सम्पादकीय

सियासी सूखे में खड़ी किश्तियां

Rani Sahu
11 May 2023 3:40 PM GMT
सियासी सूखे में खड़ी किश्तियां
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By: divyahimachal
सत्ता में सरकार की दरकार और सरकार में सत्ता की पुकार के बीच हिमाचल की अटकलें दिल्ली दरबार की चाकरी में मशरूफ हैं। अभी सत्ता के शुभ लक्षणों के लिए शिमला के महापौर और उप महापौर की शिनाख्त के बीच कांग्रेस शिमला से दिल्ली तक संतुलन की डोर पर चल रही है। इसी के साथ राजनीति के दरियाओं में मंत्री पद की किश्तियां अभी भी सूखे में खड़ी हैं। ये रिक्तियां अचंभित करती हैं और दिल्ली के कानों में खुसर-फुसर भी करती हैं। बजीरों की परेड एक बात है और मंत्रियों की बुलंदी दूसरी तरह का एहसास है। अपने पांचवें महीने में सुक्खू सरकार ने प्रशासनिक तौर पर जो पाया, वह भी कहीं केंद्रीय कमान के खूंटे पर लटका है। हिमाचल ने कांग्रेस का पक्षधर होने का बिगुल पिछली सरकार के समय में चार उपचुनावों में बजाया था और उसके बाद सत्ता का द्वार खोलकर स्वागत किया था। इसी लय में शिमला नगर निगम चुनावों की परिणति ने कांग्रेस को सुशासन करने के लिए जगह व जिरह दी है। यही जगह व जिरह बहुत ही महीन होकर लगातार सरकार के बीच ऐसी भूमि तलाश रही है, जिसके सदके सत्ता का अवलोकन पूरे हिमाचल की महत्त्वाकांक्षा को उठा-उठा कर दिल्ली दरबार ले जा रहा है। ऐसे राजनीतिक अंतर से जो हिसाब पैदा हो रहा है, उसके रिसाव को समझना होगा, वरना सामने भाजपा अपनी दीवारों पर नई संभावनाओं के पोस्टर चस्पां कर रही है।
शिमला के महापौर और उप महापौर पर फैसला करना जितना जरूरी है, उससे कहीं अधिक जज्बाती होकर राहों पर खड़े राजनीतिक सन्नाटे पूछ रहे हैं कि यह कौनसा दो जमा दो है, जो इस वक्त कांगड़ा को निरंतर घटा रहा है। पेंच फसाना अलग बात है, लेकिन अगर कांगड़़ा की पेचीदगी के साथ-साथ रूठे सिंहासन की राह पर खड़े बिलासपुर, हमीरपुर या चंबा का सिंहावलोकन नहीं हुआ, तो बिगड़ती तहजीब के विघटन कहीं भीतर से घायल ही निकलेंगे। सत्ता के हर गुण के साथ ऐसे राजनीतिक दोष का उपचार सही से न किया गया, तो आने वाले समय में कई सफलताएं भी कुंद हो सकती हैं। हिमाचल में सरकार को महसूस करने का सबसे बड़ा पड़ाव राजधानी शिमला हो सकती है, लेकिन सत्ता को लाने का हिमाचल का सबसे बड़ा घराना निश्चित रूप से कांगड़ा है। शायद इसलिए मुख्यमंत्री पर्यटन की राजधानी का दर्जा देतेे हुए इस क्षेत्र को उपकृत कर देते हैं और आईटी पार्क की शिनाख्त में जिला का •ार्रा-•ार्रा ढूंढा जा रहा है, लेकिन सवाल राजनीतिक रौनक का है। चंबा से कुलदीप पठानिया भले ही विधानसभा अध्यक्ष बना दिए जाते हैं, लेकिन यह सियासी रौनक को पूरी तरह प्रतिबिंबित नहीं करता। कांगड़ा सत्ता का प्रमुख घराना होने के बावजूद कांग्रेस सरकार की रौनक से महरूम है। ऊना, हमीरपुर, शिमला, सोलन व सिरमौर में लगी रौनकों का एहसास किया जा सकता है, लेकिन बिलासपुर व मंडी के लिए नए अवसर चाहिए। कांग्रेस खुद को सरकार के आवरण में देखने की चेष्टा करे, तो मालूम हो जाएगा कि उसकी हर जीत के पीछे जनता का सीधा एहसास छिपा है। यही एहसास कांगड़ा से उसे लबालब कर देता है, लेकिन बदले में कुछ नेताओं को दो कौड़ी का बना देने का एकतरफा मंतव्य खड़ा हो जाता है।
क्या सुधीर शर्मा, यादविंदर गोमा या बिलासपुर के राजेश धर्माणी को दो कौड़ी का बनाकर कांग्रेस सामने खड़ी भाजपा को कड़ा संदेश दे पाएगी। सरकार बनाना जनता के नेतृत्व में भले ही बदलाव का संदेश लेकर आए, लेकिन सरकार को आगे चलकर राजनीति को जीतने के लिए कंधे मजबूत और सीना चौड़ा करना पड़ेगा। अंतत: आगामी लोकसभा चुनाव की वैतरणी में उतरने के लिए आगे चलकर सरकार के कंधों का सवाल उठेगा और यह प्रदेश को तय करना है, न कि आलाकमान के नखरों से होगा। कांग्रेस के पास इस समय इतनी राजनीतिक संपत्ति नहीं है कि पार्टी राज्य में कुछ नेताओं की वरिष्ठता को कुंद करके लंबी तान ले। कांग्रेस मंत्रिमंडल का वर्तमान भले ही सरकार के अहम फैसलों का सशक्त चेहरा बनाने का सबब पाले, लेकिन इस फिजां में पतझड़ के आने की आशंका खत्म नहीं होती। भाजपा के लिए सरकार के भीतर का खालीपन, उसकी सियासी संभावनाओं को आसान करता रहेगा। कांग्रेस पहले ही अपनी किश्तियां गोवा, पंजाब, उत्तराखंड व मध्यप्रदेश में डुबो चुकी है, अत: हिमाचल के बेड़ों को फिर से पानी तक ले जाने के लिए तमाम लहरों का तापमान जान लेना होगा।
Rani Sahu

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