सम्पादकीय

बॉलीवुड का ड्रग्स से कनेक्शन: नशे के धंधे पर कैसे हो वार

Neha Dani
29 Oct 2021 3:26 AM GMT
बॉलीवुड का ड्रग्स से कनेक्शन: नशे के धंधे पर कैसे हो वार
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जांच के बीच में ही उन्हें ड्रग पैडलर का पिता कहना ठीक नहीं।

उभरते बॉलीवुड फिल्म स्टार सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत के बाद विभिन्न सोशल नेटवर्क पर सक्रिय कई अपेक्षाकृत युवा, लेकिन सफल बॉलीवुड फिल्म अभिनेत्रियों को अचानक एनसीबी द्वारा कथित रूप से ड्रग्स रखने, आपूर्ति करने और सेवन करने के आरोप में पूछताछ के लिए बुलाया गया था। कुछ लोगों से कई बार लंबे समय तक पूछताछ की गई और जमानत मिलने तक वे जेल में रहे।

एनसीबी की ब्रीफिंग के आधार पर चौबीसों घंटे टीवी चैनलों और मीडिया रिपोर्टों द्वारा बताया गया कि ये बॉलीवुड हस्तियां उन पार्टियों में शामिल हुई थीं, जहां ड्रग्स का इस्तेमाल किया गया था; उनके पास पांच ग्राम से 35 ग्राम तक चरस/गांजा था और हो सकता है कि वे नियमित रूप से उन आपूर्तिकर्ताओं से इन्हें खरीद कर रहे हों, जिनके अंतरराष्ट्रीय ड्रग गिरोह के साथ संबंध हो सकते हैं।
दावा किया गया कि एनसीबी एक अंतरराष्ट्रीय ड्रग आपूर्ति शृंखला का पता लगाने की कोशिश कर रहा है। अगर यही उनका प्रमुख उद्देश्य है, उनकी कोशिश ठोस सबूतों पर आधारित है और यह अगर किसी अन्य एजेंडे से प्रेरित नहीं, तो भला कौन आपत्ति करेगा! इन जांचों ने अभियुक्तों के शूटिंग कार्यक्रमों को बाधित किया, उन्हें और उनके परिवारों के लिए परेशानी खड़ी की, जिसके चलते उन्हें वित्तीय नुकसान हुआ और उन्हें इस तरह पेश किया गया जैसे वे ड्रग विक्रेता और आदतन नशेड़ी हैं।
वास्तव में, दैनिक ब्रीफिंग और ब्रेकिंग न्यूज भारतीय फिल्म उद्योग की अंतरराष्ट्रीय छवि को खराब कर रही है, जो मनोरंजन उद्योग और डिजिटल माध्यम के साथ-साथ तीन अरब डॉलर का वार्षिक व्यवसाय करता है और प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लगभग 50 लाख लोगों को रोजगार देता है। अफसोस की बात है कि जब अभी पूछताछ जारी है, एनसीबी के सूत्र जानकारियां लीक कर रहे हैं।
अनुमान के मुताबिक वर्ष 2019 में अंतरराष्ट्रीय मादक पदार्थों की तस्करी का उद्योग 32 अरब डॉलर का था। 'स्वर्णिम त्रिकोण' देश-म्यांमार, लाओस और थाईलैंड से निकटता के कारण भारी मात्रा में मादक पदार्थों का भारत के जरिये हस्तांतरण होता है। इसी तरह से भारत के निकट स्थित अन्य दक्षिण पश्चिम देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान इस कारोबार के लिए 'स्वर्णिम अर्धचंद्र' का निर्माण करते हैं।
भारत का अन्न भंडार पंजाब नशे की लत के कारण तबाह हो गया, पंजाब के 67 फीसदी ग्रामीण घरों में कम से कम एक सदस्य नशे का आदी है। उड़ता पंजाब फिल्म तो बस उसकी झलक भर है। उत्तर प्रदेश उन राज्यों की सूची में शीर्ष पर है, जहां लोग नसों में नशे की सुई लेते हैं, उसके बाद दिल्ली और पश्चिम बंगाल का स्थान आता है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 3.1 करोड़ भांग, 50 लाख चरस व गांजा, 63 लाख हेरोइन और 11 लाख अफीम का सेवन करते हैं।
इसलिए क्या एनसीबी को इस खतरे को दूर करने के लिए सही जगहों पर अपनी ऊर्जा खर्च करने पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बजाय फिल्मी हस्तियों पर ध्यान केंद्रित करने के, क्योंकि इससे मीडिया में व्यापक प्रचार भले मिले, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं मिला है? संजय दत्त से बेहतर कौन जानता होगा कि नशा क्या है और उसने उनके परिवार को कैसे प्रभावित किया।
उनके पिता, सुनील दत्त ने अपने बेटे को नशे की लत से बाहर निकालने के लिए हर संभव चिकित्सा सहायता मांगी और सफल रहे। दीपिका पादुकोण से लेकर अनन्या पांडे तक ये सभी अभिनेत्रियां यदि नशे की आदी होतीं, तो क्या अपने काम पर ध्यान दे पातीं? क्या उनके निर्माता उनकी लत पर ध्यान नहीं देते? क्या आरोपियों का मेडिकल परीक्षण कराया गया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे ड्रग्स के आदी थे या नहीं?
एनसीबी एक निजी एजेंसी नहीं है; इसे भारतीय करदाताओं के पैसे से चलाया जाता है। फिल्मी हस्तियों से जुड़े अत्यधिक प्रचारित मामलों में अगर इस बात का अकाट्य सबूत है कि वे अंतरराष्ट्रीय ड्रग गिरोह के साथ मिलकर ड्रग बेचते हैं, तो उन पर मुकदमा चलाकर दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन अगर इनमें से कुछ लोग किसी फिल्मी पार्टी में एक बार चरस या गांजा पीते हैं, तो उसे तिल का ताड़ बनाने की जरूरत नहीं है।
उन पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है, लिखित में माफी मांगने के लिए कहा जा सकता है, और अनाथों या दिव्यांगों या धर्मार्थ संगठनों के लिए धन जुटाने के लिए कुछ प्रदर्शनों को मुफ्त में आयोजित करने के लिए कहा जा सकता है। जैसा कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने ठीक ही सुझाव दिया है कि जिन लोगों के पास बहुत कम मात्रा में नशीले पदार्थ हैं, जिनका उन्होंने कभी-कभार सेवन किया हो, उनके साथ कुख्यात ड्रग सप्लायर्स / एडिक्ट्स के बजाय पीड़ित के रूप में मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए। हमें नाबालिग नागरिकों को अपराधी नहीं बनाना चाहिए।
1960 के दशक के आखिर में जब मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा था, तब वहां भी हिप्पियों का प्रभाव चरम पर था। वहां भी लंबे बालों वाले अनेक छात्र नजर आते थे, जो हाथों में चिलम लिए हुए गांजा फूंकते थे! लेकिन सिविल सेवा के तीस फीसदी सफल छात्र पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इसी विश्वविद्यालय से आते थे। पिछले बीस सालों में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने आधा दर्जन कैबिनेट सचिव दिए हैं। शुक्र है कि तब वहां कोई एनसीबी नहीं था। शाहरुख खान ने जो कुछ भी अर्जित किया है, वह उन्हें विरासत में नहीं मिला। कठिन परिश्रम से उन्होंने फिल्मों में जगह बनाई है। जांच के बीच में ही उन्हें ड्रग पैडलर का पिता कहना ठीक नहीं।

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