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चुनाव का नहीं अर्थव्यवस्था का ख्याल
भारतीय राजनीति में अक्सर यह देखा जाता है कि बजट में चुनावी राज्यों का खास ख्याल रखा जाता है और बजट भाषण में लोक-लुभावन घोषणाएं की जाती हैं। बजट में लोक-लुभावन घोषणाओं का असर भी चुनावी नतीजे पर दिखता है। इसलिए इस बार जब उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, तो लोगों को उम्मीद थी कि इस बजट में चुनावी राज्यों पर खासा जोर रह सकता है और आम आदमी को खुश करने के लिए लोक-लुभावन घोषणाएं की जा सकती हैं।
उत्तर प्रदेश के चुनाव को तो वर्ष 2024 में होने वाले आगामी लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा है, क्योंकि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। एक साल से ज्यादा समय तक दिल्ली की सीमा पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के किसान अपनी मांग को लेकर धरने पर बैठे थे, ऐसे में लोगों को उम्मीद थी कि सरकार किसानों को खुश करने के लिए भी कुछ खास घोषणाएं करेगी। हाल के महीनों में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई में काफी वृद्धि हुई। महंगाई ने आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। इसके अलावा, लोगों को यह भी उम्मीद थी कि जिन लोगों पर महामारी का सर्वाधिक बुरा असर पड़ा है, उन सबको ध्यान में रखते हुए बजट पेश किया जाएगा, ताकि लोगों को रोजगार मिल सके और उनकी आय मे बढ़ोतरी हो। साथ ही, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों को स्वास्थ्य सेवा के लिए दर-दर भटकना पड़ा। ऐसे में उम्मीद थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की बेहतरी के लिए भी इस बार के बजट में अच्छा-खासा आवंटन किया जाएगा।
लेकिन इस बजट से ऐसा लगता है कि इसमें चुनावी नतीजे की परवाह नहीं की गई है, क्योंकि महंगाई और रोजगार के संकट का मुद्दा, जो लोगों को काफी सता रहा है, उसके बारे में कोई लोक-लुभावन घोषणा नहीं दिखती है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने महामारी से बुरी तरह प्रभावित अर्थव्यवस्था की नाजुक स्थिति का ध्यान रखते हुए काफी संयम से काम लिया है और एक जवाबदेहीपूर्ण बजट पेश किया है। ऐसा स्वाभाविक भी है, क्योंकि महामारी ने सिर्फ लोगों को ही प्रभावित नहीं किया है, बल्कि उसने अर्थव्यवस्था की भी रीढ़ तोड़ दी है, जिससे धीरे-धीरे उबरने की कोशिश हो रही है। वित्तमंत्री ने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में अमृत काल के आगामी पच्चीस वर्षों का ब्लू-प्रिंट पेश किया है, जो अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा।
इस बजट में प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर खास जोर दिया गया है, जिसमें सड़क, रेलवे, हवाई अड्डे, बंदरगाह, ट्रांसपोर्ट, जलमार्ग औरलॉजिस्टिक इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल हैं। इन क्षेत्रों में सरकार खर्च बढ़ाएगी, जिससे नए रोजगार पैदा होंगे। यह अलग बात है कि वे नौकरियां कैसी होंगी और युवा उससे संतुष्ट होंगे या नहीं, यह प्रश्नचिह्न बना हुआ है। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने का वादा बरकरार रखा है, लेकिन उसे कानूनी दायरे में लाने संबंधी किसानों की मांगों के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। महंगाई, स्वास्थ्य सेवा आदि को लेकर भी कोई खास महत्वपूर्ण घोषणा इसमें नहीं है।
अमर उजाला
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