सम्पादकीय

रिश्वतखोरी की चुनौती

Gulabi
28 Nov 2020 5:28 AM GMT
रिश्वतखोरी की चुनौती
x
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट भारत के लिए चिंताजनक है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट भारत के लिए चिंताजनक है। इस रिपोर्ट में भारत को एशिया का सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक एशिया के दूसरे देशों में कंबोडिया दूसरे और इंडोनेशिया तीसरे नंबर पर है।

करीब 39 फीसदी भारतीय मानते हैं कि उन्होंने अपना काम करवाने के लिए रिश्वत का सहारा लिया। वर्ष 2019 में भ्रष्टाचार के मामले में भारत दुनिया के 198 देशों में 80वीं पायदान पर था। इस संस्था ने उसको 100 में से 41 नंबर दिए थे। देश के लिए यह बेहद शर्मनाक रिपोर्ट है।

केंद्र व राज्यों सरकारों ने जीरो भ्रष्टाचार-जीरो टोलरैंस का नारा दिया है, लेकिन भ्रष्टाचार को पूरी तरह मिटाया नहीं जा सका। दरअसल मोटे तौर पर भ्रष्टाचार पर केवल राजनीतिक स्तर पर ही चर्चा की जाती है। कोई मंत्री, सांसद, विधायक रिश्वत खाए तो उसकी मीडिया में चर्चा होती है।

पार्टियां एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती हैं। दरअसल आम आदमी को सरकारी कार्य करवाने के लिए जो जेब ढीली करनी पड़ती है उसकी चर्चा बहुत कम होती है। आम लोगों को रिश्वतखोरी से बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। उद्योगपति रत्न टाटा ने कहा था कि जो कारपोरेट रिश्वत नहीं देते वे पिछड़ जाते हैं।

केंद्र सरकार ने निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए व कई पुराने कानून व इंस्पेक्टर व्यवस्था भी समाप्त की। निम्न स्तर पर आम लोगों को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए आधार कार्ड बनाने, बैंक खाते खोलने और ई-पोस जैसी मशीनों ने अच्छी भूमिका निभाई है। कई राज्यों ने विधवा, बुजुर्ग व निशक्तजनों की पेंशनें बैंक खातों में ट्रांसफर कर भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिली है, लेकिन अभी भी सरकारी दफ्तरों में सुधार की आवश्यकता है।

छोटे-छोटे कार्यों और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आम आदमी को रिश्वत देनी पड़ती है। हैरानी तब होती है जब प्राकृतिक आपदाओं से फसलों के नुक्सान का मुआवजा भी रसूख वाले लोग घर बैठे-बिठाए लेते हैं लेकिन भोले-भाले किसान सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटकर भी मुआवजा नहीं ले पाते।

यह भी सच है कि लोग भी भ्रष्टाचार के आदी होने के कारण चुपचाप रिश्वत दे देते हैं। कुछ लोग हैं, जो रिश्वत न देने के लिए संघर्ष भी करते हैं। डेरा सच्चा सौदा की यह मुहिम सार्थक है कि 'न रिश्वत लो, न रिश्वत दो'। जब कोई रिश्वत देगा ही नहीं तो यह समस्या भी खत्म हो जाएगी।

देश में सूचना अधिकार एक्ट लागू होने से कुछ हद तक रिश्वतखोरी घटी है और 61 प्रतिशत लोगों को उम्मीद है कि भविष्य में सुधार होगा। सरकार के साथ-साथ जनता को भी इस मामले में जागरूक होने की आवश्यकता है। केवल विजीलैंस की कार्रवाई काफी नहीं बल्कि जनता को पूरा सहयोग करना होगा। देश में ईमानदारी जिंदा है और इसे पूरे देश की पहचान बना


Gulabi

Gulabi

    Next Story