सम्पादकीय

सांस लेना भी जीवन की किस्त अदायगी मानी जानी चाहिए

Rani Sahu
28 Oct 2021 10:23 AM GMT
सांस लेना भी जीवन की किस्त अदायगी मानी जानी चाहिए
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गौरतलब है कि फिल्म वितरण और प्रदर्शन में आर्थिक समीकरण इस तरह रहा है

जयप्रकाश चौकसे गौरतलब है कि फिल्म वितरण और प्रदर्शन में आर्थिक समीकरण इस तरह रहा है कि वितरक फिल्म निर्माता को फिल्म निर्माण के समय किस्तों में वितरण अनुबंध की 40 फीसदी राशि देते थे। फिर प्रदर्शन के एक सप्ताह पूर्व शेष 60 फीसदी धन देकर फिल्म प्रदर्शन करते थे। वितरक अपनी लागत पर 25 फीसदी मुनाफा कमाने के बाद प्राप्त धन जिसे ओवरफ्लो कहा जाता था, निर्माता के साथ समान अनुपात में बांट लेता था।

इस तरह वितरक, निर्माता को दिए जाने वाला धन उन सिनेमाघरों के मालिकों से प्राप्त करता था, जहां उसने प्रदर्शन का अनुबंध किया हो। सिनेमाघर के मालिकों को धन, फिल्म के दर्शक से मिलता है। इस तरह मनोरंजन उद्योग में दर्शक के धन से ही दर्शक के लिए फिल्में बनती रही हैं। फिल्मकार श्याम बेनेगल ने दुग्ध सहकारी संस्था के सदस्यों से धन लेकर स्मिता पाटिल अभिनीत फिल्म 'मंथन' का निर्माण किया।
सहकारी संस्था के सदस्यों ने टिकट खरीदकर इस फिल्म को देखा और इसके द्वारा कमाया गया ओवरफ्लो भी सहकारी संस्था के सदस्यों में बांटा दिया। अत: इस तरह देखा जाए तो 'मंथन' एक फिल्म ही नहीं है बल्कि फिल्म निर्माण क्षेत्र में यह सहकारिता की भावना को भी रेखांकित करती है। बहरहाल, बाजार ने भी किस्तों में धन लेकर उपभोक्ता को माल दिया। इस तरह किस्त व्यवस्था से उपभोक्ता अपने सपनों को जी लेता है।
किस्तें नहीं चुकाने वालों के घर से वस्तु को जब्त करने का अधिकार दुकानदार को है। गौरतलब है कि दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात वस्तुओं के अभाव से आम लोगों में गहरा असंतोष था। अत: क्रेडिट कार्ड व्यवस्था का उदय हुआ कि कार्ड दिखाकर वस्तु का उपयोग प्रारंभ करें और समय पर किस्त अदा कर दें। अत: बाजार, असंतोष से लाभ कमाना जानता है। बाजार, आम आदमी के मनोविज्ञान को समझता है।
यहां तक कि डिपार्टमेंट स्टोर में वस्तुएं किस क्रम में रखी जाएं यह काम भी बहुत सोच-समझकर किया जाता है। मसलन, बच्चों के पसंद की वस्तुएं द्वार के निकट ही रखी जाती हैं। क्योंकि यह बाल हठ ही ग्राहकों को दुकान में लाती है। साहित्य क्षेत्र में शरत बाबू का 'देवदास' भी पहले किस्तो में प्रकाशित हुआ था। पुस्तक स्वरूप में 'देवदास' बाद में आया। एक घटना इस तरह है कि एक दादी अपने गांव से शहर में कार्यरत अपने पोते के घर आई।
उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सीमित कमाने वाले उसके पोते के यहां सभी सुविधाजनक चीजें हैं। जब उसने कुछ गड़बड़ी की आशंका व्यक्त की तो पोते ने बताया कि उसने सारा सामान किस्तों पर लिया है। दादी ने जानना चाहा कि उसने शिशु के जन्म के बाद महंगे अस्पताल में पूरा धन दिया होगा? पोते ने सगर्व बताया कि अस्पताल में पूरा भुगतान किया गया है परंतु बच्चे के खिलौने किस्तों में खरीदे गए हैं।
यह सुनकर वह दादी कुछ धन अपने पोते को देकर यह कहती है कि इससे बच्चे के उन खिलौनों की किस्त अदा कर दे ताकि वह शिशु किस्तों में खरीदे खिलौनों से नहीं खेले। किस्तों में खरीदारी से कम से कम उसकी भावी पीढ़ी तो मुक्त हो सके। बाजार का एक पैंतरा यह भी है कि भारी डिस्काउंट का विज्ञापन दिया जाता है। इसके लालच में अनावश्यक वस्तुएं भी खरीदी जाती हैं। 'साराभाई वर्सेस साराभाई' सीरियल में दिखाई गई एक पात्र डिस्काउंट में बेचे जा रहे सामान के लिए कुछ भी कर गुजरती है।
बहरहाल, कुछ शिखर संस्थाएं महत्वपूर्ण फैसले लेती हैं परंतु उन फैसलों को अवाम को कुछ दिन बाद बताया जाता है। यह भी एक प्रकार की किस्तवार व्यवस्था समान ही है। यादें भी किस्तों में उजागर होती हैं। केलिडोस्कोप नामक खिलौने में रंगीन कांच के छोटे-छोटे टुकड़े भरे होते हैं। उसे घुमाने पर कांच के टुकड़े नए पैटर्न बनाते हैं। इन्हें देखते हुए यादें भी बेतरतीब क्रम में किस्तों में उजागर होती हैं। गोया की सांस लेना भी जीवन की किस्त अदायगी ही मानी जानी चाहिए।
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