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- बदनामी की बिछी बिसात
तवलीन सिंह: सबूत किसी विधायक या सांसद के बिकने का कभी नहीं मिलता। सो, कहना मुश्किल है कि आम आदमी पार्टी के विधायकों को वास्तव में बीस करोड़ रुपए का प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी की तरफ से आया कि नहीं। इतना जरूर कहा जा सकता है कि अगर खरीद-फरोख्त न होती विधायकों की, तो जब सरकारें गिराई जाती या उनकी जरूरत किसी चुनाव में पड़ती है, तो उनको कैदियों की तरह क्यों बंद रखा जाता,
किसी मामूली सरकारी भवन में नहीं, बल्कि किसी पांच सितारा होटल या आलीशान रिजार्ट में। यह भी कहा जा सकता है कि उनके रहन-सहन के पैसे, इनको खरीदने के पैसे, उन्हीं राजनीतिक दलों के पास होते हैं जो सबसे ताकतवर होते हैं। यानी उसी दल के पास इतना पैसा होता है, जो दिल्ली के तख्त पर आसीन होता है।
एक समय था जब विधायकों को खरीद कर राज्य सरकारों को गिराने की ताकत सिर्फ कांग्रेस पार्टी में होती थी। इंदिरा गांधी के दौर में कई बार राज्य सरकारों को गिराया गया था। वही दौर था जब दल बदलने का रिवाज खूब चला। जब उनके बेटे राजीव गांधी को भारत के संसदीय इतिहास में सबसे बड़ा बहुमत मिला, उन्होंने कानूनी तौर पर इस घटिया आदत को तोड़ने की कोशिश की। दल बदलना आसान नहीं रहा, लेकिन जो लोग रजनीति में आते हैं अपनी सेवा करने जनता की सेवा के बहाने, उन्होंने यह आदत कभी छोड़ी नहीं।
हाल में महाराष्ट्र की सरकार गिराई गई, विधायकों को पांच सितारा होटलों में कई-कई दिन कैद रख कर। इतना घूमे ये लोग कि एक तरह से उनको भारत दर्शन करवाया गया। गुजरात में जब उनको कैद रखना मुश्किल हो गया, तो आधी रात को निजी विमान में उनको असम पहुंचाया गया। उस राज्य के भाजपा मुख्यमंत्री ने ऐसा पहरा डाला गुवाहाटी के उनके पांच सितारा होटल के आसपास कि पत्रकार भी अंदर नहीं जा पाए। जब महाराष्ट्र के इन विधायकों को असम का खाना रास नहीं आया, तो उनके लिए मराठी खाने का इंतजाम किया गया।
फिर जब तय हो गया कि उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने वाली है, तो उनको गोवा ले जाकर एक और पांच सितारा होटल में कैद रखा गया, ताकि जब विधानसभा में हाजिरी लगाने का समय आए तो उनको आसानी से मुंबई लाया जा सके। उस समय भी चर्चा में था आंकड़ा बीस करोड़ रुपए का। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की मर्जी की जब सरकार बन गई, तो इस दल के आला नेताओं का ध्यान लग गया दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को गिराने में।
पिछले हफ्ते तक सरकार टिकी हुई थी अरविंद केजरीवाल की, लेकिन दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चर्चा गरम थी कि यहां भी दाम एक विधायक का बीस करोड़ रुपए है। यह आरोप आम आदमी पार्टी के आला अधिकारियों ने खुल कर टीवी चैनलों पर लगाया था उस समय, जब दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री के घर में भारत सरकार की जांच एजंसी ने छापे मारना शुरू किया था।
साथ में मनीष सिसोदिया पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि उन्होंने दिल्ली की शराब नीति में घोटाला करके 'लिकर माफिया' को फायदा पहुंचाया, खुद पैसे बनाने के लिए। ऐसा होने के सबूत तो हैं नहीं, लेकिन केंद्र सरकार के मंत्री भी लग गए सिसोदिया को बदनाम करने में।
जब किसी लोकतांत्रिक देश में बिना सबूत के आला अधिकारियों और राजनेताओं को दोषी पाया जाता है मीडिया के जरिए मुकदमा चला कर, तो उस देश की कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ जाती हैं। ऐसा अपने भारत महान में हो रहा है इन दिनों और प्रधानमंत्री की सहमति से हो रहा होगा, वरना वे अपने मंत्रियों और प्रवक्ताओं को बदनामी की मुहिम चलाने से रोकते। ऐसा नहीं कि राज्य सरकारों को अस्थिर करके गिराने का काम सिर्फ मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुआ है, मगर मेरे जैसे पूर्व मोदी भक्तों के लिए भुलाना मुश्किल है कि मोदी ने 'न्यू इंडिया' में नई राजनीतिक सभ्यता लाने के वादे किए थे कभी।
उनकी बातों पर विश्वास मेरे जैसे कई लोगों ने इसलिए किया, क्योंकि उनके पहले वाले कार्यकाल में वास्तव में ऐसा लगा था कि वे अपने वादों को पूरा करके दिखाएंगे। मगर कब चलने लगे कांग्रेस की चाल, कहना मुश्किल है, लेकिन यह कहना जरूरी है कि अब उनकी 'न्यू इंडिया' में वही पुराने इंडिया की घटिया राजनीतिक सभ्यता दिखने लगी है। महाराष्ट्र से पहले मध्यप्रदेश में सरकार गिराई गई और उससे पहले बारी आई थी कर्नाटक की। प्रयास राजस्थान में भी हुआ।
राज्य सरकारें जब बेवक्त गिराई जाती हैं, नुकसान होता है राज्य और प्रजा का। फायदा होता है तो सिर्फ उन विधायकों का, जो बिक जाते हैं बिना यह सोचे कि ऐसा करके वे उन मतदाताओं के साथ विश्वासघात कर रहे हैं, जिन्होंने उनको अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा है। कहा नहीं जा सकता कि इस लेख के आप तक पहुंचने से पहले दिल्ली की सरकार गिर जाएगी या नहीं। इसमें कोई शक नहीं है कि केजरीवाल की सरकार गिराने की पूरी कोशिश हो रही है।
बिसात बिछ गई है और सोची-समझी रणनीति के तहत युद्ध आरंभ हो गया है, जिसमें भारत सरकार अपने सबसे शक्तिशाली हथियारों को इस्तेमाल करने को तैयार है। सरकार अगर कायम रहती है, तब भी उसको नुकसान पूरी तरह हो गया है।
केजरीवाल और उनके मंत्रियों को भ्रष्ट साबित करने की इतनी बड़ी मुहिम चलाई गई है कि सरकार बच भी गई तो इतनी बदनाम हो गई है कि जनता का विश्वास उनमें घट जाएगा। नुकसान होगा दिल्ली का, दिल्लीवालों का और देश का भी। 'न्यू इंडिया' में पुराने इंडिया की राजनीतिक सभ्यता जीवित है।