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जिसमें इन लड़कियों की सुध लेने वाला कोई नहीं होता है, परिवार वाले भी नहीं।
इक्कीस साल की समता (बदला हुआ नाम) ने किताबों से पक्की दोस्ती कर ली है। वह अपने परिवार की पहली मैट्रिक पास है। मात्र ग्यारह साल की उम्र में उसके माता-पिता ने उसकी शादी कर दी थी। लेकिन पेशे से मजदूर 20 साल का उसका दूल्हा विपिन उसे बात-बात पर पीटता था। जब सहन नहीं हुआ, तो भाग आई। अब वह पढ़ना चाहती है और उसका सपना आर्थिक स्वतंत्रता है। दिल और शरीर पर लगे चोट से उबरने में उसे कुछ वक्त ज़रूर लगा, पर अब वह बारहवीं की पढ़ाई कर रही है। बिहार के कटिहार जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर कोढ़ा ब्लॉक स्थित रामपुर पंचायत की समता की शादी एक सुनियोजित ब्राइड ट्रैफिकिंग का मामला है।
हालांकि मोबाइल क्रांति और ब्राइड ट्रैफिकिंग को लेकर बिहार के सीमांचल इलाकों में आई थोड़ी जागरूकता ने समता को बचा लिया। धीरे-धीरे स्थानीय लोगों में यह समझ बन रही है कि दलाल के जरिये शादियां सुखांत नहीं होतीं। कटिहार और अररिया जिलों के गांवों में 12 से 18 साल की बच्चियों का समूह बना है। अपने समूह की मासिक बैठक में ये किशोरियां गांव के किसी सार्वजनिक स्थल में जुटकर गीत गाकर न सिर्फ ब्राइड ट्रैफिकिंग के खिलाफ जागरूकता फैलाती हैं, बल्कि दलालों के साथ-साथ अपने माता–पिता को भी चेतावनी दे रही हैं। इन गीत गाने वाली लड़कियों में जमुना (बदला हुआ नाम) भी एक है। उसकी शादी भी 15 साल की उम्र में दलालों ने करा दी थी। तब वह आठवीं में पढ़ती थी। जमुना बताती है, 'पहले तो समझ में नहीं आया कि मेरे साथ क्या हो रहा है? फिर जब समझ में आया कि मुझे बेच दिया गया है, तो मैं भाग आई।' जमुना ने भी अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी है।
इस संबंध में ब्राइड ट्रैफिकिंग के खिलाफ क्षेत्र में सक्रिय स्वयंसेवी संस्था भूमिका विहार के कार्यकर्ता राजनंदिनी और हेमंत दास कहते हैं, 'इसे रोकने का सबसे अच्छा उपाय किशोरियों को जागरूक करना है। अगर वे जागरूक होंगी, तभी लड़ सकेंगी। इसके अलावा, सरकार के साथ मिलकर हम लोग विवाह निबंधन पर भी काम कर रहे हैं।' कटिहार की रामपुर पंचायत में बाल सुरक्षा समिति विवाह निबंधन पर वर्ष 2016 से काम कर रही है। ब्राइड ट्रैफिकिंग के इन मामलों की शिकार लड़कियों और उनके मां-बाप को यह तक पता नहीं होता कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान में किस जिले, शहर या मोहल्ले में उनकी बेटी की शादी हो रही है? ऐसे में विवाह निबंधन बहुत जरूरी पहल लगती है। महिलाओं के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था एक्शन एड की प्रोग्राम मैनेजर शरद कुमारी कहती हैं, 'अगर मैरिज रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य कर दिया जाए, तो तीन फायदे होंगे।
पहला बाल विवाह रुकेगा, दूसरा ब्राइड ट्रैफिकिंग रोकी जा सकती है और तीसरा घरेलू हिंसा के मामलों में जरूरी हस्तक्षेप किया जा सकता है।' बिहार में पंचायत स्तर पर अभी जो निबंधन हो रहे हैं, उसमें ज्यादातर का मकसद मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना की प्रोत्साहन राशि का लाभ उठाना है। नीतीश सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए इस योजना की शुरुआत की थी। कोसी–महानंदा क्षेत्र में विवाह निबंधन से जुड़ी जागरूकता पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता भगवान पाठक कहते हैं, 'अभी ज्यादातर विवाह निबंधन पांच हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि के लिए हो रहा है और आर्थिक तौर पर पिछड़े लोग करा रहे हैं।' लेकिन इन सारी उम्मीद बंधाने वाली बातों के बीच ट्रैफिकिंग की शिकार वे लड़कियां भी हैं, जो रात के घुप अंधेरे में विदा हुईं, तो फिर कभी न तो मायके आ सकीं और न ही उनकी कोई खबर ही मिली। आरती और मुन्नी ऐसी ही खोई हुई लड़कियां हैं। हर साल बिहार के इस क्षेत्र में आने वाली बाढ़ न केवल लोगों का आशियाना उजाड़ जाती है, बल्कि उनके ख्वाबों को भी बहा ले जाती है। सच तो यह है कि क्षेत्र की गरीबी, प्राकृतिक आपदाएं, मानव तस्करों की गिद्ध नजर और लड़कियों के प्रति परिवारों में रची-बसी असंवेदनशीलता एक ऐसा मकड़जाल बुनती है, जिसमें इन लड़कियों की सुध लेने वाला कोई नहीं होता है, परिवार वाले भी नहीं।
सोर्स: अमर उजाला
Neha Dani
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