सम्पादकीय

सरहद की संवेदनशीलता

Rani Sahu
8 Sep 2022 7:03 PM GMT
सरहद की संवेदनशीलता
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By: divyahimachal
अंतरराष्ट्रीय साजिश के मुहाने पर अगर नालागढ़ गोलीकांड के पात्र घूम गए, तो यह चुनौती और चेतावनी है। बंबीहा गैंग के शूटर को छुड़ाने के लिए हुई फायरिंग का मास्टर माइंड अगर सरहद के उस पार से आपरेट कर रहा था, तो यह घटनाक्रम तीखी आंखों और कानों के इस्तेमाल को वांछित बना देता है। खुलासा दिल्ली पुलिस के विशेष दस्ते का है, लेकिन इसकी जद में पंजाब की सीमा पर आंख गड़ाए दुश्मन के हाथ सामने आए हैं। ऐसे में हिमाचल के हिस्से आ गई संवेदनशीलता न केवल पुलिस बल के प्रबंधन को इत्तिला दे रही है, बल्कि यह सारे तामझाम में परिवर्तन लाने की चेतावनी भी है। प्रदेश के साथ पड़ोसी राज्यों की सीमा का एक विस्तृत चित्र ही पैदा नहीं होता, बल्कि चीन को छूते सुरक्षा के तंत्र को भी चौकस करता है। ऐसे में तमाम सरहदों पर चौकसी का बंदोबस्त विशेष मांग के आधार पर यह देखना चाहता है कि राज्य ने अब तक सतरुंडी नरसंहार व पंजाब के आतंकवादी दौर से क्या सीखा। इतना ही नहीं नशे के अंतरराष्ट्रीय बाजार के रास्ते पर, हिमाचल के भीतर तक पहुंच बढ़ रही है, तो इसके लिए सामान्य चैकिंग के नतीजे भी सामान्य ही होंगे।
सीमांत क्षेत्रों में औद्योगिक विस्तार ने आपराधिक तत्त्वों के आवागमन को सरल व सामान्य बना दिया है, जबकि इस तरह की एप्रोच से चौकसी के मूल तत्त्व नजर अंदाज हो रहे हैं। आश्चर्य तो यह कि हिमाचल में रात्रि पेट्रोलिंग न के बराबर है, जबकि पुलिस की दृष्टि से भी राज्य की संवेदनशीलता को न तो परखा जा रहा है और न ही इसके अनुरूप ढांचागत परिवर्तन हो रहे हंै। इससे पूर्व बीबीएन में और अब नूरपुर को पुलिस जिला बनाकर पूरे इंतजाम में रोशनी दिखाई गई, लेकिन ये प्रयास केवल सजावटी हैं। दरअसल कालाअंब से बीबीएन व ऊना होते हुए, कांगड़ा के नूरपुर तक की सीमांत पट्टी को एक अलग तरह के पुलिस पहरे की आवश्यकता है। यह राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खतरों के साथ-साथ आर्थिक बदलावों के लिए भी जरूरी है कि सीमाई इलाकों पर सिरमौर, बीबीएन, ऊना व कांगड़ा के सीमांत इलाकों में नए पुलिस जिला स्थापित करने के साथ इनके लिए अलग से रेंज स्थापित की जाए। चंबा व किन्नौर जिलों के सरहदी इलाकों में भी स्वतंत्र पुलिस निरीक्षण पद्धति अमल में लाने की जरूरत है।
इतना ही नहीं प्रदेश में शहरीकरण के उभरते नए आकाश व व्यावसायिक संभावनाओं के नए अक्स ने ऐसा रोजगार भी पैदा किया है, जिसके आधार पर बाहरी लोगों या प्रवासी मजदूरों का आगमन कई गुना बढ़ा है। इसे देखते हुए शहरी व ग्रामीण पुलिस के बीच रेखांकित जिम्मेदारी के आधार पर शिमला, मंडी, धर्मशाला व सोलन में पुलिस आयुक्तालय स्थापित करने होंगे ताकि कुछ मसले प्रमुखता के साथ स्थानीय तौर पर हल किए जा सकें। भले ही कुछ पुलिस रेंज के तहत प्रदेश को बांटा गया है, लेकिन न इन्हें कोई प्रशासनिक स्वतंत्रता और न ही व्यावहारिक छूट प्राप्त है। ऐसे में आयुक्तालयों में पुलिस कमिश्नर को अगर शक्तियां दी जाएं, तो चौकसी के इंतजाम स्थानीय तौर पर निपुण होंगे, वरना शिमला से नालागढ़ पहुंचने में भी पुलिस की वरिष्ठता को कदम उठाने में समय लगता है। जाहिर है हिमाचल में पुलिस से एक ओर पर्यटक के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार करने अपेक्षा रहती है, तो दूसरी ओर ऐसे सख्त पहरे की जरूरत भी है, जो तमाम साजिशों के सूत्रों की नकेल कस सके। कहीं न कहीं पुलिस प्रबंधन के पिरामिड को बदलते हुए एक विकेंद्रीकृत पद्धति को अंजाम देना होगा, वरना राजधानी में पुलिस के आला अधिकारियों का जमावड़ा केवल कागजों में देखते हुए ही परिपूर्ण रहेगा।
Rani Sahu

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