सम्पादकीय

संयम और सतर्कता से तोड़ो कोरोना की चेन

Gulabi
28 April 2021 4:45 PM GMT
संयम और सतर्कता से तोड़ो कोरोना की चेन
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कोरोना वायरस के लगातार कहर ढाने के बीच कर्नाटक में आज से 14 दिन का लॉकडाउन लगा दिया गया है

आदित्य चौपड़ा। कोरोना वायरस के लगातार कहर ढाने के बीच कर्नाटक में आज से 14 दिन का लॉकडाउन लगा दिया गया है। यद्यपि कोरोना काल में सभी राज्यों की कोशिश यही थी कि सम्पूर्ण लाॅकडाउन नहीं लगाया जाए, इसलिए रात्रि कर्फ्यू का विकल्प आजमाया गया लेकिन कर्नाटक ने सम्पूर्ण लॉकडाउन इसलिए लगाया क्योंकि उसके पास इस अंतिम उपाय के अलावा आैर कोई विकल्प नहीं बचा था। कर्नाटक का लाॅकडाउन इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि संक्रमण की कड़ी को तोड़ने के लिए लाॅकडाउन लगाना ही पड़ेगा। कोरोना एक अदृश्य लेकिन महाघातक शत्रु के तौर पर सामने आ चुका है। एक दिन में देश के सामने जितने मामले आ रहे हैं उनमें से 74.53 फीसद मामले महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत दस राज्यों में दर्ज किए जा रहे हैं। अब चारों तरफ बेबसी नजर आने लगी है।


नीति आयोग ने कहा है कि ''अब वक्त आ गया है, जब हमें घरों के भीतर भी मास्क पहनना चाहिए।'' घरों में मास्क पहनना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कोरोना मरीज और बगैर लक्षण वाले संक्रमित इसका संक्रमण न कर पाएं। क्योंकि बिना लक्षण वाले लोग बीमार तो नहीं पड़ते, इसलिए वे जांच नहीं कराते। परिणास्वरूप कोरोना उन्हें बगैर नुक्सान पहुंचाए उनके शरीर से गुजर जाता है परन्तु इस दौरान वे अनेक लोगों को बुरी तरह बीमार कर सकते हैं। ऐसे बगैर लक्षण वाले लोगों की संख्या काफी बड़ी है जो खुद को बीमार न मानते हुए दूसरों को प्राणघातक संक्रमण दे सकता है। ऐसे मामलों की संख्या भी सामने आ रही है, जिनमें पूरा का पूरा परिवार संक्रमित हो गया, जबकि ज्यादातर लोग घरों से बाहर ही नहीं निकले। घरों में लोग बातचीत तो करते ही हैं और सामान्य बातचीत में मुंह से निकलने वाले महीन कणों से भी संक्रमण फैल सकता है। मास्क का मुख्य मकसद पहनने वाले से ज्यादा सामने वाले को बचाना ज्यादा होता है। ऐसे में घर के भीतर मास्क पहनने की जरूरत लोगों के जीवन की रक्षा के लिए है, जो वृद्धावस्था या पहले से मौजूद ​किसी बीमारी के कारण खतरे में होते हैं।

एक रिसर्च बताती है कि अगर एक व्यक्ति फिजिकल डिस्टेंसिंग न अपनाए तो वह 30 दिन में 4-6 लोगों को संक्रमित कर सकता है। अगर कोरोना पाजिटिव व्यक्ति अपना फिजिकल एक्सपोजर 50 फीसदी तक कम कर दें तो एक महीने में 15 लोग आैर 75 फीसदी कम करने पर ढाई लोगों को ही संक्रमित कर पाएगा। होम आइसोलेशन में अप्रभावित व्यक्ति ने मास्क लगाया है और संक्रमित व्यक्ति ने मास्क नहीं लगाया तो इंफैक्शन का खतरा 30 प्रतिशत रहेगा। अगर दोनों ने मास्क लगाया है तो संक्रमण का खतरा घट कर 1.5 प्रतिशत ही रहेगा।

देशवासियों को अभी तक लाॅकडाउन के नियमों और कोरोना संक्रमण से बचने के उपायों का सख्ती से पालन करना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि 18 वर्ष से ऊपर के लोगों का टीकाकरण शुरू किया जा रहा है। अभी सभी के लिए टीके उपलब्ध हो पाना मुश्किल है। इसलिए हमें संयम रखना होगा, जिन्हें टीका मिले, उन्हें इसे ले लेना च​ाहिए ताकि संक्रमण की रोकथाम में मदद मिले। अब तक के अनुभव बताते हैं कि जो कुछ लोग दोनों डोज लेने के बाद भी संक्रमित हुए हैं, उन्हें अधिक परेशानी नहीं हुई। इसलिए लोगों को किसी भी तरह की अफवाह या अपुष्ट सूचनाओं पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

महामारी की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शव जलाने के लिए श्मशान में जगह कम पड़ने लगी है। ऐसी ​परिस्थिति में सरकार और व्यवस्था के प्रति अविश्वास का प्रदर्शन खुद और समाज को खतरे में डालने जैसा है। परिस्थितियां जब अपने हाथ में नहीं हों तो उनसे समझौता करना ही पड़ता है। ऐसे में संयम और सतर्कता ही ऐसे हथियार हैं जिससे हम महामारी के महाजाल को काट सकते हैं। हम सभी को मिलकर महामारी के जाल को काटना होगा। मानवीय इतिहास में कभी प्राकृतिक, तो कभी भौतिक आपदाओं के कारण लोग दुर्भिक्ष का शिकार होते हैं। भारत में महामारियों का इतिहास औपनिवेशिक काल में ज्यादा देखने को मिलता है। 1900 से अब तक कई महामारियां फैलीं। विज्ञान और विकास ने इंसान को ताकत दी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम भगवान और प्रकृति को चुनौती दें। विज्ञान ने हमें प्रयोगधर्मी तो बना दिया और इंसान परम्पराओं को दकियानूसी कह कर ठुकराने लगे।

कोरोना के मामले में लोग घबरा रहे हैं। हर किसी को अस्पताल मिलना सम्भव नहीं, फिर इसका इलाज घर पर ही रहकर किया जा सकता है। ज्यादातर लोग घर पर ही ठीक हो रहे हैं। स्वच्छता का पूरा ध्यान रखकर, गर्म पानी का सेवन और माप लेना अच्छी ​दिनचर्या में शामिल करें और तुलसी, नीम, परिजात, गिलोय आदि आैषधीय पौधों का सेवन करें। सतर्कता, परम्पारिक ज्ञान और धैर्य, सकारात्मक सोच और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ही हमें बीमारी से निजात दिला सकता है।


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