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Book Review योगा फॉर द गाडलेस: ईश्वर के बिना योग और आत्म की साधना

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यतीन्द्र मिश्र। श्री एम. एक आध्यात्मिक गुरु और स्थापित लेखक हैं। उनकी नई किताब 'योगा फार द गाडलेस' इस भ्रांति को तोड़ना चाहती है कि योग जैसी स्वास्थ्यवर्धक और आध्यात्मिक क्रिया का आस्तिकता से कोई संबंध है। श्री एम. मानवीय मनोविज्ञान को बहुत ही सूक्ष्मता से समझते हैं और जानते हैं कि ऐसे बहुत से लोग हैं, जो किसी सर्वशक्तिमान ईश्वर में यकीन नहीं करते, पर योग की क्रियाओं से लाभान्वित होना चाहते हैं। योग भारतीय अष्टांग दर्शन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पतंजलि का योग-सूत्र अपनी सारी दार्शनिक चेष्टाएं अपने पूर्ववर्ती दर्शन सांख्य से लेता है। सांख्य दर्शन मानता है कि यह पूरा संसार प्रकृति और पुरुष के आपसी साहचर्य और संवाद से बनता है और इसमें एक निर्माता या सर्व शक्तिमान ईश्वर की भूमिका को नकारता है। पतंजलि इन्हीं सूत्रों को लेकर आगे बढ़ते हैं और मानते हैं कि शरीर और मन के एकात्म और अभ्यास से हम उस परम अवस्था को प्राप्त हो सकते हैं, जिसे समाधि कहा जाता है।
