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सार्वजनिक निवेश
इस साल का बजट बहुत ही चुनौतीपूर्ण परिपेक्ष्य में बनाया गया, क्योंकि कोरोना की वजह से अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। कोरोना से पहले जितना जीडीपी था, वह अब जाकर लगभग उसके बराबर पहुंचा है। यानी दो साल का समय बिना विकास के निकल गया। महामारी की मार अर्थव्यवस्था पर तो पड़ी ही, ऐसे लोगों पर भी पड़ी, जो असंगठित क्षेत्र में काम करते थे, और सेवा क्षेत्र में कार्यरत थे। इससे हमारे देश में गरीबी भी बढ़ी। तो इन सब पहलुओं को देखते हुए इस साल का बजट बनाया गया।
इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता है कि यह काफी जिम्मेदारीपूर्ण बजट है, क्योंकि लोगों को उम्मीद थी कि पांच राज्यों के चुनावी वर्ष में बजट में लोक-लुभावन घोषणाएं होंगी। लेकिन वित्तमंत्री इन सब चीजों से दूर रहीं और एक जिम्मेदाराना बजट पेश किया, जो अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा। उन्होंने विकास दर में तेजी लाने, मुद्रास्फीति और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लिए कई कदम उठाए हैं। वित्तमंत्री ने जिस मुख्य शस्त्र का इस्तेमाल किया है, वह सार्वजनिक निवेश है। साथ ही उन्होंने एक नेशनल मास्टर प्लान का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत प्रधानमंत्री गतिशक्ति योजना को काफी तवज्जो दी गई है, ताकि हमारे देश में एक विश्व स्तरीय आधारभूत ढांचा तैयार हो सके। इस तरह जिसे विकास का इंजन कहते हैं, उसमें सार्वजनिक निवेश पर जोर दिया गया है।
अगर सार्वजनिक निवेश बढ़ेगा, तो उस क्षेत्र में निजी निवेश भी बढ़ेगा और इससे रोजगार भी सृजित होंगे। इसके अलावा ऐसे कई कार्यक्रमों की घोषणा की गई, जिसके दूरगामी प्रभाव होंगे, जैसे बैंकिंग सेक्टर को पोस्ट ऑफिस से जोड़ना, कॉमर्शियल बैंकिंग, डिजिटल बैंकिंग आदि को बढ़ावा देना। महामारी में एमएसएमई सेक्टर और सर्विस सेक्टर को ज्यादा मार पड़ी थी, उसे मदद देने के लिए बैंकिंग सेक्टर के माध्यम से एक्सटेंडेड क्रेडिट गारंटी स्कीम को एक साल और बढ़ा दिया है। कल्याणकारी कार्यक्रमों के तहत हर घर में नल से जल योजना को काफी तवज्जो दी गई है।
प्रधानमंत्री आवास योजना का आवंटन बढ़ाया गया है और ग्रामीण क्षेत्र के लिए कई लाभकारी योजनाओं की घोषणा की गई है। किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए ज्यादा कुछ बजट भाषण में नहीं था, हो सकता है बजट में हो, लेकिन कहा गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के जरिये रिकॉर्ड खरीद कर लगभग ढाई लाख करोड़ रुपये किसानों के खाते में सीधे भेजे जाएंगे। इसके अलावा वर्ष 2021-22 में संशोधित वित्तीय घाटा जीडीपी का 6.9 फीसदी बताया गया है। वर्ष 2022-23 में वित्तीय घाटा जीडीपी का 6.4 फीसदी रहने का अनुमान है। यह भी एक जिम्मेदार बजट की अच्छी निशानी है। रक्षा क्षेत्र में खरीद के मामले में एक अच्छी बात यह कही गई है कि रक्षा बजट में जितने पूंजीगत खर्च का
इजाफा हो रहा है, उसमें से 68 फीसदी से ज्यादा की खरीदारी घरेलू आपूर्तिकर्ताओं से होगी। इससे मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा।
लेकिन इस बजट में कुछ चीजों की कमी खटक रही है। महामारी में जिन लोगों के रोजगार पर संकट पैदा हुआ, उनके लिए बजट भाषण में कोई विशेष जिक्र नहीं है। किसानों और कृषि संकट को लेकर भी किसी विशेष योजना का इसमें जिक्र नहीं है, जबकि किसानों में अपनी मांगों को लेकर काफी आक्रोश दिखा था। इसके अलावा रियल एस्टेट और हाउसिंग सेक्टर, जो विकास के इंजन कहे जाते हैं, जिससे कई अन्य क्षेत्र जुड़े होते हैं और काफी रोजगार पैदा होता है, उसको लेकर भी कोई विशेष योजना नहीं दिखी। हो सकता है, विस्तृत बजट दस्तावेजों में इन सबका जिक्र हो।
अमर उजाला
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