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- बुकर पुरस्कार से...

गीतांजलि श्री।
मैंने यह नहीं सोचा था कि मेरी किताब 'रेत समाधि' यहां तक पहुंचेगी और मुझे इसके अंग्रेजी संस्करण 'टूंब आफ सैंड' के लिए मेरी अनुवादक डेजी राकवेल के साथ बुकर सम्मान मिलेगा। किताब लिखने के पीछे कभी ऐसी सोच भी नहीं रही कि जवाब में पाठकों के भरोसे के अलावा कुछ मिले। वह बेशक मुझे पर्याप्त मिला। पहली बार हंस में प्रकाशित कहानी से लेकर अब तक। बुकर पुरस्कार बेशक मेरे लिए एक बड़ी खुशी है, लेकिन उससे भी अधिक ख़ुशी इस बात की है कि इस बार यह एक हिंदी किताब को मिला है। यह हम सबकी साझा खुशी है। मैंने हिंदी साहित्य का अध्ययन व्यवस्थित रूप में नहीं किया। मैं इतिहास की विद्यार्थी थी और तीस साल की उम्र तक मेरा लेखक मेरे भीतर ही कहीं गुम था। जिंदगी की और तमाम उलझनें थीं। युवावस्था का उत्साह, पुरानी मान्यताओं से अकुलाहट, कुछ नया करने की इच्छा और साथ ही अपने भविष्य की चिंताएं भी।
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