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अमोघ प्रकाशन, गुरुग्राम से प्रकाशित अशोक कुमार जैन का मुक्तक संग्रह 'चमकती धूप के साये' अपने युग से संवाद करता है
अमोघ प्रकाशन, गुरुग्राम से प्रकाशित अशोक कुमार जैन का मुक्तक संग्रह 'चमकती धूप के साये' अपने युग से संवाद करता है। सवाल है कि मुक्तक क्या होता है? मुक्तक काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें प्रबंधकीयता न हो। इसमें एक छंद में कथित बात का दूसरे छंद में कही गई बात से कोई संबंध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है। कबीर एवं रहीम के दोहे तथा मीराबाई के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। हिंदी के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई। मुक्तक शब्द का अर्थ है 'अपने आप में संपूर्ण'। अतः मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें कथा का कोई पूर्वापर संबंध नहीं होता। प्रत्येक छंद अपने आपमें पूर्णतः स्वतंत्र और संपूर्ण अर्थ देने वाला होता है।
अशोक जैन के 'चमकती धूप के साये' नामक इस मुक्तक संग्रह में 120 मुक्तकों की खूबसूरत फोटोग्राफी ही नजर नहीं आती, बल्कि इनके भीतर का इनसान अपने युग से संवाद करता भी नजर आता है। अशोक जैन के इन मुक्तकों में एक लयात्मकता है। इनमें निहित भावों का वैविध्य इस संग्रह की सबसे बड़ी शक्ति है, जो इसके सर्जक को एक अलग पहचान देने में सफल हुई है। इस मुक्तक संग्रह का मूल्य केवल 80 रुपए है। आशा है यह संग्रह पाठकों को पसंद आएगा और वे भावों के वैविध्य से रूबरू होंगे। जीवन के यथार्थ को दर्शाता एक मुक्तक देखिए ः 'सभी का दर्द सहते हैं, नहीं फिर भी शिकायत है/किसी को क्या पता कि, दिल हमारा कितना आहत है/यूं कहने को तो इस बस्ती के सारे लोग हैं अपने/मगर हम क्या बताएं, सबमें ही गहरी सियासत है।' मगर इसके बावजूद रचनाकार हौसला नहीं छोड़ता और कहता है : 'कभी सूरज की किरणों से, उजाला तक नहीं होता/भटक जाए अगर कश्ती तो, मांझी खूब है रोता/मगर एक कर्मयोगी की यही पहचान होती है/समय मुश्किल हो कितना भी, कभी धीरज नहीं खोता।'
दिव्याहिमाचल
Rani Sahu
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