सम्पादकीय

बीएसएफ की सीमा

Rani Sahu
16 Oct 2021 6:30 PM GMT
बीएसएफ की सीमा
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केंद्र सरकार ने अपने एक हालिया फैसले के जरिए पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा से सटे राज्यों- असम, पश्चिम बंगाल और पंजाब- में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का अधिकार क्षेत्र 15 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर कर दिया

केंद्र सरकार ने अपने एक हालिया फैसले के जरिए पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा से सटे राज्यों- असम, पश्चिम बंगाल और पंजाब- में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का अधिकार क्षेत्र 15 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर कर दिया। केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक, यह फैसला हाल के दिनों में सीमा पार गतिविधियों में हुए अप्रत्याशित इजाफे और ड्रोन के बढ़ते इस्तेमाल से पैदा हुए विशेष खतरों के मद्देनजर किया गया है। मगर कुछ राज्य सरकारें इसे अपने अधिकार क्षेत्र में अनावश्यक दखल के रूप में ले रही हैं। पश्चिम बंगाल और पंजाब की सरकारों ने इस फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की है।

निश्चित रूप से यह विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। देश की सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता से जुड़े ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर हमारी सरकारें इस तरह एक-दूसरे से सार्वजनिक तौर पर उलझती दिखें तो उसका संदेश अच्छा नहीं जाता है। लेकिन इसका हल एक-दूसरे को ऐसे मसले पर राजनीति न करने का सार्वजनिक उपदेश नहीं हो सकता। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रोन के बढ़ते इस्तेमाल ने हमारी सुरक्षा एजेंसियों को विशेष तौर पर चिंतित किया है। इस विशेष चुनौती से निपटने के लिए उनके अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को थोड़ा विस्तृत करने की जरूरत जायज तौर पर महसूस की गई हो, यह बिल्कुल संभव है।
लेकिन यह समझना मुश्किल है कि इसके बाद नोटिफिकेशन जारी करने से पहले संबंधित राज्यों से विचार-विमर्श करके उन्हें विश्वास में लेने की प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई गई। यह नौबत क्यों आई कि फैसला लागू होने की घोषणा के बाद विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इसे देश के संघात्मक ढांचे पर हमला बताने लगे? उनका पक्ष पहले सुन लिया जाता तो यह विरोध सार्वजनिक नहीं होता। तब यह भी संभव था कि उनकी चिंताएं दूर करने की कोई राह निकल आती। आखिर कानून व्यवस्था का सवाल राज्य सरकार के कार्यक्षेत्र में आता है। अंतरराष्ट्रीय सीमा से 50 किलोमीटर तक का दायरा किसी केंद्रीय एजेंसी के अधिकार क्षेत्र में देने से राज्य और केंद्र की एजेंसियों के बीच टकराव की नौबत आने की आशंका बढ़ जाती है। हो सकता है बीएसएफ की किसी कार्रवाई से कानून व्यवस्था की चुनौती खड़ी हो जाए।
राज्य सरकारों के असंतोष या उनकी असहमति का सार्वजनिक रूप से जाहिर होना ऐसे संभावित टकराव की जमीन को मजबूत करता है। जाहिर है, इस प्रकरण में ऐसा बहुत कुछ हो चुका है जो नहीं होना चाहिए था और जो थोड़ी सी सावधानी से टाला जा सकता था। फिर भी अभी बहुत देर नहीं हुई है। सार्वजनिक बयानबाजी से मामला सुलझने के बजाय और उलझता जाएगा। बेहतर होगा कि संबंधित राज्य सरकारों से अविलंब बातचीत शुरू करके उनकी शिकायतों पर गौर किया जाए। ऐसे संवेदनशील मसलों पर में कोई भी कदम तभी सफल होगा, जब वह पूरे तालमेल के साथ उठाया जाए।


Rani Sahu

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