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- नहीं पचेगी मेहनत की...
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उसने मेरी नब्ज पर हाथ रखते ही बता दिया कि मुझे न तो मेहनत का खून मिलेगा और न ही मेहनत की रोटी पचेगी। हम भारतीयों की पहचान कमाने से ज्यादा पचाने में है, इसलिए हर बार नाड़ी परीक्षण में मैं हार जाता हूं। हालांकि उसने आश्वस्त किया कि बिना पचाए और खून की कमी के बावजूद मैं जिंदा रहूंगा, लेकिन इसके लिए अब और मेहनत करनी होगी। खैर एक भारतीय की नब्ज में मेहनत के सिवाय मिलेगा भी क्या, सो अब फर्क नहीं पड़ता कि देश के लिए मेरी जिंदगी ज्यादा जरूरी है या मेहनत। भारत में मेहनत तो जन्म लेने में भी करनी पड़ती है, वरना अस्पतालों में नवजात शिशु यूं ही नहीं मर जाते। गरीब और जरूरतमंद माताएं गर्भावस्था में मेहनत के बल पर ही बच्चों को इतना मेहनती बना देती हैं कि धरती पर आने के लिए वे खुद ही मेहनती और जवाबदेह बन जाते हैं। इस देश में जवाबदेही केवल उसी की होती है जिसकी जिंदगी की हर सांस मेहनत पर चलती है। हमने देखा है लोगों को अदालती चक्करों में मेहनत करते या अस्पतालों में सरकारी दावों के आगे मेहनत करते। आजादी के बाद सारी मेहनत तो वे कर रहे हैं जिनकी मेहनत रोटी नहीं पचा पाती, वरना पचाने वाले तो शेयर बाजार हो गए। लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि अचानक गौतम अडानी आसमान से गिर कर खजूर पर कैसे लटक गए। दरअसल पिछले कुछ सालों से वह हर कारोबार को निगल कर देश के लिए पचा रहे थे, इसलिए विश्व के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति हो गए, फिर एक दिन अचानक उन्हें न जाने क्या सूझी जो मेहनत करनी शुरू कर दी।
हम चाहेंगे कि अडानी जी देश की खातिर सिर्फ पचाएं, मेहनत न करें। वह पहले जिस तरह पचा-पचा कर देश के लिए अमीर बने, अब मेहनत करके इसे गंवा न दें। देश ने ऐसे अमीरों का चयन कर लिया है, जिन्हें सिर्फ पचाना है। इसलिए पचाने का राष्ट्रवाद, मेहनत की राष्ट्र भक्ति से ऊपर है। अब तो टीवी डिबेट भी देश के लिए हर कुछ पचा लेती है, लिहाजा मीडिया की मेहनत अब एक तरह से वर्जित सी होने लगी है। भारत के सरकारी दफ्तरों में अब मेहनत के बजाय पचाने के परचम फहराए जाते हैं। दफ्तर में अधिकारी-कर्मचारी अगर कहीं मेहनती मिल गए, तो समझो देश की हवा उल्टी दिशा में बह निकलेगी। आम तौर पर पचाने के लिए कई अधिकारी फाइल तक नहीं देखते, पता नहीं कब कोई हस्ताक्षर मांग ले या मेहनत से कुछ करना न पड़ जाए। इसलिए लोग भी सरकारी कार्य संस्कृति को पचाने लायक हो गए हैं। साहब की नब्ज देख कर जनता खुद से बतियाती है, 'दो-ढाई महीने रुक जाओ', क्योंकि तब तक या तो अधिकारी बदल जाएगा या कोई मेहनती फंस जाएगा। जमीन-जायदाद के मामलों में अब तो न्याय भी कानून को पचाने लगा है। मां-बाप के मरने पर इकलौता बेटा तहसीलदार से सिर्फ यह पहचान कराना चाहता था कि वह ही संपत्ति का वारिस है, लेकिन साहब यह मानना नहीं चाहता था, लिहाजा अब दो-ढाई महीने रुकने के सिवाय और क्या मिलेगा। मेहनती लोग तो हर दिन को अब दो-ढाई महीने रुक कर पूरा करते हैं, इसलिए सरकारी दफ्तरों, कोर्ट-कचहरियों तथा सरकारी फाइलों तक के अपने दिन और अपने महीने हैं। देश में दुर्भाग्यवश मेहनत का हर दिन भी अब 'दो-ढाई महीने' की कवायद में इंतजार करता है ताकि कोई नया आकर इस समय को पचा ले। हम 'दो-ढाई महीने' रुक-रुक कर ही मेहनती हो गए, वरना देश में तो मुफ्त की योजनाएं कब से चीख-चीख कर पुकार रही हैं कि मेहनत मत करो। मेहनत मत करो, बल्कि मुफ्त का राशन पचाने लायक हो जाओ। अब तो मुफ्त का राशन अमीर को भी चाहिए। देश ने गौतम अडानी को खिलाया तो वह विश्व के तीसरे सबसे अमीर हो गए। अब आम लोगों की मेहनत सिर्फ बैंकों में धन जमा करने तक रह गई है, क्योंकि बैंकों को तो देश का धन पचाने के लिए किसी न किसी को अमीर बनाना ही होगा। आइए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और भारतीय जीवन बीमा निगम के लिए इतनी मेहनत करें कि ये दोनों फिर से अडानी को इतना खिलाएं कि यह बंदा भारत के लिए पचाकर, विश्व में फिर से अमीरी का डंका बजा सके।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
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Rani Sahu
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