सम्पादकीय

पुल टूटा, भरोसा न टूटे

Subhi
1 Nov 2022 4:45 AM GMT
पुल टूटा, भरोसा न टूटे
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गुजरात के मोरबी शहर में जिन हालात में एक सस्पेंशन ब्रिज टूट कर नदी में जा गिरा, वह हैरत में डालने वाला है। करीब 134 लोगों के मारे जाने की बात तो अभी कही जा रही है

नवभारतटाइम्स; गुजरात के मोरबी शहर में जिन हालात में एक सस्पेंशन ब्रिज टूट कर नदी में जा गिरा, वह हैरत में डालने वाला है। करीब 134 लोगों के मारे जाने की बात तो अभी कही जा रही है, लेकिन बहुत सारे लोग गायब हैं। मिली जानकारी के मुताबिक हादसे के वक्त पुल पर 400 से ज्यादा लोग थे। ऐसे में मरने वालों की संख्या और बढ़ जाए तो आश्चर्य नहीं। सरकार ने एक विशेष जांच दल का गठन कर दिया है। कहा जा रहा है कि जांच में जो भी दोषी पाए जाएंगे, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। मगर अपने देश में जांच समिति का गठन कठिन सवालों को टालने का एक जरिया बनता जा रहा है। इस मामले में भी पहली नजर में ही ऐसे बहुत सारे सवाल उठ रहे हैं, जिनके जवाब तत्काल सार्वजनिक तौर पर दिए जाने चाहिए।

अंग्रेजों के जमाने का यह ऐतिहासिक पुल मरम्मत के लिए बंद किया जाता है, और मरम्मत के लिए तय अवधि से पहले ही बिना स्थानीय प्रशासन की औपचारिक मंजूरी लिए और बिना फिटनेस सर्टिफिकेट हासिल किए खोल दिया जाता है, यह बात सार्वजनिक जानकारी में आ जाती है, लोग पुल पर पहले की तरह जाने लगते हैं, उनसे बाकायदा टिकट वसूला जाने लगता है, इसकी अधिकतम क्षमता सौ सवा सौ लोगों की बताए जाने के बावजूद चार सौ लोगों को पुल पर जाने की इजाजत दे दी जाती है- ये सब ऐसे तथ्य हैं जिन्हें न तो झुठलाया जा सकता है और न ही अनदेखा किया जा सकता है। हैरत की बात यह भी है कि गुजरात सरकार के कई सीनियर मंत्री जो घटनास्थल पर ही डेरा डाले हैं, वे भी सार्वजनिक तौर पर उठाए जा रहे इन सवालों के संतोषजनक जवाब देने के बजाय यह रस्मी वाक्य बोलकर काम चला रहे हैं कि जांच समिति गठित कर दी गई है और उसमें जो भी दोषी पाया जाएगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।

सवाल यह है कि जो तथ्य रेकॉर्ड पर हैं उन्हें सार्वजनिक करने में क्या बाधा है? इस आग्रह का कारण यह है कि इतनी सारी अनियमितताएं सत्ताकेंद्रों की इजाजत के बगैर नहीं हो सकतीं। आखिर कोई मरम्मत कराने वाली कंपनी संबंधित सरकारी विभागों की इजाजत के बगैर पुल शुरू करने का फैसला कैसे कर सकती है अगर उसे ताकतवर लोगों का आशीर्वाद न हासिल हो? अगर मोरबी के लोगों को यह पता चल जाता है कि पुल खुल चुका है और वे टिकट लेकर पुल पर जाने लगते हैं तो यह कैसे संभव है कि नगरपालिका अधिकारियों को यह न पता हो। जाहिर है, या तो वे दबाव में हैं या फिर उनकी मिलीभगत है। ऐसे में संबंधित अधिकारियों के पद पर रहते हुए विश्वसनीय जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती है? सरकार को समझना होगा कि यह पुल टूटने का एक स्थानीय मामला भर नहीं, देश की प्रशासनिक व्यवस्था की विश्वसनीयता बचाने का भी सवाल है।


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