सरोकार
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उनका यह भरोसा कि इस बजट में सुधारों के लिए जिस तरह के ठोस कदम उठाए गए हैं,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | उनका यह भरोसा कि इस बजट में सुधारों के लिए जिस तरह के ठोस कदम उठाए गए हैं, उनसे आने वाले दिनों में निश्चित रूप से हालात सुधरेंगे, उम्मीदें बंधाता है। प्रस्तावित बजट का प्रमुख लक्ष्य ढांचागत सुधारों और पूंजी निर्माण के साथ देश को आत्मनिर्भर के रास्ते पर ले जाना भी है। जाहिर है, बजट में ऐसे उपायों पर जोर ज्यादा है जो दूरगामी और स्थायी परिणाम देने वाले हों। इस बार बजट बहुत ही अभूतपूर्व परिस्थियों में तैयार हुआ है।

कोरोना महामारी के संकट में पिछले दस महीनों में देश की अर्थव्यवस्था को जो भारी नुकसान हुआ है, वह किसी से छिपा नहीं है। सरकार भी अर्थशास्त्रियों की इस राय से असहमत नहीं है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटने में अभी लंबा वक्त लगेगा, जो तीन-चार साल तक का हो सकता है। हालांकि कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो हालात अब धीरे-धीरे पटरी पर आते दिख रहे हैं। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सुधार और राजस्व संग्रह में बढ़ोतरी से इसका संकेत भी मिलता है। लेकिन फिर भी सरकार के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं।
बजट पर संसद के दोनों सदनों में बहस का पहला चरण पूरा हो चुका है। बजट को लेकर विपक्ष की भी अपनी चिंताएं हैं। प्रस्तावित बजट को अमीरों का बजट बताया जा रहा है। ऐसे में जनता के मन में भी बजट को लेकर सवाल तो पैदा होंगे ही। बजट जैसे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और जनसरोकार वाले मुद्दे पर जब तक उचित और तार्किक रूप से खुल कर चर्चा नहीं होती है, तब तक उसमें ठोस संशोधनों का रास्ता भी नहीं निकलता है।
बजट का सरोकार संपूर्ण देश से है, इसलिए इस पर जितनी अच्छी और सार्थक चर्चा होगी, उतना ही इसे बेहतर रूप दिया जा सकेगा। हालांकि सरकारें दावा तो करती हैं कि वे बजट में बेहद गरीब से लेकर अमीरों तक का समान रूप से खयाल रख कर चलती हैं, और ऐसा करना जिम्मेदार व लोककल्याणकारी सरकारों का दायित्व भी बनता है।
लेकिन विपक्ष के साथ अगर अर्थशास्त्री और आमजन भी सवाल उठाने लगें तो सरकार के लिएऐ ऐसी चिंताओं का समाधान भी जरूरी हो जाता है। इसलिए सरकार और विपक्ष की यह जिम्मेदारी बनती है कि बजट के मुद्दे को दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर देखें और आम जनता के हितों को सर्वोपरि रखते हुए आगे बढ़ा जाए।
कोरोना संकट काल की मार सबसे ज्यादा गरीब और मध्यवर्ग पर पड़ी है। करोड़ों लोगों के सामने आज भी रोजीरोटी का संकट बना हुआ है। छोटे और मझौले उद्योग संकट से उबर नहीं पाए हैं। यही क्षेत्र है जो उत्पादन और रोजगार में बड़ी भूमिका निभाता है। इसलिए गरीब, मध्यवर्ग और छोटे उद्योगों को बजट से ज्यादा उम्मीदें थीं। हालांकि सरकार ने उद्योगों को राहत देने के लिए समय-समय पर पैकेज भी दिए, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं दिखने से निराशा पैदा होना स्वाभाविक है।
इसलिए यह सवाल उठ रहे हैं कि प्रस्तावित बजट में ऐसे कौनसे उपाय हैं जिनसे आम आदमी के तात्कालिक संकट दूर किए जा सकें। अगर हम दूरगामी परिणामों के इंतजार में बैठे रहे तो गरीब और मध्यवर्ग संकट के और गहरे दलदल में चला जाएगा। ऐसे में बजट में बड़े और टिकाऊ लक्ष्यों के साथ तात्कालिक समस्याओं पर भी सरकार और विपक्ष मिल कर चर्चा करें और उचित रास्ते निकालें तो बड़े खतरों को टाला जा सकता है।


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