सम्पादकीय

बजट 2022-23: रोजगार संग आत्मनिर्भरता की चुनौती

Rani Sahu
31 Jan 2022 10:34 AM GMT
बजट 2022-23: रोजगार संग आत्मनिर्भरता की चुनौती
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पिछले लगभग दो वर्षों से कोविड महामारी से ग्रस्त अर्थव्यवस्था के मद्देनजर, एक ओर सरकारी खजाने से गरीब जनता के लिए राहत, तो दूसरी ओर राजस्व की कमी से जूझते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के लिए अपना चौथा वार्षिक बजट बनाना कोई आसान काम नहीं होगा

अश्विनी महाजन पिछले लगभग दो वर्षों से कोविड महामारी से ग्रस्त अर्थव्यवस्था के मद्देनजर, एक ओर सरकारी खजाने से गरीब जनता के लिए राहत, तो दूसरी ओर राजस्व की कमी से जूझते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के लिए अपना चौथा वार्षिक बजट बनाना कोई आसान काम नहीं होगा। हालांकि राहत की बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के हालिया अनुमानों के अनुसार, 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रोथ की वृद्धि दर नौ प्रतिशत रही और आगे आने वाले दो वर्षों में भी यह दर नौ प्रतिशत से कम रहने वाली नहीं हैं।

जीडीपी ग्रोथ की यह अनुकूल स्थिति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की प्राप्तियों में परिलक्षित हो रही है। कोरोना काल के दौरान आमदनी से अधिक खर्चे की कुछ भरपाई तो इन करों से हो जाएगी, लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए अभी बड़े लक्ष्यों की तरफ आगे बढ़ने की चुनौती वित्तमंत्री के सामने रहेगी। पिछले लगभग 20-22 वर्षों में विदेशों, खासतौर पर चीन पर निर्भरता के कारण देश की मैन्यूफैक्चरिंग बुरी तरह से प्रभावित हुई, जिसका प्रभाव रोजगार पर भी पड़ा। 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' योजना की घोषणा से यह आशा बंधी है कि विदेशों पर निर्भरता कम करते हुए मैन्यूफैक्चरिंग में देश आत्मनिर्भरता की तरफ आगे बढ़ेगा। वित्तमंत्री ने अपने पिछले बजट में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत आने वाले कुछ वर्षों में दो लाख करोड़ रुपये के प्रावधान की घोषणा की थी।
मैन्यूफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के हिसाब से वित्तमंत्री को बजट में बड़े आवंटन करने की जरूरत पड़ेगी। हाल ही में देश किसान आंदोलन की बड़ी त्रासदी से गुजरा है।हालांकि नए कृषि कानूनों की वापसी के बाद आंदोलन का पटाक्षेप हो गया है, पर देश में खेती-किसानी की हालत को सुधारने की आवश्यकता रेखांकित हुई है। कोरोना काल में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों की अपने गांवों में वापसी के मद्देनजर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और रोजगार सृजन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। गांवों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए वहां कृषि से संबद्ध आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के साथ कारीगरी और ग्रामोद्योगों को बढ़ावा देने की भी जरूरत महसूस की जा रही है। मुर्गीपालन, पशुपालन, डेयरी, मशरूम फार्मिंग, मछली-पालन, ग्रामोद्योग सरीखे रोजगार इसकी पूर्ति कर सकते हैं।
इन सब कार्यों को प्रोत्साहन देने के लिए भी बजट में आवश्यक व्यवस्था करनी होगी। आज देश खाद्यान्न उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर हो चुका है और दालों में भी आत्मनिर्भरता बढ़ी है। लेकिन अब भी खाद्य तेलों के लिए देश विदेशों पर निर्भर है। खाद्यान्नों का जरूरत से ज्यादा उत्पादन हो रहा है, जिसके चलते आज फसल चक्र में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। इसके लिए भी बजट में प्रावधान की जरूरत होगी। कोरोना से पूर्व आर्थिक गिरावट और कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियों में रुकावट के चलते रोजगार सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। रोजगार को बजट में महत्व मिलना अपेक्षित ही नहीं, जरूरी भी है।
लगभग एक हजार उत्पादों की, जो पहले लघु उद्योगों के लिए आरक्षित थे, सूची घटते-घटते शून्य पर आ गई। इसके कारण लघु उद्योगों का पतन तो हुआ ही, आयातों पर हमारी निर्भरता भी बढ़ी और रोजगार का भी ह्रास हुआ। लघु उद्योगों के आरक्षण की उस नीति को बहाल करने की जरूरत होगी। साथ ही लघु व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा उसके पूंजी निवेश में 25 प्रतिशत की सब्सिड़ी सहायक हो सकती है। मनरेगा को यदि कृषि और लघु उद्योगों के लिए विस्तारित किया जाए, तो ग्रामीण युवाओं को लंबे समय तक और अधिक लाभकारी रोजगार मिलने के रास्ते खुलेंगे। हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा यह आह्वान किया गया है कि देश के उद्यमों एवं स्टार्ट-अप्स को देश में ही पूंजी मिले। इसके लिए जरूरी है कि विदेशी निवेशकों को जो करों में छूट मिलती है, वह छूट देशी निवेशकों को भी मिले। सरकार को अपनी कर प्रणाली को दुरुस्त करना पड़ेगा, ताकि स्टार्ट-अप्स को ज्यादा निवेश मिले और देशी निवेशकों को ज्यादा अवसर।
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