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भारत का सकल घरेलू उत्पाद पिछले साल के 197 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 232 लाख करोड़ होने की उम्मीद है
भारत का सकल घरेलू उत्पाद पिछले साल के 197 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 232 लाख करोड़ होने की उम्मीद है- यानी इसमें 35 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि। इस साल अर्थव्यवस्था की वास्तविक वृद्धि दर 9.2 फीसदी, जबकि नॉमिनल वृद्धि दर, जो वास्तविक वृद्धि दर और मुद्रास्फीति का जोड़ होती है, 17.5 फीसदी बताई जा रही है। महामारी के कारण वर्ष 2020-21 के बदतर प्रदर्शन को देखते हुए यह बहुत ही प्रशंसनीय आंकड़ा है। जबकि अगले वित्त वर्ष में वास्तविक वृद्धि दर आठ से साढ़े आठ फीसदी और नॉमिनल वृद्धि दर 12 फीसदी आंकी जा रही है।
कर संग्रह में वृद्धि इस बजट का एक उल्लेखनीय पहलू है। पिछले साल के बजट में कर संग्रह का लक्ष्य 22.17 लाख करोड़ रुपये था, जिसे संशोधित कर 25.16 लाख करोड़ किया गया-यानी तीन लाख करोड़ की वृद्धि। लेकिन कुल कर संग्रह इससे अधिक-यानी 26.13 लाख करोड़ रुपये हो सकता है। कर संग्रह के संशोधित आकलन में भी सरकार ने एक से डेढ़ लाख करोड़ की कमी दिखाई है। अगर सरकार ने सही आंकड़े रखे होते, तब शायद वह राज्यों को कुछ अधिक फंड आवंटित कर पाती या इससे करदाताओं को थोड़ी राहत दी जा जा सकती थी। मौजूदा वित्त वर्ष का विनिवेश लक्ष्य 1.75 लाख करोड़ था, जिसे संशोधित लक्ष्य में घटाकर 78,000 करोड़ रुपये किया गया। अगले वित्त वर्ष में सरकार ने विनिवेश का लक्ष्य जान-बूझकर कम यानी 65,000 करोड़ रखा है।
इस साल सार्वजनिक उपक्रमों और रिजर्व बैंक से लाभांश के मोर्चे पर 143 करोड़ की प्राप्ति की उम्मीद है। हालांकि अगले साल इसके घटकर एक लाख करोड़ रह जाने की आशा है। इस साल 32.46 लाख करोड़ के खर्च का लक्ष्य था, जिसे बाद में बढ़ाकर 34.4 लाख करोड़ किया गया। यानी 3.23 लाख करोड़ की पूरक मांग के बावजूद एक लाख करोड़ की बचत होगी। पिछले बजट में सरकार ने बाजार से उधारी का लक्ष्य 12.05 लाख करोड़ रखा था, जिसे बाद में घटाकर 10.46 लाख करोड़ कर दिया गया। हालांकि आगामी वित्त वर्ष में खर्च बढ़कर 14.95 लाख हो जाने की उम्मीद है। अगले साल का बजट दिलचस्प है, क्योंकि इसमें कर संग्रह का लक्ष्य 27.57 लाख करोड़ रुपये रखा गया है। जबकि प्रत्यक्ष कर में वृद्धि को देखते हुए कर संग्रह में एक से डेढ़ लाख करोड़ की बढ़ोतरी हो सकती है।
विनिवेश और लाभांश के मोर्चे पर भी सरकार को लक्ष्य से ज्यादा की प्राप्ति हो सकती है। अगले साल कर राजस्व में वृद्धि का आंकड़ा जान-बूझकर कम रखा गया है। बुनियादी
ढांचे, सामाजिक क्षेत्र, आवासन, पेयजल और स्वास्थ्य पर फोकस को देखते हुए 35.08 लाख करोड़ के खर्च का लक्ष्य भी कम ही लगता है। सरकार के वित्तीय आंकड़े अर्थव्यवस्था की मजबूती के बारे में बताते हैं, जिसमें कर राजस्व में वृद्धि दिखती है। बजट में पूंजीगत खर्च में 35.4 फीसदी की वृद्धि है। इस साल वित्तीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 6.9 फीसदी रखा गया है, लेकिन कर संग्रह में वृद्धि के कारण वित्तीय घाटा इससे कम ही रहेगा। जबकि अगले साल के वित्तीय घाटे का लक्ष्य और भी कम यानी 6.4 फीसदी है। दरअसल सरकार को पता है कि अगले साल कर संग्रह में वृद्धि होने वाली है।
उसने खाद्यान्न पर सब्सिडी का खर्च कम रखा है, क्योंकि मुफ्त अनाज वितरण की विशेष योजना आगामी 31 मार्च को खत्म हो जाएगी। बजट की तारीफ की जानी चाहिए, क्योंकि इसमें ढांचागत विकास और आर्थिक वृद्धि पर विशेष ध्यान है। बजट में सबसे हताश करने वाली बात यह है कि लंबे समय से जूझ रहे मध्यवर्ग को न तो कर में छूट दी गई, न ही इसका ध्यान रखा गया कि कठिन समय में उसके हाथ में ज्यादा पैसे आएं।
-साथ में एस. कृष्णन
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