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धन की बजाय तकनीक व सुधारों पर जोर
मोदी सरकार पिछले कुछ सालों से बजट बनाने और उसके प्रस्तुतिकरण के तरीके में लगातार परिवर्तन करती हुए उसे बहुत फोकस्ड बनाने की दिशा में काम करती आ रही है. दो तीन सालों से इस बात का भी प्रयास हुआ है कि मंत्रालयों/विभागों का अलग-अलग बजट ब्योरा देने के बजाय बजट को इस तरह तैयार किया जाए कि विभिन्न मंत्रालयों में आपस में भी एक तरह का तालमेल दिखे. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किया गया वर्ष 2022-23 का बजट इसी दिशा में कई कदम और आगे बढ़ा है. सरकार एक तरफ वित्तीय प्रबंधन की दिशा में नए प्रयोग कर रही है तो दूसरी तरफ एक दूसरे के कामकाज से जुड़े मंत्रालयों को एक ही छतरी के नीचे लाकर एक समन्वित बजट कार्य योजना प्रस्तुत करने का काम भी उसने किया है.
उदाहरण के लिए हम कृषि क्षेत्र को ही ले लें. खेती किसानी का मामला पिछले एक साल देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को मथता रहा है. एक लंबे किसान आंदोलन के बाद सरकार को कृषि क्षेत्र में सुधार के अपने कदम पीछे भी खींचने पड़े थे, लेकिन अगले वित्त वर्ष के बजट में सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया को दूसरी तरह से अंजाम देने की कोशिश की है. और ये सुधार एक तरफ जहां प्रक्रियागत हैं, वहीं दूसरी तरफ आधुनिक तौर तरीकों और तकनीक से जुड़े हुए हैं.
हालांकि इस बार कृषि के बजट में कोई ज्यादा बढ़ोतरी नहीं की गई है. वर्ष 2021-22 में कृषि का कुल बजट 131475.19 करोड़ था और इस बार यह कुल 132474.37 करोड़ रुपए है. यानी बढ़ोतरी सिर्फ 999.18 करोड़ रुपए की ही हुई है. हां, 2021-22 के संशोधित अनुमान के हिसाब से इसे जरूर ज्यादा कहा जा सकता है, क्योंकि पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान वाला कृषि का बजट 118257.69 करोड़ रुपए का ही रहा है. इस वर्ष के 132474.37 करोड़ रुपए के बजट में कृषि और किसान कल्याण के लिए 123960.75 करोड़ रुपए की राशि रखी गई है, जबकि कृषि अनुसंधान और शिक्षा के लिए 8513.62 करोड़ रुपए का बजट है. सरकार ने हालांकि खेती में शोध और अनुसंधान को नई दिशा देने की कोशिश जरूर की है लेकिन इसके लिए बजट में राशि उतनी ही है जितनी पिछले बजट में थी.
वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा कि रबी 2021-22 में गेहूं की खरीद और खरीफ 2021-22 में धान की अनुमानित खरीद के लिहाज से 163 लाख किसानों से 1208 लाख मीट्रिक टन गेहूं एवं धान की खरीद होगी, जिसके एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से 2.37 लाख करोड़ रुपए सीधे किसानों के खाते में जाएंगे. जबकि वर्ष 2020-21 में सरकार ने किसानों से समर्थन मूल्य पर 1268.94 लाख टन गेहूं और धान की खरीद की थी और इसके एवज में किसानों को 241016.90 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था. यानी बजट प्रावधानों के लिहाज से देखें तो कृषि क्षेत्र को बहुत ज्यादा नहीं मिला है.
ऐसा लगता है कि सरकार ने कृषि क्षेत्र में बजट की राशि बढ़ाने के बजाय वहां व्यवस्थागत सुधारों पर ज्यादा ध्यान देने का मन बनाया है. जैसे सरकार का यह ऐलान करना कि वह फसल की जानकारी लेने, खेतों के मापन और उनमें कीटनाशक आदि के छिड़काव तक के लिए ड्रोन की मदद लेगी. अभी देश के कई राज्यों में ड्रोन की मदद से जमीन का डिजिटल रिकार्ड तैयार करने का काम पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है. लेकिन नए बजट में निर्मला सीतारमण ने इसका दायरा और बढ़ाते हुए किसान ड्रोन नाम से नई सेवा किसानों को देने की बात कही है.
इसके साथ ही, सरकार ने कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और नई तकनीक को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी और निजी क्षेत्र के कृषि विश्वविद्यालयों और संस्थओं के बीच तालमेल की दिशा में भी कदम आगे बढ़ाया है. राज्य सरकारों से भी कहा गया है कि वे अपने यहां खेती से संबंधित विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य संस्थाओं में आधुनिक तकनीक और खेती के नए तौर तरीकों पर शोध और अनुसंधान को बढ़ावा दें. सूचना तकनीक का भी कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल कुछ सालों में बहुत बढ़ा है और सरकार शायद चाहती है कि किसानों को इसके जरिये इतना जाग्रत और सक्षम बना दिया जाए कि वो मौसम की मार से बचने से लेकर अपनी फसल को ठीक दामों पर बेचने तक के लिए दलालों और बिचौलियों के भरोसे न रहे.
जैविक खेती पर मोदी सरकार का जोर काफी लंबे समय से रहा है. अब इसमें भी जीरो बजट खेती को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है. ऐसा लगता है कि किसानों की आय बढ़ाने के और कोई उपाय कारगर होते न देख सरकार खेती की लागत कम करके परोक्ष रूप से किसानों की आर्थिक हालत को सुधारना चाहती है. इसीलिए मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष कदम उठाए जाने और मोटे अनाज की खपत बढ़ाने के साथ साथ उसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग करने की भी बात कही गई है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि दुनिया भर में वर्ष 2023 को मोटे अनाज वर्ष (मिलेट ईयर) के रूप में मनाया जा रहा है.
खेती किसानी की बात करने से ठीक पहले निर्मला सीतारमण ने सड़क निर्माण और रेल योजनाओं का भी जिक्र किया. दरअसल ऊपरी तौर पर खेत का सड़क और रेल पटरी से लेना देना न दिखता हो, लेकिन असलियत में ये आपस में बहुत गहरे जुड़े हैं और इनका सीधा सीधा वास्ता किसानों की उपज, उसकी बिक्री और उसकी आमदनी से है. इसी सिलसिले में एक जिला एक उत्पाद और सड़क एवं रेल मार्ग के डेडिकेटेड कॉरिडोर जैसी योजनाओं पर काम किया जा रहा है. जल्दी नष्ट हो जाने वाले कृषि उत्पादों के परिवहन के लिए विशेष ट्रेने चलाई गई हैं.
इन योजनाओं से किसानों को परोक्ष रूप से सुविधा और फायदा दोनों मिल रहा है. यदि सड़कों का और रेल सुविधाओं का खेती के लिहाज से विस्तार होता है तो यह उन किसानों को बहुत बड़ी राहत देगा, जिनकी फसलें और अन्य उत्पाद समय पर परिवहन न हो पाने के कारण पड़े पड़े ही सड़ जाते हैं. इससे एक तरफ जहां जनधन का नुकसान होता है, वहीं किसानों को निजी तौर पर भी बहुत घाटा उठाना पड़ता है. खराब हो जाने वाले उत्पाद की सही समय पर परिवहन की सुविधा और स्थितियां न मिलने के कारण किसान अपनी फसल बिचौलियों को औने पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
कृषि क्षेत्र की एक और बड़ी समस्या उत्पादों के प्रसंस्करण की है. सरकार ने इस दिशा मे ध्यान देते हुए नाबार्ड के जरिये एक ऐसा निवेश कोष बनाने की भी बात कही है जो कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप्स और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देगा. इस तरह के स्टार्टअप्स किसान उत्पादक संगठनों के साथ मिलकर काम करने के अलावा किसानों को किराए पर आवश्यक मशीनरी उपलब्ध कराने और उनकी जरूरत के हिसाब से उन्हें तकनीकी सहयोग प्रदान करने का भी काम करेंगे.
एक और मामला कृषि क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का भी है. मौसम की बेरुखी और भूजल स्तर बहुत नीचे चले जाने के कारण पानी की उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है. ऐसे में नदी जोड़ योजनाएं काम आ सकती हैं. इस लिहाज से सरकार ने सबसे पहले 44605 करोड़ रुपए लागत की केन-बेतवा परियोजना को मंजूरी दी है. इसके लिए पिछली बार 4300 करोड़ रुपए रखे गए थे और इस बार 1400 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इस परियोजना से 9.08 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने के साथ ही 62 लाख लोगों के लिए पेयजल भी मुहैया हो सकेगा. इसके अलावा 103 मेगावाट की हाइड्रो और 27 मेगावाट की सौर ऊर्जा का उत्पादन भी होगा.
वित्त मंत्री ने बताया कि सरकार ने आने वाले समय में पांच और नदी जोड़ योजनाओं का खाका अंतिम रूप से तैयार कर लिया है इनमें दमनगंगा-पिंजाल, पार-ताप्ती-नर्मदा, गोदावरी-कृष्णा, कृष्णा-पेन्नार और पेन्नार-कावेरी योजनाएं शामिल हैं. संबंधित राज्यों के साथ सहमति बन जाने के बाद इनके क्रियान्वयन का काम आगे बढ़ाया जाएगा.
दरअसल, कृषि क्षेत्र में सुधार का दायरा बहुत बड़ा है. ऐसा नहीं है कि देश के किसान समय के साथ नहीं बदले हैं, लेकिन बदलाव की यह प्रक्रिया बहुत धीमी है. इसमें शोध और अनुसंधान के साथ ही तकनीक का बहुत महत्व है. आज भी हमारे अधिकांश कृषि संस्थान परंपरागत रूप से ही कृषि की शिक्षा दे रहे हैं. निजी क्षेत्र की भागीदारी से यदि इन संस्थानों के सिलेबस में बदलाव करके उन्हें आधुनिक तकनीक और सोच से जोड़ा जाता है तो अंतत: इसका फायदा समूचे कृषि क्षेत्र को होगा. निर्मला सीतारमण का ताजा बजट इसी दिशा में कदम बढाता प्रतीत होता है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
गिरीश उपाध्याय पत्रकार, लेखक
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