सम्पादकीय

Budget 2022: क्या यूपी के किसानों के लिए गेमचेंजर साबित होगी गंगा कॉरिडोर में ऑर्गेनिक खेती

Rani Sahu
1 Feb 2022 1:59 PM GMT
Budget 2022: क्या यूपी के किसानों के लिए गेमचेंजर साबित होगी गंगा कॉरिडोर में ऑर्गेनिक खेती
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केंद्रीय वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने अपने चौथे बजट (Budget) में किसानों के लिए कई बड़े ऐलान किए हैं

संयम श्रीवास्तव

केंद्रीय वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने अपने चौथे बजट (Budget) में किसानों के लिए कई बड़े ऐलान किए हैं. कहा जा रहा है कि केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर एक साल तक चले आंदोलन की वजह से किसानों की नाराजगी को दूर करने का प्रयास बजट में किया गया है. बजट में अगले वित्त वर्ष में किसानों के खाते में 2.37 लाख करोड़ रुपए डीबीटी के माध्यम से देने की बात की गई है. पर गंगा (Ganga) किनारों के 5 किलोमीटर एरिया में ऑर्गेनिक खेती का गलियारा बनाने की बात करके यूपी की करीब 150 सीटों पर माइलेज लेने की कोशिश की है. हालांकि यह योजना 2016 से राष्ट्रीय गंगा मिशन के तहत चल रही है और बहुत से किसानों को इसका लाभ भी मिला है.
अभी तक नमामि गंगे योजना के तहत जैविक खेती के लिए किसान को 36 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान मिल रहा है. इसके अलावा पहले जैविक खेती करने वाले किसानों को पंजीकरण कराने के लिए 20 हजार रुपये शुल्क देना होता था लेकिन अब शासन ने यह शुल्क भी खत्म कर दिया है. तीन वर्ष तक जैविक खेती करने वाले किसानों का कृषि विभाग से निशुल्क पंजीकरण कर रहा है. जाहिर है कि जब केंद्र सरकार इसमें इंट्रेस्ट ले रही है तो मार्केटिंग, डीबीटी, एमएसपी, आसान कर्ज, सब्सिडी आदि की व्यवस्था और बढ़ सकती है.
1760 हेक्टेयर में होने वाली जैविक खेती का रकबा दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है
दैनिक जागरण में पिछले साल एक छपी खबर बताती है कि उन्नाव जिले के 64 गांवों में जैविक खेती ने कैसे किसानों और गांवों की तस्वीर बदल दी है. यहां करीब 1760 हेक्टेयर में होने वाली जैविक खेती का रकबा दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है. जैविक खाद और बीजों से खेत में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ रही है. 20 साल पहले जिले में खेतों का जीवांश कार्बन 1.3 फीसद था तो जो सन 2017 में 0.2 फीसद रह गया.इसे 0.8 फीसद के स्तर तक ले जाने का लक्ष्य है. जमीन ऊसर हो रही थी जिससे किसानों के लिए खेती मुश्किल होती जा रही थी. गोबर, गुड़, बेसन और डीकंपोजर लिक्विड के उपयोग से यहां की खेती की तस्वीर बदलनी शुरू हो गई है.
खबर के अनुसार यहां खेतों में गोबर, गुड़, गोमूत्र, बेसन से बनी खाद का ही उपयोग हो रहा है. सिकंदरपुर सिरोसी, गंगाघाट, पाटन, बीघापुर, परियर, बांगरमऊ, गंजमुरादाबाद में जैविक खेती की जा रही है. इसमें सबसे अधिक 32 गांव सिकंदरपुर सिरोसी के हैं. जहां फसल की पैदावार सामान्य से अधिक हो रही है. खासकर मूंगफली, केला, काला गेहूं की फसल किसान कर रहे हैं.
गंगा के किनारे की खेती अति उपजाऊ रही है
प्रयागराज में जैविक खेती कर रहे मेड़ई कल्याणी सेवा ट्रस्ट के निदेशक राजेंद्र सिंह जी कहते हैं कि यह फैसला उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है. देश के इस हिस्से में विशेषकर गंगा के किनारे की खेती अति उपजाऊ रही है पर यहां का किसान अति गरीब रहा है. उर्वरकों वाली खेती बहुत खर्चीली रही है और छोटी जोत के किसान के पास इतने संसाधन नहीं थे. जोत घटती गई और गंगा किनारे का किसान दिन प्रति दिन गरीब होता गया. राजेंद्र सिंह कहते हैं कि जिस तरह काले गेहूं और जैविक खाद्यों की डिमांड बढ़ रही है अगर सरकार की सहायता मिल गई तो गरीब किसानों की जिंदगी में बहार आ जाएगी.
उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के कानपुर पहुंचने तक नदी के प्राकृतिक प्रवाह का 90 फीसदी हिस्सा निकल जाता है. गंगा का ज्यादातर प्रवाह प्रमुख रूप से जल विद्युत प्रोडक्शन और सिंचाई के लिए मोड़ दिया जाता है. अगर गंगा बेसिन में ऑर्गेनिक खेती के गलियारे बनेंगे तो गंगा में सफाई फिर से बहाल हो पाएगी. इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च द्वारा जारी किए गए रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुस्तान हर साल लगभग 35 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट उत्पन्न करता है. नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, यह कचरा कृषि में उपयोग के लिए हरित उर्वरक पैदा करने के अलावा प्रति वर्ष 18 हजार मेगावाट से अधिक बिजली उत्पन्न कर सकता है.
भारत में 2005 में जैविक कृषि नीति की शुरुआत हुई हालांकि देश में फसल बोने का इलाका केवल 2 प्रतिशत यानी 194 करोड़ हेक्टेयर और जैविक खेती के तहत 27.8 लाख हेक्टेयर है. भले ही भारत में जैविक खेती के लिए जमीन कम है लेकिन जैविक किसानों की संख्या के मामले में भारत पहले स्थान पर है. मार्च 2020 तक भारत में जैविक खेती करने वाले 19 लाख से अधिक किसान थे. इसलिए भारत में फसलों को व्यवस्थित रूप से उगाने की बहुत संभावना है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ शाजनीन साइरस गजदार ने डीडब्ल्यू हिंदी को दिए अपने एक साक्षात्कार मे बताया था कि "जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, जैविक खेती मिट्टी की जैव विविधता और पानी की गुणवत्ता को बनाए रखती है. पारंपरिक कृषि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान देने वाला प्रमुख कारक है और भारत को उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों में शामिल होना चाहिए."
किसानों को मदद देना होगा
जलवायु परिवर्तन एक्सपर्ट शाजनीन साइरस गजदार एक जर्मन न्यूज वेबसाइट को दिए अपने साक्षात्कार में कहती हैं, "ऑर्गेनिक खेती के लिए जरूरी संसाधन चाहिए. फसल की बेहतर ग्रेडिंग, छंटाई, पैकेजिंग और विपणन के लिए लघु उद्योग स्थापित करने के लिए सब्सिडी की व्यवस्था होनी चाहिए. अकार्बनिक से कार्बनिक खेती के बदलाव के दौरान कम उपज और फसल के नुकसान के लिए किसानों को मुआवजा देना होगा और जैविक खाद बनाने के लिए मदद देनी होगी. किसानों को मार्केट के बारे में भी सीखना होगा. राज्य के कृषि विभागों को विक्रय केंद्रों के संग्रह और ट्रांसपोर्ट में मदद करने की जिम्मेदारी भी संभालनी होगी."
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