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सम्पादकीय
साहसिक फैसला: अफस्पा को सीमित करने से पूर्वोत्तर में मजबूत होगा राष्ट्रवाद
Gulabi Jagat
17 July 2022 9:00 AM GMT
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लंबे समय से इस कानून के अधिकार क्षेत्र पर पुनर्विचार की मांग की जा रही थी
रविशंकर रवि.
सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून के अधिकार क्षेत्र को सीमित कर केंद्र सरकार ने सार्थक और साहसिक फैसला लिया। इससे पूर्वोत्तर में राष्ट्रवाद मजबूत होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून, 1958 के अधिकार क्षेत्र को सीमित करने का बड़ा फैसला लिया है।
जब यह कानून लागू हुआ था, तब से आज की स्थिति में बड़ा बदलाव आ चुका है। नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर तथा असम के सीमावर्ती क्षेत्रों को छोड़ दें, तो अन्य स्थानों पर अलगावादी गतिविधियां समाप्त हो चुकी हैं। ऐसे में इस कानून को सभी क्षेत्रों में बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं था।
लंबे समय से इस कानून के अधिकार क्षेत्र पर पुनर्विचार की मांग की जा रही थी। इस कानून की वजह से सुरक्षाबलों को मिले असीम अधिकारों का कई बार गलत उपयोग हो रहा था। जिसकी वजह से आम नागरिकों में केंद्र सरकार के प्रति गुस्सा भड़क जाता था। इसका लाभ उग्रवादी संगठनों को मिलता था। नाराज युवक अलगावी संगठन की तरफ झुक जाते थे।
मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें
इस कानून के खिलाफ मणिपुर की इरोम शर्मिला के अनवरत चौदह वर्षों तक अनशन किया था। सुरक्षाबलों को मिले असीमित अधिकारों की वजह से अक्सर मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें आते रहती थीं। मनोरमा देवी के साथ किया गया व्यवहार शर्मनाक था। उग्रवादियों की मदद करने के आरोप में सुरक्षाबलों में उनके गुप्तांग को गोलियों से भुन दिया था। इस कानून के खिलाफ इंफाल में महिलाओं ने नग्न प्रदर्शन किया था।
इस कानून की समीक्षा के लिए कई आयोगों का भी गठन किया गया था। लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञों के दबाव की वजह से कानून के अधिकार क्षेत्र में किसी सरकार ने बदलाव करने का साहस नहीं किया। जबकि पूर्वोत्तर की कई राज्यों सरकारों, विभिन्न सामाजिक और छात्र संगठनों ने भी इस कानून पर विचार करने की मांग जारी रखी थी।
कई आयोग की सिफारिशें आ चुकी थीं और अधिकांश सिफारिशों में इस कानून में बदलाव की सलाह दी गई है। रेड्डी आयोग ने तो इस कानून को पूरी तरह समाप्त करने की सलाह दी थी। पूर्व की डा. मनमोहन सिंह सरकार ने इस कानून को मानवीय बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
गत दिसंबर में नगालैंड में सेना के हाथों चौदह ग्रामीणों की मौत के बाद अफस्पा को रद्द करने की मांग ने फिर से जोर पकड़ लिया। मेघालय के मुख्यमंत्री करनाड संगमा और नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने इसे रद्द करने की मांग की थी। मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने भी मणिपुर विधानसभा चुनाव के दौरान इस कानून पर विचार करने का आश्वासन दिया था।
जब आम नागरिकों पर बिना किसी अपराध के जुल्म होता तो उनका गुस्सा भी जायज है। नगालैंड की घटना के बाद से केंद्र सरकार ने इस बारे में गंभीर कदम उठाने का संकेत दिया था।
सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून
शांति के लिए दूरदर्शी कदम
नगालैंड के मोन जिले की घटना के बाद केंद्र सरकार ने पूरी विनम्रता के साथ उस घटना पर अफसोस जताकर दूरदर्शी कदम उठाया है। उस घटना के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि ''गलत पहचान के कारण ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी है। केंद्र सरकार उच्च स्तरीय जांच करेगी और जो कुछ हुआ है, उस पर भारत सरकार खेद व्यक्त करती है।''
गृह मंत्री के इस बयान से नगालैंड के लोगों को यह जरूर महसूस होगा कि भारत सरकार पूरी तरह संवेदनशील है और सुरक्षाबलों की भूल की वजह से दुखी भी है। ऐसे समय में गृहमंत्री के उस बयान ने नगा समुदायों को बीच कुछ हद तक मलहम का काम किया था।
सुरक्षाबलों पर हमले के बाद केंद्र सरकार की तरफ से संयम भरा बयान आया। इसके पहले तक तो सुरक्षाबल अपनी गलती को छिपाने का प्रयास करते थे, लेकिन उस घटना के बाद ऐसा नहीं हुआ।
वह ऐतिहासिक क्षण आ ही गया। गत 30 मार्च की रात्रि को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अफस्पा के अधिकार क्षेत्र को सीमित करने की जानकारी दी तो पूर्वोत्तर के लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। हालांकि अभी उन इलाके में यह कानून लागू रहेगा, जहां पर उग्रवादी हिंसा की आशंका है।
मोदी सरकार का साहसिक कदम
यह साहसिक कदम मोदी सरकार ने उठाया। यह भी सच है कि असम समेत पूर्वोत्तर के कई उग्रवादी संगठनों के साथ हुए लोकतांत्रिक समझौते और आने वाले दिनों में भी अल्फा समेत कई उग्रवादी धड़ों के साथ शांति वार्ता चल रही है। मोदी सरकार के लगातार प्रयासों से पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में सुरक्षा स्थिति में सुधार और विकास कार्यों में तेजी आई है, जिसके परिणामस्वरूप दशकों के बाद अफस्पा के तहत घोषित अशांत क्षेत्रों में भी स्थिरता देखी गई है।
केंद्र सरकार ने अफस्पा कानून के दायरे को कम करने का फैसला किया है। अमित शाह ने सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत सरकार ने पूर्वोत्तर में उग्रवाद समाप्त करने और स्थायी शांति लाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वप्न को साकार करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।
केंद्र सरकार की अफस्पा सीमित करने के फैसले को लेकर घोषणा का पूर्वोत्तर के विभिन्न दलों और संगठनों ने स्वागत किया है। आसू के सलाहकार समुज्जवल भट्टाचार्य ने केंद्र के फैसले का स्वागत करते हुए संपूर्ण पूर्वोत्तर से इस कानून को हटाने की मांग की है। असम गण परिषद के अध्यक्ष अतुल बोरा ने पूर्वोत्तर के लोगों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया है।
गत 4 अप्रैल को दीमापुर में विभिन्ना नगा संगठनों ने केंद्र के फैसले को सकारात्मक कदम बताया है। दरअसल केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से पूर्वोत्तर का माहौल बदल रहा है। वे लोग आम भारतीय की तरह भयमुक्त होकर जीना चाहते हैं। लेकिन इस कानून से मिले अधिकारों के बल पर सुरक्षाबलों की ज्यादती से भूमिगत संगठनों को मदद मिल रही थी।
केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर के नागरिकों की एक सही मांग का तार्किक आधार दिया है। इससे पूर्वोत्तर में राष्ट्रीयता मजबूत होगी और आम लोगों को महसूस होगा कि उनकी बात दिल्ली में बैठी सरकार अब सुनने लगी है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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