सम्पादकीय

राफेल सौदे में घूस!

Rani Sahu
10 Nov 2021 7:05 PM GMT
राफेल सौदे में घूस!
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राफेल लड़ाकू विमान सौदे में भारतीय बिचौलिए को घूस दी गई

राफेल लड़ाकू विमान सौदे में भारतीय बिचौलिए को घूस दी गई। क्या दलाली देना और बिचौलिए की भूमिका संभव है, जब भारत और फ्रांस सरकारों के बीच सौदा हुआ है? फ्रांस के एक न्यूज पोर्टल 'मीडिया पार्ट' ने अपनी खोजपरक रपट में यह रहस्योद्घाटन किया है कि राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन ने 75 लाख यूरो (65 करोड़ रुपए) की घूस बिचौलिए सुशेन मोहन गुप्ता को दी। यह दलाली मॉरीशस में पंजीकृत बिचौलिए की फर्जी कंपनी के जरिए दी गई। फर्जी रसीदों और बिलों का इस्तेमाल किया गया। पोर्टल में दावा किया गया है कि दलाली की रकम 2007-12 के दौरान दी गई और 2013 तक पूरी घूस दे दी गई। इन सालों में भारत में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी। डॉ. मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। सवाल है कि क्या दलाली के मद्देनजर ही 10 साल तक सौदे पर बातचीत चलती रही और अंततः सौदा नहीं हुआ? जब अधिकृत और संशोधित सौदा 2016 में मोदी सरकार के दौरान हुआ, तो बिचौलिए को पहले ही दलाली कैसे दी गई? दलाली दी गई या कहीं, कोई छिद्र है? दलाली के 65 करोड़ रुपए किस-किस के बीच बंटे? इन सवालों की जांच अभी तक हो जानी चाहिए थी, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता का मुद्दा है। मॉरीशस सुशेन गुप्ता की फर्जी कंपनी के तमाम दस्तावेज अक्तूबर, 2018 में ही सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को भेज चुका था। फिर इन 36 महीनों में घूस का सच क्यों दबा रहा? सवाल यह भी है कि फ्रेंच कंपनी दसॉल्ट ने भी बिचौलिए को घूस क्यों दी? यदि घूस नहीं दी गई, तो फ्रांस सरकार ने भारत सरकार को स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया? फ्रांस सरकार ने मीडिया रपट पर कोई टिप्पणी नहीं की है, हालांकि वहां का न्यायिक आयोग दसॉल्ट की कार्यप्रणाली और सौदों की जांच जरूर कर रहा है।

भारत में यह जांच इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जब प्रवर्तन निदेशालय ने सुशेन गुप्ता के आवास और दफ्तर में छापे मारे थे, तो कुछ बेहद संवेदनशील और गोपनीय किस्म के दस्तावेज बरामद किए गए थे। उनमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण जेतली को लिखा खुफिया पत्र, बेंचमार्क मूल्यांकन और रक्षा खरीद संबंधी विमर्श के रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज मिले थे। सवाल है कि एक बिचौलिए के पास ऐसे महत्त्वपूर्ण और गोपनीय दस्तावेज कहां से और कैसे आए? ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के उल्लंघन का केस दर्ज क्यों नहीं किया गया? बेशक दलाल सुशेन को जेल भी हुई और धन शोधन का केस भी बनाया गया। उसके बावजूद सुशेन गुप्ता के कारोबार पर ढक्कन क्यों नहीं लगाया गया? बिचौलिए को काली सूची में क्यों नहीं डाल दिया गया? ये इतने अहम सवाल हैं, जिनके निष्कर्ष जांच के बाद ही सामने आ सकते हैं। हालांकि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) राफेल सौदे की शुरुआती जांच कर चुका है। सर्वोच्च न्यायालय को भी सौदे की जरूरत, प्रक्रिया, विमान के मूल्य आदि पर कोई आपत्ति नहीं है, लिहाजा बुनियादी तौर पर उसने भी हरी झंडी दे दी। हालांकि जस्टिस जोसेफ ने अपने निर्णय में लिखा था कि यदि सीबीआई जांच करना चाहे, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। इस मुद्दे पर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खूब शोर मचाया था-'चौकीदार चोर है।' जनमत कांग्रेस के बहुत खिलाफ रहा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर सरकार बनी। हम अब भी उस रपट की पूरी तरह पुष्टि नहीं करते, लेकिन जांच के पक्षधर जरूर हैं, क्योंकि कई राष्ट्रीय संदर्भ अब भी अनुत्तरित हैं।

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